भारत निर्वाचन आयोग की ओर से आज के अख़बारों में ‘आवश्यक सूचना’ शीर्षक से मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान 2025 का विज्ञापन छपा है। इस विज्ञापन से पहले 24 जून को निर्वाचन आयोग की एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी हुई थी और उसके एक दिन पहले से यह चर्चा चल रही थी कि बिहार में वोटर वेरिफिकेशन के नाम पर कुछ बड़ा होने वाला है। 

चुनाव आयोग के इस विशेष मतदाता पुनरीक्षण कार्यक्रम की बिहार के विपक्षी दलों ने आलोचना की है और इसे तुरंत रोकने की मांग की है। चुनाव आयोग के हवाले से यह कहा जा रहा है कि वोटर वेरिफिकेशन में जो लोग हिस्सा नहीं लेंगे उनका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया जाएगा।
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राहुल गांधी के आरोप क्या?

चुनाव आयोग की इस सूचना से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की वह आशंका ताजा हो गई है जिसमें उन्होंने बिहार में ‘महाराष्ट्र की मैच फिक्सिंग’ दोहराए जाने का डर जताया था। राहुल गांधी ने 7 जून को लिखा था, “…क्योंकि महाराष्ट्र की यह मैच फिक्सिंग अब बिहार में भी दोहराई जाएगी और फिर वहां भी, जहां-जहां बीजेपी हार रही होगी।” राहुल गांधी ने महाराष्ट्र की मैच फिक्सिंग के बारे में और भी कई बातें लिखी थीं। उन्होंने बिहार के बारे में जो कही थी उसे अब पूरा विपक्ष कह रहा है।

राहुल ने ‘चुनाव की चोरी का पूरा खेल!’ शीर्षक से अपने पोस्ट में लिखा था कि 2024 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लोकतंत्र में धांधली का ब्लूप्रिंट था। उन्होंने चुनाव आयोग की नियुक्ति करने वाले पैनल पर कब्जा का आरोप लगाया था। 

राहुल गांधी का महाराष्ट्र के बारे में यह आरोप है कि वहां चुनाव आयोग ने भाजपा के इशारे पर लाखों लोगों का नाम वोटर लिस्ट से काटने और जोड़ने का खेल किया है। तो क्या विपक्ष बिहार में वोटर लिस्ट को लेकर ताज़ा फ़ैसले को जोड़कर देख रहा है?

‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ का एजेंडा?

चुनाव आयोग की इस ताजा कार्रवाई से पहले मीडिया में यह खबर आई थी कि बिहार में कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों का नाम वोटर लिस्ट से काटने की तैयारी चल रही है। चुनाव आयोग बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात तो नहीं करता लेकिन भारतीय जनता पार्टी का बिहार में यह प्रमुख एजेंडा रहा है और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी उठा चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी यह मुद्दा खास तौर पर सीमांचल क्षेत्र के लिए उठाती है जहां के चार जिलों में मुसलमानों की अच्छी संख्या मानी जाती है। दिलचस्प बात यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी कभी बांग्लादेशी घुसपैठ की बात स्वीकार नहीं करती है। लेकिन उनकी ओर से ऐसे आरोपों का खंडन भी नहीं किया जाता। 

चुनाव आयोग अब क्या कर रहा है?

निर्वाचन आयोग के इस विज्ञापन में यह बताया गया है कि बूथ लेवल अधिकारी घर-घर जाकर वोटर लिस्ट में रजिस्टर्ड वोटरों को प्रिंटेड एन्यूमरेशन फॉर्म देंगे। इसके साथ ही यह लिखा गया है कि इस एन्यूमरेशन फॉर्म को स्वप्रमाणित दस्तावेजों के साथ जमा करना होगा। इस विज्ञापन में यह नहीं बताया गया है कि किन दस्तावेजों की जरूरत होगी और इन दस्तावेजों की जरूरत क्यों होगी? यानी ऊपर से तो यह एक बेहद सरल प्रक्रिया लगती है लेकिन जब इसकी विस्तृत जानकारी मिलती है तो मालूम होता है कि यह कितनी दिक्कत भरी प्रक्रिया है। 
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नागरिकता सिद्ध करने वाले दस्तावेज मांगे?

