बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए 121 सीटों पर आज चुनाव प्रचार ख़त्म हो गया। हालाँकि चरणों के हिसाब से यह चुनाव पिछली बार से अलग है लेकिन कुल मिलाकर इन सीटों पर 2020 में महागठबंधन को मामूली बढ़त मिली थी और इस बार भी वह इस बढ़त को बरकरार रखने के लिए जी तोड़ कोशिश में लगा है। 

इन सीटों में 59 पर एनडीए और 62 पर महागठबंधन को जीत मिली थी, हालाँकि इसमें एक सीट पर विवाद है क्योंकि तब चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से एक उम्मीदवार जीतने में कामयाब हुए थे और वह उस समय एनडीए में नहीं थे। इस चरण में मुख्य मुकाबला वैसे तो एनडीए और महागठबंधन में माना जा रहा है, लेकिन प्रशांत किशोर की जनसुरज पार्टी भी अपनी जगह बनाने की कोशिश में लगी हुई है।

सबसे ज़्यादा 72 सीटों पर आरजेडी उम्मीदवार

इन 121 सीटों पर अगर पार्टी के लिहाज से देखा जाए तो सबसे ज्यादा 72 सीटों पर राजद के उम्मीदवार खड़े हैं और इसके बाद 57 सीटों पर जेडीयू ने अपना उम्मीदवार दिया है। तीसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी है जिसके 48 उम्मीदवार किस्मत आजमा रहे हैं। चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) 14 सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि दो सीटों पर राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उम्मीदवार हैं।

महागठबंधन में 5 सीटों पर फ्रेंडली फाइट

पहले चरण में महागठबंधन में कांग्रेस पार्टी 24 और बीजेपी वाले 14 सीटों पर जबकि वीआईपी 6 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। महागठबंधन की कुल सीटों की संख्या देखी जाए तो 121 की जगह 126 बनती है और इसकी वजह यह है कि पांच जगहों पर फ्रेंडली फाइट हो रही है। मोटे तौर पर 115 सीटें ऐसी हैं जहां एनडीए और महागठबंधन में सीधी टक्कर है। इस चरण के लिए कुल 1314 उम्मीदवार मैदान में हैं।

बिहार में इस बार दो चरणों में मतदान होने जा रहा है जिसके तहत 6 नवंबर और 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, जबकि 14 नवंबर को रिजल्ट आएगा। मोटे तौर पर यह समझा जा सकता है कि बिहार के अंदरूनी हिस्सों में वोटिंग 6 नवंबर को है, जबकि बाकी हिस्सों में 11 नवंबर को। पहले चरण में 18 जिलों में मतदान होना है जिनमें गोपालगंज, सीवान, बक्सर, सारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा, खगड़िया, मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, नालंदा, पटना, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय और भोजपुर शामिल हैं। मोटे तौर पर माना जा रहा है कि इन विधानसभा क्षेत्र में लगभग साढ़े तीन करोड़ मतदाता वोटर लिस्ट में हैं।

पिछली बार भोजपुरी और मगही बोलने वाले इलाकों में महागठबंधन को बढ़त मिली थी, हालांकि मिथिलांचल और पूर्वी बिहार में उसे नुकसान उठाना पड़ा था।

तीन जिलों में एनडीए की बढ़त थी

मगध बोलने वाले क्षेत्रों में वैसे तो गया, औरंगाबाद और नवादा भी शामिल हैं लेकिन वहां दूसरे चरण में मतदान होना है। अगर पटना, नालंदा और शेखपुरा जिले को मगही बोलने वाले क्षेत्र में शामिल किया जाए तो पटना में महागठबंधन को 9 सीटें मिली थीं लेकिन नालंदा और शेखपुरा में उसे केवल एक सीट मिल पाई थी। नालंदा में एनडीए ने 6 और पटना में 5 सीटों के अलावा शेखपुरा की एक सीट पर भी जीत हासिल की थी। इस तरह इन तीन जिलों में एनडीए एक सीट से बढ़त लिए हुए था। लेकिन उसकी यह बढ़त गया, औरंगाबाद और नवादा में कम हो गई थी। पटना से सटे लेकिन गंगा के उस पार वैशाली में 8 सीटों में महागठबंधन और एनडीए ने चार-चार सीटें जीती थीं। 

भोजपुरी के लिहाज से देखा जाए तो यह इलाका सारण और शाहाबाद में बंटा हुआ है। 2020 में गोपालगंज सारण और सीवान में एनडीए को 9 सीटें मिली थीं जबकि महागठबंधन ने यहां 15 सीटों के साथ स्पष्ट बढ़त बनाई थी। इसी तरह भोजपुरी और बक्सर में एनडीए को केवल दो सीटों पर जीत मिली थी जबकि महागठबंधन ने 9 सीटें जीती थीं।

मिथिलांचल क्षेत्र में अगर मुजफ्फरपुर को भी शामिल कर लिया जाए तो मुजफ्फरपुर, दरभंगा समस्तीपुर और बेगूसराय में एनडीए ने 23 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि महागठबंधन काफी पीछे रह गया था और उसे केवल 15 सीटें मिली थीं। खासकर दरभंगा की 10 सीटों में महागठबंधन केवल एक सीट जीत पाया था। समस्तीपुर की 10 सीटों में दोनों गठबंधनों ने आधी आधी बांट ली।


पूर्वी बिहार के तीन जिलों खगड़िया, मुंगेर और बेगूसराय की 9 सीटों में पांच एनडीए और चार महागठबंधन जीत पाया था। पहले चरण में कोसी के सिर्फ दो जिलों मधेपुरा और सहरसा में चुनाव होना है जहां की आठ सीटों में एनडीए ने पांच अपने कब्जे में की थी और महागठबंधन को केवल तीन सीटें मिली थीं।

चिराग से एनडीए को होगा फायदा!

महागठबंधन के लिए इस बार एक चुनौती उन सीटों पर है जहाँ कहा जा रहा है कि उसके घटक दल फ्रेंडली फाइट कर रहे हैं। कागज पर देखा जाए तो एनडीए को इस बात का फायदा मिल सकता है कि चिराग पासवान इस बार नीतीश कुमार की पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं खड़े कर रहे हैं और जो नुकसान 2020 में हुआ था उसे इस बार शायद नीतीश कुमार बचा ले जाएँ। इस कागजी बात के इतर यह भी कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार के समर्थक इस बार चिराग पासवान के उम्मीदवारों से 2020 का बदला लेने के मूड में हैं और अगर ऐसा होता है तो फिर चिराग पासवान के समर्थक भी जदयू को वोट देने से कतरा सकते हैं।