बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, माइग्रेशन और रोजगार के मुद्दे राजनीतिक दलों के अभियानों के केंद्र में आ गए हैं। एनडीए और विपक्षी महागठबंधन दोनों ही इन मुद्दों को अपनी रणनीति का मुख्य आधार बना रहे हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश के बाद सबसे अधिक प्रवासियों को अन्य राज्यों में भेजने वाला राज्य है।

2011 की जनगणना के अनुसार बिहार से 74.54 लाख लोग अन्य राज्यों में प्रवास कर चुके हैं। यह राज्य की आबादी का 7.2% है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार केवल उत्तर प्रदेश (1.23 करोड़) से ही बिहार से अधिक प्रवासी जाते हैं। बिहार से सबसे ज़्यादा प्रवासी झारखंड में रहे और यह संख्या 13.36 लाख है। इसके बाद बिहार से दिल्ली में 11.07 लाख, पश्चिम बंगाल में 11.04 लाख, उत्तर प्रदेश में 10.73 लाख और महाराष्ट्र में 5.69 लाख प्रवासी रहे। बिहार में बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। 2022-23 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण यानी पीएलएफ़एस के अनुसार, 15 वर्ष से अधिक आयु वालों के लिए बिहार की बेरोजगारी दर 7.3% थी, जो राष्ट्रीय औसत 6.4% से अधिक है। 15-29 वर्ष की आयु वालों के लिए यह दर 23.2% थी, जो राष्ट्रीय औसत 15.9% से काफी अधिक है।

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बिहार की प्रति व्यक्ति आय की राष्ट्रीय औसत के साथ तुलना से पता चलता है कि राज्य लगातार पीछे रहा है। 2011-12 से बिहार की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम रही है। यह 2023-24 में प्रति वर्ष 32,174 रुपये थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 1.07 लाख रुपये था। नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक के आंकड़ों के अनुसार बिहार में गरीबी 2015-16 में इसकी आबादी के 51.89% से घटकर 2019-21 में 33.76% हो गई। हालांकि, इस कमी के बावजूद बिहार में देश में बहुआयामी गरीबी की दर सबसे अधिक है।

ये आंकड़े बिहार की आर्थिक चुनौतियों को दिखाते हैं, जहां रोजगार के अवसरों की कमी के कारण लाखों युवा हर साल अन्य राज्यों में नौकरी की तलाश में जाते हैं। यह प्रवास न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी प्रभाव डालता है, जिसे सभी प्रमुख दल अपने चुनाव अभियानों में भुनाने की कोशिश कर रहे हैं।

एनडीए की रणनीति

नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने प्रवास और बेरोजगारी के मुद्दों से निपटने के लिए विकास-केंद्रित रणनीति अपनाई है। एनडीए में बीजेपी, जेडीयू, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और राष्ट्रीय लोक मोर्चा शामिल हैं।

2005 से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सड़कों, बिजली और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए काम किया है। हालांकि, रोजगार के मामले में उनकी सरकार की प्रगति की आलोचना होती रही है।

एनडीए ने 2025 के लिए बड़ी जीत का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जिसमें नीतीश को गठबंधन का चेहरा बनाया गया है। जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने दावा किया कि नीतीश के नेतृत्व में एनडीए 243 में से 200 से अधिक सीटें जीतेगी।

2025-26 के केंद्रीय बजट में बिहार के लिए कई परियोजनाओं की घोषणा की गई, जिनमें मखाना बोर्ड, ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा, पश्चिमी कोशी नहर परियोजना, आईआईटी पटना का विस्तार और राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता और प्रबंधन संस्थान शामिल हैं। जेडीयू के महासचिव के.सी. त्यागी ने दावा किया कि ये परियोजनाएँ पिछड़े और हाशिए पर पड़े समुदायों को लाभ पहुंचाएंगी, जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

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बीजेपी ने बिहार दिवस के नौ दिवसीय उत्सव के माध्यम से देश भर में बिहारी प्रवासियों तक पहुंचने का प्रयास किया। यह रणनीति प्रवासियों को यह संदेश देने की थी कि एनडीए उनकी चिंताओं को समझती है और उनके लिए नीतियाँ बना रही है।

हालाँकि, नीतीश की लगातार गठबंधन बदलने की आदत ने उनकी विश्वसनीयता को नुक़सान पहुँचाया है। इसके अलावा, जेडीयू का वक़्फ़ संशोधन विधेयक का समर्थन करने का फ़ैसला मुस्लिम मतदाताओं को नाराज़ कर सकता है। ये बिहार की 17% आबादी का हिस्सा हैं।

