दरभंगा में 200 एकड़ ज़मीन में 1264 करोड़ रुपए की लागत से 750 बेड का एम्स यानी ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज बनाये जाने की घोषणा कितनी सुखद लगती है। यह प्रस्ताव केन्द्रीय कैबिनेट ने 15 सितंबर को मंजूर किया तो किसी को भी आने वाले चुनाव का ख्याल आ सकता है। चूँकि इसके बनने में लगने वाला समय चार साल बताया गया है, इसलिए यह भी संभव है कि अगले चुनाव में भी इसका इस्तेमाल हो। ध्यान रहे कि बिहार के लिए यह दूसरा एम्स होगा, पहला पटना में है जो पटना हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आठ साल में बनकर तैयार हुआ था।

बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है। चुनाव में किसका पलड़ा होगा भारी? पंद्रह साल से नीतीश कुमार सत्ता में हैं। पंद्रह सालों में नीतीश कुमार लोगों की उम्मीदों पर कितना खरा उतर पाए? क्या बिहार विकास के रथ पर सरपट भाग पाया? बिहार आज भी बहुत पिछड़ा है तो उसके लिये ज़िम्मेदार कौन है? नीतीश सरकार में कैसी रही है स्वास्थ्य-व्यवस्था, पेश है उसका आकलन।
उद्घाटन के आठ साल के बाद इससे पटना के दोनों बड़े सरकारी अस्पतालों आईजीआईएमएस और पीएमसीएच का भार तो कम हुआ लेकिन हैरत की बात यह है कि अब भी एम्स, पटना से मरीज़ इन्हीं दोनों अस्पतालों में रेफर किये जाते हैं। चाहे दाँत की गंभीर बीमारी हो या दिल के इलाज का मामला हो, एम्स, पटना आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है। एम्स के सूत्रों के अनुसार हृदय रोग और कैंसर रोग समेत कम से कम आधा दर्जन विभाग ऐसे हैं जिसकी शुरुआत यहाँ अब तक नहीं हुई है।