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बिहार में बीजेपी सीट शेयरिंग का सिरदर्द कैसे झेलेगी?

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पटना में ही क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर सवाल उठाया था लेकिन 2024 के चुनाव की ऐसी मजबूरी है कि उन्हें एक के बाद एक क्षेत्रीय दलों से समझौता करना पड़ रहा है। इस समझौते के साथ ही भाजपा को इस सवाल का भी सामना करना होगा कि बिहार में सहयोगी दलों को सीट देने के मामले में वह कितना सहयोग कर सकती है।

2019 में नीतीश कुमार के साथ 40 में से 39 लोकसभा सीट जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ अब स्वर्गीय रामविलास पासवान की लोक शक्ति जनता पार्टी के दो धड़े हैं, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और जनता दल यूनाइटेड से अलग हुए उपेंद्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोक जनता दल भी है। इसके अलावा मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) भी आसपास ही है हालाँकि अभी उसने एनडीए में शामिल होने का ऐलान नहीं किया है।

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पिछले लोकसभा चुनाव में जहाँ भारतीय जनता पार्टी ने 17 सीटें जीती थीं वही लोक जनशक्ति पार्टी के छह उम्मीदवार सफल हुए थे। जनता दल यूनाइटेड के 16 सांसद चुने गए थे जबकि तत्कालीन विपक्ष को एकमात्र किशनगंज की सीट मिली थी जिसे कांग्रेस पार्टी के डॉक्टर मोहम्मद जावेद ने जीता था।

जाहिर तौर पर यह समझौता उसके लिए एक सिरदर्द की तरह नज़र आ रहा है। इस सिरदर्द में सबसे ऊपर है स्वर्गीय रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और रामविलास के भाई पशुपति कुमार पारस के बीच पाया जाने वाला भारी मनमुटाव। इस मनमुटाव को दूर करना भारतीय जनता पार्टी के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा।

स्वर्गीय रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के एक धड़े का नेतृत्व उनके पुत्र चिराग पासवान कर रहे हैं जबकि दूसरे की बागडोर उनके भाई पशुपति कुमार पारस के पास है। चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) कहलाती है। पशुपति पारस के पास राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 से ठीक पहले रामविलास पासवान का देहांत हो गया था और तब चिराग पासवान ने एनडीए का हिस्सा रहे जनता दल यूनाइटेड के सभी उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़ा कर उसे भारी नुकसान पहुंचाया था।

उसके बाद से चिराग पासवान का एनडीए से नाता टूट गया था, उनके चाचा पशुपति पारस ने पार्टी तोड़ ली थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने साथ पांच सांसदों के समर्थन की घोषणा के साथ केंद्र में मंत्री बन गए थे। इसके बाद चिराग पासवान खुद अपनी पार्टी के अकेले सांसद रह गए।

चिराग पासवान खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान कहते थे लेकिन उस समय उन्हें भारतीय जनता पार्टी से बहुत सहयोग नहीं मिला। लंबे समय से एनडीए से दूरी बनाने के बाद चिराग पासवान की हाल में ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई और उनके एनडीए में शामिल होने की घोषणा भी हुई। इस घोषणा से चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस परेशानी में हैं क्योंकि चिराग अपनी जमुई सीट छोड़कर हाजीपुर से लड़ना चाहते हैं जहां से उनके पिता रामविलास पासवान भी सांसद हुआ करते थे लेकिन इस समय यह सीट पशुपति पारस के पास है।

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यह देखना दिलचस्प होगा कि हाजीपुर सीट के लिए यह झगड़ा भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व कैसे सुलझा पाता है। दूसरी ओर यह खबर भी है कि चिराग पासवान अपनी पार्टी के लिए लोकसभा की 6 सीट और राज्यसभा की एक सीट चाहते हैं। बीजेपी के लिए यह दूसरा सिरदर्द है जिससे निपटने में उसे अपने बाकी सहयोगियों को भी विश्वास में लेना होगा।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी केवल उन्हीं 17 सीटों पर लोकसभा का चुनाव लड़ेगी जिनपर उसके उम्मीदवार पिछली बार लड़े थे और सभी सीटों पर जीते थे? राजनीति के जानकारों का मानना है कि भारतीय जनता पार्टी अपने सहयोगियो के लिए 23 सीट नहीं छोड़ना चाहेगी। पिछली बार उसने 16 सीटें जदयू को दी थीं क्योंकि नीतीश कुमार इससे कम पर तैयार नहीं किए जा सकते थे।

यह सवाल भी है कि पशुपति पारस के पास जो पाँच लोकसभा सीटें हैं, क्या वह उन्हें छोड़ने को तैयार होंगे?

