बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तेजस्वी यादव ने एक ऐसा बयान दिया है, जो राज्य की राजनीति में जातिगत समीकरणों को नया आकार दे सकता है। तेजस्वी ने एक इंटरव्यू में पुष्टि की है कि यदि महागठबंधन सत्ता में आया, तो राज्य में एक से अधिक उपमुख्यमंत्री होंगे, जिनमें मुस्लिम समुदाय और दलित समुदाय से प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाएगा। 

जब मुस्लिम उपमुख्यमंत्री की संभावना पर सवाल पूछा गया तो तेजस्वी ने साफ़ किया, 'मुकेश सहनी इकलौते उपमुख्यमंत्री नहीं होंगे। विभिन्न समुदायों से अन्य उपमुख्यमंत्री बनेंगे। हम सबको साथ लेकर चलेंगे और हर किसी को उचित प्रतिनिधित्व मिलेगा।' तेजस्वी ने यह भी कहा कि कई उपमुख्यमंत्री बनाने की घोषणा पहले ही की जा चुकी है। उन्होंने कहा, 'जिस दिन यह घोषणा हुई थी, अशोक गहलोत जी ने कहा था कि अगर मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा तो अन्य लोग भी होंगे। विभिन्न वर्गों द्वारा उठाई गई चिंताओं का समाधान किया जाएगा।'
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तेजस्वी की यह घोषणा न केवल मुस्लिम वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा लगती है, बल्कि आरजेडी की पारंपरिक 'मुस्लिम-यादव' यानी एमवाई छवि से इतर समावेशी राजनीति की कोशिश भी है। आरजेडी ने अल्पसंख्यकों, ओबीसी, ईबीसी और यहां तक कि अगड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व दिया है। इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई को दिए विशेष साक्षात्कार में तेजस्वी ने दावा किया कि इस बार टिकट वितरण में आरजेडी और महागठबंधन ने ही अल्पसंख्यकों को सबसे ज्यादा सीटें दी हैं। 

मुस्लिम प्रतिनिधित्व की मांग क्यों उछली?

बिहार की जनसंख्या में मुस्लिम समुदाय का हिस्सा लगभग 17 प्रतिशत है, जो चुनावी परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। हाल ही में विकसशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी को महागठबंधन का उपमुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किए जाने के बाद मुस्लिम समुदाय से उपमुख्यमंत्री पद की मांग तेज हो गई। 

तेजस्वी के बयान से पहले विरोधी दल आरजेडी पर मुस्लिमों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाते रहे हैं। कई नेताओं ने तो पूछा था कि मुस्लिम उपमुख्यमंत्री की घोषणा क्यों नहीं की जा रही है।

असदुद्दीन ओवैसी तो बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान मुस्लिम समुदाय से उपमुख्यमंत्री नहीं घोषित करने के लिए लगातार हमला कर रहे हैं। बीजेपी के प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने तो यहाँ तक कहा कि आरजेडी मुस्लिमों को सत्ता में हिस्सेदारी नहीं देना चाहती।

वोट बैंक या सबको साथ लेकर चलने की राजनीति?

तेजस्वी का यह फॉर्मूला बिहार की जटिल जातिगत राजनीति में एक अहम बदलाव का संकेत देता है। आरजेडी लंबे समय से एमवाई समीकरण पर निर्भर रही है, लेकिन तेजस्वी युवा नेता के रूप में दलितों, ईबीसी और मुस्लिमों को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री बनाने का ऐलान पहले ही ईबीसी वोटों को मजबूत कर चुका है, और अब मुस्लिम-दलित उपमुख्यमंत्री का वादा महागठबंधन को व्यापक अपील दे सकता है।
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हालाँकि, यह रणनीति जोखिम भरी भी है। एनडीए इसे 'वोट के लिए सौदेबाजी' बताकर हमला बोल सकता है, खासकर जब बिहार में बेरोजगारी और प्रवासन जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। तेजस्वी ने इंटरव्यू में बेरोजगारी पर जोर देते हुए कहा, 'हमारी लड़ाई बेरोजगारी के खिलाफ है। प्रत्येक परिवार को एक नौकरी का वादा हम पूरा करेंगे।' 

वोट बैंक की राजनीति: एनडीए

एनडीए तेजस्वी यादव की पार्टी पर मुस्लिमों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाता रहा है। बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार ने हाल ही में कहा था, 'चुनाव आने पर कुछ लोग फिर से मुस्लिम समुदाय के कल्याणकारी बनने का दिखावा करते हैं। यह शुद्ध धोखा है। वे मुस्लिमों को केवल वोट बैंक मानते हैं।' उन्होंने दावा किया कि एनडीए सरकार में मुस्लिम समुदाय को हर क्षेत्र में बिना भेदभाव के प्रतिनिधित्व मिल रहा है, जबकि पिछली सरकारें उन्हें केवल वोट के लिए इस्तेमाल करती रहीं।
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इस बार बिहार चुनाव में मुस्लिम वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं। पहले चरण का मतदान 6 नवंबर को और दूसरे का 11 नवंबर को होगा, जबकि 14 नवंबर को मतगणना होगी। 

तेजस्वी यादव का यह ऐलान बिहार राजनीति में 'समावेशी शासन' की दिशा में एक सकारात्मक कदम लगता है, जो लालू प्रसाद यादव के सामाजिक न्याय के मॉडल को आधुनिक रूप देता है। लेकिन यह परीक्षा की घड़ी है। क्या यह वादा सत्ता में आने के बाद पूरा होगा, या केवल वोट जुटाने का हथियार बनेगा?