महागठबंधन की रणनीति

आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने प्रवास और बेरोजगारी को अपने अभियान का मुख्य मुद्दा बनाया है। महागठबंधन में कांग्रेस, वामपंथी दल और विकसशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी शामिल हैं।

2022-23 में महागठबंधन सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे तेजस्वी यादव रोजगार और प्रवास के मुद्दों पर युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं।

2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, और तेजस्वी ने दावा किया कि उनकी 17 महीने की सरकार ने 5 लाख सरकारी नौकरियाँ प्रदान कीं। वे 100% डोमिसाइल नीति लागू करने का वादा कर रहे हैं, ताकि स्थानीय लोगों को प्राथमिकता मिले।

आरजेडी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी ‘मुस्लिम-यादव’ छवि से बाहर निकलने की कोशिश की और MY-BAAP (मुस्लिम, यादव, बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी, गरीब) रणनीति अपनाई। इसने कुशवाहा समुदाय के एक हिस्से को आकर्षित किया। इस वजह से औरंगाबाद में अभय कुमार सिन्हा की जीत हुई।

कन्हैया कुमार की ‘नौकरी दो’ रैली

कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ यात्रा शुरू की है। यह बिहार में प्रवास और बेरोजगारी के मुद्दों को उजागर करने के लिए है। 7 अप्रैल को बेगूसराय में राहुल गांधी के इस यात्रा में शामिल होने से इसे और बल मिला। यह अभियान विशेष रूप से 18-35 वर्ष के युवाओं को लक्षित करता है, जो नौकरी की कमी के कारण प्रवास करने को मजबूर हैं।

महागठबंधन की चुनौती यह है कि उसका मुस्लिम-यादव आधार पर्याप्त नहीं माना जा रहा है। कांग्रेस की कमजोर स्थिति और सीट-बंटवारे को लेकर आंतरिक तनाव भी गठबंधन के लिए बाधा बन सकते हैं। कांग्रेस ने 2020 में 70 में से केवल 19 सीटें जीती थीं।

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प्रशांत किशोर और जन सुराज

प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने भी प्रवास और बेरोजगारी को अपने अभियान का केंद्र बनाया है। किशोर ने दो साल की पदयात्रा के बाद अक्टूबर 2022 में अपनी पार्टी शुरू की और वादा किया कि उनकी सरकार बनने पर बिहारी युवाओं को अन्य राज्यों में नौकरी की तलाश नहीं करनी पड़ेगी। हालांकि, 2024 के उपचुनावों में उनकी पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं। फिर भी, प्रशांत किशोर का युवा और ग़ैर-जातिगत दृष्टिकोण कुछ मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है, जो पारंपरिक दलों से असंतुष्ट हैं। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी एक चैंकाने वाला फ़ैक्टर हो सकती है, लेकिन उसका प्रभाव सीमित रहने की संभावना है। 

प्रवास और रोजगार के मुद्दे बिहार के 2025 विधानसभा चुनावों में निर्णायक साबित हो सकते हैं। एनडीए अपनी की विकास उपलब्धियों और केंद्र के समर्थन पर भरोसा कर रही है, लेकिन नीतीश की घटती विश्वसनीयता और मुस्लिम मतदाताओं का संभावित नुक़सान उसे नुक़सान पहुँचा सकता है।

तेजस्वी यादव और कन्हैया कुमार जैसे महागठबंधन के नेता युवाओं के बीच जोश पैदा कर रहे हैं, लेकिन गठबंधन की आंतरिक एकता और व्यापक जातिगत समर्थन की कमी उनकी राह में रोड़ा बन सकती है।

बिहार का 2025 विधानसभा चुनाव केवल राज्य का भविष्य तय नहीं करेगा, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। एनडीए की जीत बीजेपी की राष्ट्रीय प्रभुत्व को और मजबूत कर सकती है, जबकि महागठबंधन की जीत इंडिया ब्लॉक में नयी जान फूंक सकती है और तेजस्वी यादव को राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित कर सकती है। प्रवास और रोजगार के मुद्दे न केवल बिहार की आर्थिक चुनौतियों को दिखाते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि मतदाता अब विकास और अवसरों की मांग कर रहे हैं। इस चुनाव में जो भी दल इन मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाएगा, वह बिहार की सत्ता पर काबिज होने की संभावना को मज़बूत करेगा।