बिहार की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है, क्योंकि बीजेपी के अलीनगर से विधायक मिश्रीलाल यादव की विधानसभा सदस्यता को रद्द कर दिया गया है। दरभंगा की विशेष एमपी-एमएलए कोर्ट ने 27 मई को मिश्रीलाल यादव और उनके सहयोगी सुरेश यादव को 2019 के एक मारपीट और आपराधिक धमकी के मामले में दो साल की सज़ा सुनाई थी। इस सज़ा के आधार पर बिहार विधानसभा सचिवालय ने मिश्रीलाल की सदस्यता रद्द करने का फ़ैसला लिया। इसकी अधिसूचना 20 जून को जारी की गई। यह घटना आगामी बिहार विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका मानी जा रही है।

मिश्रीलाल यादव दरभंगा जिले के अलीनगर विधानसभा क्षेत्र से 2020 में बीजेपी के टिकट पर विधायक चुने गए थे। उनपर 2019 में उमेश मिश्रा नाम के व्यक्ति के साथ मारपीट और आपराधिक धमकी देने का आरोप लगा था। इस मामले में दरभंगा की विशेष अदालत ने मई 2025 में सुनवाई पूरी करने के बाद मिश्रीलाल और उनके सहयोगी सुरेश यादव को दोषी ठहराया। दोनों को दो साल की जेल और 500 रुपये का जुर्माना लगाया गया।
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क़ानून के अनुसार, किसी जनप्रतिनिधि को यदि दो साल या उससे अधिक की सज़ा सुनाई जाती है तो उनकी विधानसभा या संसद की सदस्यता अपने आप ख़त्म हो जाती है। इस नियम के तहत बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव ने मिश्रीलाल की सदस्यता रद्द करने का आदेश जारी किया।

बिहार विधानसभा सचिवालय ने इस क़ानून के तहत तत्काल कार्रवाई करते हुए 27 मई से प्रभावी रूप से मिश्रीलाल की सदस्यता रद्द कर दी। यह बिहार में 2020-2025 के बीच तीसरा मामला है, जिसमें किसी विधायक की सदस्यता सज़ा के कारण ख़त्म की गई है। इससे पहले 2022 में राष्ट्रीय जनता दल के दो विधायकों की सदस्यता भी इसी तरह रद्द की गई थी।

मिश्रीलाल यादव की सदस्यता रद्द होना बीजेपी के लिए एक बड़ा सियासी झटका है, खासकर तब जब बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों की तैयारियाँ जोरों पर हैं।

अलीनगर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी और राजद के बीच कड़ा मुक़ाबला रहा है। मिश्रीलाल की सदस्यता ख़त्म होने से क्षेत्र में बीजेपी की स्थिति कमजोर हो सकती है, क्योंकि उनकी जगह नए उम्मीदवार को स्थापित करने में समय और संसाधन लगेंगे।

विपक्षी दलों ने इस घटना को लेकर बीजेपी पर हमला बोला है। राजद ने कहा है कि बीजेपी के विधायक अपराध में लिप्त हैं और उनकी सदस्यता रद्द होना उनके भ्रष्ट चरित्र को दिखाता है। इसने कहा कि यह घटना भाजपा की स्वच्छ छवि के दावों पर सवाल उठाती है।
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मिश्रीलाल यादव ने अपनी सज़ा के ख़िलाफ़ ऊपरी अदालत में अपील करने की बात कही है। उनके वकील ने दावा किया कि यह मामला 'राजनीतिक साज़िश' का हिस्सा है और उनके ख़िलाफ़ ग़लत तरीक़े से आरोप लगाए गए हैं। हालांकि, विधानसभा सचिवालय ने सज़ा के आधार पर तत्काल कार्रवाई की, जिससे उनकी सदस्यता रद्द हो गई। मिश्रीलाल ने अभी तक इस मामले पर सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया है।

मिश्रीलाल यादव की सदस्यता रद्द होने से बिहार विधानसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन की स्थिति पर तत्काल प्रभाव तो नहीं पड़ेगा, क्योंकि गठबंधन के पास अभी भी बहुमत है। हालांकि, यह घटना बीजेपी की छवि को नुक़सान पहुँचा सकती है, खासकर तब जब विपक्ष इसे अपराध और भ्रष्टाचार से जोड़कर प्रचारित कर रहा है।
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माना जा रहा है कि यह मामला अलीनगर में आगामी चुनाव को और रोमांचक बना सकता है। राजद और अन्य विपक्षी दल इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताक़त झोंक सकते हैं, जबकि बीजेपी को एक मज़बूत और स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार की तलाश करनी होगी।