पाटलिपुत्र की धरती पर सियासत का हर रंग दिखता है। महान खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट की धरती है दानापुर तो यह चाणक्य की तपोस्थली भी। अंग्रेजों ने यहां छावनी बनाई जो कैंट के रूप में पहचानी जाती है। यही स्थल प्राकृतिक पक्षी अभ्यारण्य भी बन जाता है जब जून-जुलाई में मौसम करवट लेता है। ठीक ऐसे ही सियासी मौसम में भी दानापुर का इको सिस्टम बदल जाता है। दानापुर ने कभी लालू प्रसाद को भी विधायक बनाया। यादव बहुल इलाका है दानापुर जो पाटलिपुत्र लोकसभा की छह विधानसभा सीटों में से एक है।

चाय की दुकानें सियासत को समझाती हैं

गंगा किनारे चाय की दुकानें सियासी गपशप के लिए अनुकूल भी है, मशहूर भी। “इस बार किसका चांस लगता है?” थोड़ी सी बातचीत के बाद जैसे ही यह सवाल दागा, मटरगश्ती करते अंशुल यादव बोले, “दानापुर में तेजस्वी। कोई और नाम नहीं। उनके ही नाम पर वोट पड़ेंगे।“ निश्चित रूप से तेजस्वी आरजेडी के नेता हैं और बिहार में महागठबंधन के भी। इसलिए तेजस्वी के नाम की गूंज सुनाई पड़ना स्वाभाविक है। आरजेडी, कांग्रेस, कम्युनिस्ट सबकी जड़ें दानापुर की सियासी विरासत में महसूस की जा सकती हैं। इसका फायदा तेजस्वी को चेहरे के तौर पर मिलता है।

रोजगार नहीं है, लेकिन वोट मोदी को देंगे

हम पहुंचे दानापुर निजामत। संकरी गली। सड़क किनारे कूड़ों का ढेर। बहती नालियां। हां, हर घर नल योजना के अनुरूप नल भी लगे दिखे। मगर, रेशमा खातून ने बताया कि नल दिखाने के लिए ही है। पानी नहीं आता है या फिर गंदा आता है। टैंकर से पानी मिलता है लाइन में लगकर। पटना में ओला, ऊबर, रैपिडो से बाइक पर मूव करना आसान है। रैपिडो चला रहे युवा इंद्रजीत झा को नीतीश की सरकार में बिहार बदला हुआ नजर आया। सड़कें चकाचक हैं। मगर, रोजगार नहीं मिलने का दर्द भी दिखा कि मजबूरी में बाइक चला रहे हैं। “वोट किसे देंगे?” के जवाब में बोले इंद्रजीत कि हम तो फॉरवर्ड हैं, हिन्दू हैं। मोदी को ही देंगे। “तेजस्वी को क्यों नहीं?” थोड़ा सोचकर इंद्रजीत ने कहा कि तेजस्वी में बुराई नहीं है। मगर, तेजस्वी के नाम पर यादव जब बेकाबू हो जाते हैं तो खुद तेजस्वी भी उन्हें कंट्रोल नहीं कर पाते हैं। सोच कर ही हम सिहर जाते हैं कि इनकी सरकार आएगी तो क्या होगा?
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हम बिहटा पहुंचे ऑटो से। ऑटो क्या टोटो कहिए। रंगरूप ऑटोवाला था। बगल में बैठी महिला से जानना चाहा कि 10 हजार रुपये अकाउंट में आए या नहीं? तपाक से बोली, ‘आइल भैया’! तो “क्या नोट देने वाले को ही वोट करेंगे?” थोड़ा सोच कर जवाब दिया, “बात त सही बा। बाकी का करीं? नोट त सबके चाहीं। नीतीश कुमार अइसे केहू के बुरा नइखे करलें। “

एक दशक में बदल गई दानापुर की सियासत

2014 के बाद से दानापुर की सियासत भी बदली। लालू परिवार के खासमखास रामकृपाल यादव बीजेपी में आ गये। पाटलिपुत्र से सांसद तक बन गये। लगातार दो बार सांसद रहे। मगर, 2024 से पाटलिपुत्र की राजनीतिक फिजां जब बदली है तो उसका असर दानापुर विधानसभा क्षेत्र में भी पड़ता दिखा। आरजेडी के रीत लाल यादव ने बीजेपी की आशा देवी से सीट छीन ली। उनकी विधायकी छीन ली। 15,924 मतों का अंतर था।
एसआईआर के बाद दानापुर में 3.79 लाख मतदाता हैं। यहां यादव (25%) और भूमिहार-राजपूत (20%) हैं। ईबीसी और मुस्लिम भी महत्वपूर्ण हैं। ओबीसी और ईबीसी मिलकर 50 फीसदी से ज्यादा हो जाते हैं। दानापुर में एनडीए और महागठबंधन में आमने-सामने का मुकाबला है। एनडीए कमजोर हुआ है तो महागठबंधन की ताकत बढ़ती चली गयी है। आरजेडी और बीजेपी के बीच परंपरागत संघर्ष देखने को एक बार फिर मिलेगा। मीसा भारती के सांसद बन जाने के बाद दानापुर में आरजेडी की स्थिति पहले से मजबूत दिखती है।

वोट चोरी और हिन्दू-मुसलमान मुद्दा

वोट चोरी मुद्दा है या नहीं, इसे भी जानने की हमने कोशिश की। अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले चंदन निषाद ने कहा, “वोट चोरी नहीं डकैती बोलिए।” बीजेपी को चुनाव जीतना आता है। साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनाती है बीजेपी। लेकिन, चंदन इसे गलत ठहराते हुए नहीं दिखते। वे कहते हैं कि ऐसा सभी राजनीतिक दल कहते हैं। हालांकि चंदन मानते हैं कि वोट चोरी नहीं होना चाहिए।
दानापुर में कैंट इलाके में हिन्दू-मुसलमान मुद्दा भी दिखा। हरि हलवाई ने कहा कि हिन्दुओँ के लिए बोलने वाली एक मात्र पार्टी बीजेपी है। बाकी सब पार्टी केवल मुसलमानों के लिए बोलती है। हरि कहते हैं कि मुसलमानों का वोट लेने के लिए कांग्रेस, आरजेडी गूह खाने के लिए भी तैयार रहते हैं।
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दानापुर में दलित वोटर भी अहम हैं। दलित और मुस्लिम मिलाकर 22 से 25 फीसदी वोटर हैं। इलाके में दलितों का रुझान महागठबंधन के पक्ष में दिखा। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की घटना से दलित आहत हैं। राजा पासवान बोले कि वैसे तो हम एनडीए के समर्थक हैं लेकिन दलितों के साथ जो कुछ हो रहा है वह गलत है। हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। अगर दलितों (करीब 12.5 %) का मूड बदला तो दानापुर ही नहीं पूरे प्रदेश में इसका असर दिखेगा। पहले यही दलित वोटर एनडीए की ओर झुके होते थे। कह सकते हैं कि दानापुर का स्विंग वोटर दलित ही हैं। दलित ही तय करेंगे दानापुर की सियासत का भविष्य।