बिहार विधानसभा चुनाव की गहमागहमी में जो चर्चा पीछे छूट जा रही है वह है यहां अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 38 और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित दो सीटें। 243 विधानसभा क्षेत्रों के लिए कुल 40 आरक्षित सीटों का महत्व चुनावी विश्लेषण में कम आँका जा रहा है, हालाँकि 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन के बीच सीटों का जो अंतर था उसका 40 फ़ीसदी हिस्सा इन्हीं आरक्षित सीटों से आया था।
बिहार चुनाव में आरक्षित सीटें निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही दलित मतदाताओं को साधने में जुटे हैं। तो कौन-सा गठबंधन दलितों का भरोसा जीतने में आगे है?

2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 21 सीटें जीती थीं जबकि महागठबंधन ने 17 सीटों पर जीत हासिल की थी। चार सीटों का यह अंतर दोनों गठबंधनों द्वारा जीती गई सीटों के अंतर का चालीस प्रतिशत बनता है। तब एनडीए ने 125 सीटें जीतीं जबकि महागठबंधन 10 सीटों से पीछे रह गया था और उसे 115 सीटें मिली थीं।
2020 में बीजेपी ने 9 एससी आरक्षित सीटें जीती थीं जबकि जदयू ने 8 ऐसी सीटें हासिल की थीं और जीतनराम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ने 3 एससी सीटें जीती थीं। मुकेश सहनी की वीआईपी को एक सीट मिली थी जो पिछले चुनाव में एनडीए का हिस्सा थी। पिछले चुनाव में आरजेडी ने 10 एससी सीटों पर जीत हासिल की, कांग्रेस को दो एससी सीटें मिली थीं और वाम दलों को पांच सीटें मिली थीं।






