निर्वाचन आयोग ने इस विशेष पुनरीक्षण के लिए जो नोटिफिकेशन जारी किया है उसमें वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने या बनाये रखने के लिए जो दस्तावेज मांगे गए हैं, वह दरअसल नागरिकता सिद्ध करने वाले दस्तावेज होंगे। इसमें यह भी कहा गया है कि जिनका नाम 2003 की वोटर लिस्ट में होगा उन्हें इसकी जरूरत नहीं होगी लेकिन लोगों का कहना यह है कि 2003 के बाद बहुत सारे वोटर बने हैं और बहुत सारे लोगों ने अपनी जगह बदली है। यह बताया गया है कि पिछली बार विशेष पुनरीक्षण 2003 में ही हुआ था। यानी यह प्रक्रिया 22 साल के बाद दोहराई जा रही है।

बिहार में लगभग 8 करोड़ वोटर हैं और हाउस टू हाउस सर्वे के लिए 25 जून से 26 जुलाई का वक्त दिया गया है। दावे और आपत्तियों के लिए 1 अगस्त से 1 सितंबर का समय दिया गया है और अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर 2025 को प्रकाशित की जाएगी।

विपक्षी नेताओं के आरोप

इस संबंध में जो ख़बर मीडिया में आई थी उसमें यह जताने का प्रयास किया गया था कि राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के बारे में जो आरोप लगाए हैं उससे बचने के लिए चुनाव आयोग ने यह क़दम उठाया है। लेकिन विपक्षी नेताओं का कहना है कि दरअसल यह कवायद भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के पक्ष में वोटर लिस्ट बनाने की है। विपक्षी नेताओं को लगता है कि चुनाव आयोग दरअसल विपक्ष के समर्थक वैसे वोटरों का नाम लिस्ट से हटाने जा रहा है जिनकी अधिकांश संख्या कमजोर वर्ग की है।

राजद के नए प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल का कहना है कि उन्हें आशंका है कि इस पुनरीक्षण के ज़रिए मतदाता सूची से अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाताओं का नाम हटाने के लिए यह षड्यंत्र हो रहा है। उनका कहना है कि पुनरीक्षण के लिए केवल 26 दिन का समय दिया गया है और इतने कम समय में ग़रीब और कमजोर लोगों के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ जुटा पाना संभव नहीं होगा।
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव रामनरेश पांडे का भी यही कहना है कि चुनाव आयोग विशेष मतदाता पुनरीक्षण के बहाने अनुसूचित जाति-जनजाति और अल्पसंख्यक मतदाताओं के नाम सूची से हटा देगा। इनका कहना है कि यह गहन पुनरीक्षण एक माह में संभव नहीं है।
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मांगे जाने दस्तावेजों पर आपत्ति

बहुत से लोगों को कहना है कि चुनाव आयोग को यह काम या तो लोकसभा चुनाव से काफी पहले करना चाहिए था या फिर विधानसभा चुनाव के बाद करना चाहिए। ध्यान रहे कि मतदाता पुनरीक्षण का कार्यक्रम सालों भर चलता रहता है जिसमें वोटरों के नाम जोड़े और हटाए जाते हैं। लेकिन उसके लिए उन दस्तावेजों की मांग नहीं की जाती जिनकी मांग इस बार सत्यापन के लिए की जा रही है।
मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव ललन चौधरी का कहना है कि राजनीतिक दलों को विश्वास में लिए बिना ऐसे कार्यक्रम की शुरुआत अलोकतांत्रिक और अव्यावहारिक है। उनका कहना है कि वोटर लिस्ट में नाम बनाए रखने के लिए अपनी नागरिकता के साथ-साथ अपने माता-पिता का भी प्रमाण पत्र देना होगा। उनका यह भी कहना है कि बिहार में भूमि सर्वेक्षण इसलिए रोक दिया गया कि सबके पास दस्तावेज नहीं है तो वहां की गरीब जनता माता-पिता के जन्म के कागजात कैसे जुटाएगी? 

भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य का कहना है कि इस पुनरीक्षण का पैमाना और तरीका असम में हुए एनआरसी अभियान जैसा है। उनका कहना है कि वहां इस प्रक्रिया को पूरा करने में 6 वर्ष लगे तो भी सरकार ने एनआरसी को अंतिम सूची के रूप में स्वीकार नहीं किया। उन्होंने चिंता जताई कि यह अभियान भारी अव्यवस्था, बड़े पैमाने पर गलतियों व नाम काटे जाने का कारण बनेगा।