Bihar SIR Final Voter List: बिहार के विपक्षी महागठबंधन ने अंतिम मतदाता सूची प्रकाशन पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पूरी एसआईआर प्रक्रिया धोखा है। हर विधानसभा से कम से कम दस हजार नाम काटे गए हैं। हम इसे चुनौती देंगे।
बिहार में अंतिम मतदाता सूची के प्रकाशन के बाद विपक्षी महागठबंधन ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी), कांग्रेस और अन्य महागठबंधन घटकों ने दावा किया कि कम से कम 10 मतदाताओं के नाम हर विधानसभा क्षेत्र से उड़ा दिए गए हैं।
चुनाव आयोग द्वारा मंगलवार को जारी अंतिम मतदाता सूची में बिहार के कुल 7.42 करोड़ मतदाता दर्ज किए गए हैं। जून में शुरू हुए एसआईआर अभियान के बाद यह संख्या 47 लाख से अधिक घटी है, लेकिन अगस्त में जारी ड्राफ्ट सूची के 7.24 करोड़ से वृद्धि हुई है। ड्राफ्ट में 65 लाख नाम 'गैरहाज़िर', 'स्थानांतरित' या 'मृत' बताकर हटा दिए गए थे। 'दावा और आपत्ति' चरण के बाद 21.53 लाख योग्य मतदाताओं को जोड़ा गया, जबकि 3.66 लाख नाम हटाए गए।
RJD ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आरोप लगाया कि अंतिम सूची ने समाज के गरीब, वंचित और हाशिए पर पड़े वर्गों के मताधिकार पर कुठाराघात किया है। आरजेडी के प्रदेश प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने आरोप लगाया, "हमारे जबरदस्त प्रयासों के बावजूद, गरीबों, दलितों, अति पिछड़े और अन्य पिछड़े वर्गों के नाम सूची में शामिल नहीं किए गए। हमने देखा कि हर विधानसभा क्षेत्र में कम से कम 10,000 नाम हटाए गए हैं, जो लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।" प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
फॉर्म 6 भरने वालों के नाम भी नहीं जोड़े गए
शक्ति सिंह यादव ने कहा कि फॉर्म-6 जमा करने वाले लोगों के नाम भी नहीं जोड़े गए। उन्होंने एसआईआर प्रक्रिया को "बड़ा धोखा" करार दिया। राजद नेता चितरंजन गगन ने कहा कि वे अंतिम मतदाता सूची का अध्ययन कर रहे हैं और जल्द ही इस पर प्रतिक्रिया देंगे। गगन ने कहा, "उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर, चुनाव आयोग ने हमें उन लोगों के नाम जोड़ने का विकल्प दिया है जो अभी भी अंतिम मतदाता सूची से बाहर रह गए हैं। अगर हमारी चिंताओं का समाधान नहीं किया गया तो हम फिर से अदालत का दरवाजा खटखटाएँगे।"वोटर लिस्ट की निष्पक्षता और पारदर्शिता सवालों के घेरे में
कांग्रेस ने अंतिम सूची की आलोचना करते हुए एसआईआर को "ढोंग" करार दिया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार ने कहा, "एसआईआर शुरू से ही एक दिखावा रही है। लेकिन अब चुनाव आयोग इसे सफल बता रहा है, जबकि वास्तव में इसकी निष्पक्षता और पारदर्शिता सवालों के घेरे में है।" उन्होंने कहा कि मतदाता सूची से 68 लाख से ज़्यादा मतदाताओं के नाम हटा दिए गए, जबकि केवल 21.53 लाख नए मतदाता ही जोड़े गए। उन्होंने कहा कि वे लोगों के मताधिकार की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेंगे।हालांकि इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक राजेश कुमार ने यह भी कहा कि “वोटर अधिकार यात्रा और हमारे नेता राहुल गांधी के 'वोट चोरी' के खुलासे के कारण ही चुनाव आयोग ने बड़े पैमाने पर नाम हटाने की कोशिश नहीं की। हमने सुप्रीम कोर्ट में भी अपनी बात मजबूती से रखी। नए मतदाता जोड़े गए, क्योंकि हमारा दबाव था।” कुमार ने कहा कि आयोग को गांधी के 'बमों' यानी उनके 'वोट चोरी के खुलासों' का डर था।
भाकपा (माले) लिबरेशन के राज्य सचिव कुणाल ने कहा, “हम अभी भी मानते हैं कि हजारों लोग गलत तरीके से नाम हटा दिए गए हैं। एसआईआर प्रक्रिया का कोई उद्देश्य पूरा नहीं हुआ। मृत मतदाताओं के नाम तो वार्षिक संक्षिप्त संशोधन से भी हटाए जा सकते थे।”
वोट चोरी के आरोप पर बीजेपी-जेडीयू का तंज
हालांकि, सत्तारूढ़ भाजपा और जेडीयू ने विपक्ष के 'वोट चोरी' वाले बयान पर तंज कसा। भाजपा प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने कहा कि अब जब अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित हो गई है, तो जनता एनडीए को भारी बहुमत देकर विपक्ष के गुब्बारे में हवा निकाल देगी। उन्होंने कहा, "विपक्षी आरजेडी और कांग्रेस ने एसआईआर पर बहुत ज़्यादा राजनीति की। अंतिम मतदाता सूची में इतनी बड़ी संख्या में नए नाम जुड़ना विपक्ष के वोट चोरी के आरोपों का करारा जवाब है।"
जेडीयू के मुख्य प्रवक्ता और विधान पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि चूंकि 21.53 लाख से अधिक नए नाम शामिल किए गए हैं और अधिकांश लोग अत्यंत पिछड़े वर्ग और दलित समुदाय से हैं, इसलिए चुनाव आयोग की अंतिम सूची बिहार में कांग्रेस-राजद के 'वोट चोरी' के आरोपों का कड़ा जवाब है।
उन्होंने कहा, "वे चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर अति पिछड़े वर्गों और दलितों को मताधिकार से वंचित करने का आरोप लगा रहे थे। वह भी तब जब एसआईआर से जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था। चूँकि बिहार में अति पिछड़े वर्ग और दलितों की आबादी बहुसंख्यक है और मतदाता सूची में 21.53 लाख से ज़्यादा नाम जोड़े गए हैं, इसलिए राहुल गांधी और तेजस्वी प्रसाद यादव जैसे नेताओं को शर्म आनी चाहिए।"
महागठबंधन ने आरोप लगाया कि अधिकांश बूथ लेवल अधिकारी (बीएलओ) मतदाताओं से मिले ही नहीं और केवल कागजी कार्रवाई पर ध्यान दिया। आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध कुमार मेहता ने कहा, “एसआईआर प्रक्रिया का कोई खास उद्देश्य पूरा नहीं हुआ और यह वार्षिक संक्षिप्त संशोधन से भी बदतर साबित हुई। ज्यादातर बीएलओ मतदाताओं से मिले तक नहीं और सिर्फ कागजों का काम किया। इससे एनडीए सरकार की गंदी चालें उजागर हुईं। लेकिन वे सफल नहीं हो सके, क्योंकि संयुक्त विपक्ष ने 'वोटर अधिकार यात्रा' और 'वोट चोरी' के मुद्दे को बड़ा बना दिया है।”
बहरहाल, विपक्ष का यह रुख बिहार की राजनीति में तनाव को और गहरा सकता है, खासकर आगामी चुनावों को देखते हुए। महागठबंधन ने चेतावनी दी है कि वे मतदाता अधिकारों की रक्षा के लिए सतर्क रहेंगे। यह घटनाक्रम लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।