अगर यह मानकर चला जाए कि पशुपति पारस की पार्टी को पांच सीटें दी जाएंगी तो भारतीय जनता पार्टी के अपने मौजूदा सांसदों के अलावा 18 सीटें बचती हैं। इन 18 सीटों में अगर 6 सीटें चिराग पासवान को दे दी जाएँ तो 12 सीटें बचेंगी। इन 12 सीटों में जीतन राम मांझी का 'हम' और उपेंद्र कुशवाहा का राष्ट्रीय लोक जनता दल अपना हिस्सा मांगेगा।

ऐसा माना जा रहा है कि जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा को लोकसभा की तीन-तीन सीटें भाजपा दे सकती है। इस तरह भारतीय जनता पार्टी की अपनी 17 वर्तमान सीटों के अलावा सिर्फ 6 सीटें और बचती हैं यानी उसके 23 सीटों पर लड़ने की संभावना बनती है। सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी सिर्फ़ 23 सीटों पर लड़ने के लिए तैयार हो जाएगी?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना यह है कि छोटी पार्टियां कम सीटों के साथ कब अपना पाला बदल दें, यह तय नहीं होता है इसलिए भारतीय जनता पार्टी शायद उन्हें इतनी सीटें ना दे।

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भारतीय जनता पार्टी के लिए ऊहापोह की स्थिति इसलिए है क्योंकि बिहार में पासवान समुदाय का छह से सात प्रतिशत वोट माना जाता है और यह वोट चिराग के पास है या पारस के पास, इसका पता लगाना आसान नहीं है। वैसे, भारतीय जनता पार्टी के सूत्रों का कहना है कि रामविलास पासवान का पुत्र होने के कारण चिराग पासवान को बेहतर सहयोगी माना जा रहा है।

दूसरी ओर भाजपा उपेंद्र कुशवाहा को कोयरी वोटों के लिए महत्वपूर्ण मानती है और 2014 के चुनाव में उसने उनकी तत्कालीन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को तीन सीटें दी थीं और तीनों में उसकी जीत हुई थी। 2014 में जीतन राम मांझी जनता दल यूनाइटेड में थे और उन्होंने गया सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन वह तीसरे स्थान पर रहे थे।

बिहार में 2024 का चुनाव बिल्कुल नए समीकरण के साथ लड़ा जाएगा जब लालू प्रसाद का राष्ट्रीय जनता दल और नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड एक साथ होंगे और उनके साथ महागठबंधन के अन्य दलों में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियाँ भी शामिल होंगी।

अगले लोकसभा चुनाव को 2015 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव के हिसाब से देखा जा सकता है। 2015 में भारतीय जनता पार्टी के साथ उसकी मौजूदा सहयोगी पार्टियाँ थीं लेकिन भारतीय जनता पार्टी 53 और उसका गठबंधन 58 सीटों पर सिमट गया था। दूसरी ओर 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन को 22 सीटें मिली थीं जिनमें 6 सीटें रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और तीन उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की थीं।

सन 2014 में यूपीए में जनता दल यूनाइटेड शामिल नहीं था और उसने अकेले चुनाव लड़ा था जिसमें उसे सिर्फ दो सीटों पर कामयाबी मिली थी। उस वर्ष यूपीए में शामिल राष्ट्रीय जनता दल को चार, कांग्रेस को दो और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी को एक सीट मिली थी।

2014 के 10 साल बाद 2024 के बिहार लोकसभा चुनाव में परिस्थितियां भारतीय जनता पार्टी के लिए बिल्कुल अलग हैं और इतने सहयोगियों को संभालना उसके लिए आसान नहीं माना जा रहा है।

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समी अहमद
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