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फाइल फोटो

काराकाट लोकसभा सीटः क्या पवन सिंह के कारण उपेंद्र कुशवाहा की बढ़ गई है मुश्किलें?

बिहार की काराकाट लोकसभा सीट ने एनडीए को परेशान कर रखा है। एनडीए की परेशानी का कारण यहां इंडिया गठबंधन नहीं है, बल्कि यहां निर्दलीय प्रत्याशी और भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार पवन सिंह हैं। वह इन दिनों इस सीट पर एनडीए के लिए मुसीबत बन चुके हैं। 
यहां एक जून को सातवें और अंतिम चरण में मतदान है। लेकिन पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाह के इस सीट पर चुनाव लड़ने के कारण यह सीट पूरे बिहार में चर्चा का केंद्र काफी पहले से ही बनी हुई है। तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
पवन सिंह भाजपा के करीबी रहे हैं, लेकिन वहीं भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के लिए इस सीट पर मुश्किलें पैदा कर रहे हैं। 
हाल यह है कि अगर इस सीट पर एनडीए प्रत्याशी और राष्ट्रीय लोक मोर्चा के नेता उपेंद्र कुशवाहा की हार होती है तो इसका कारण पवन सिंह ही माने जायेंगे।
पवन सिंह को भाजपा पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से अपना उम्मीदवार बनाना चाहती थी। भाजपा यहां टीएमसी के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ उन्हें उतार कर बिहारी बनाम बिहारी का मुकाबला देना चाहती थी। 
लेकिन उन्होंने आसनसोल से चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। इसके बाद वह काराकाट से बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपना नामांकन दाखिल कर चुके हैं। 
9 मई को उन्होंने नामांकन दाखिल करने के दिन ही भारी भीड़ जुटा कर अपनी ताकत का एहसास करा दिया है। उनके यहां चुनाव लड़ने से अब मुकाबला त्रिकोणीय हो चुका है।
इंडिया गठबंधन से इस सीट पर भाकपा- माले के प्रत्याशी राजा राम सिंह चुनाव लड़ रहे हैं।राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि पवन सिंह के चुनावी मैदान में आने के बाद राजा राम सिंह का पलड़ा भारी होता दिख रहा है। 
इस लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीट आती हैं। इसमें काराकाट विधानसभा सीट पर भाकपा माले के विधायक हैं। जबकि शेष सभी 5 सीटों पर राजद के विधायक हैं। ऐसे में महागठबंधन की जड़े यहां काफी मजबूत हैं।  
पवन सिंह के चुनाव लड़ने की स्थिति में माना जा रहा है कि एनडीए को भारी नुकसान हो सकता है। पवन सिंह को जो वोट मिल सकता है ये वही वोट है जो भाजपा का परंपरागत वोट बैंक है। अगर पवन सिंह की तरफ इसका बड़ा हिस्सा चला गया तो उपेंद्र कुशवाहा को यह नहीं मिल पायेगा। 
उपेंद्र कुशवाहा इस उम्मीद में थे कि उन्हें भाजपा का वोट बैंक माने जाने वाले सवर्ण, वैश्य का एकमुश्त वोट मिल जायेगा। लेकिन पवन सिंह के चुनावी मैदान में आने के बाद माना जा रहा है कि वे सवर्ण वोट काट सकते हैं। बिहार में इंडिया गठबंधन के घटक दलों को महागठबंधन भी कहा जाता है, इसके नेता दावा कर रहे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ उनकी सहयोगी भाजपा ने ही राजनीति कर दी है। 
उनका दावा है कि उपेंद्र कुशवाहा को हराने के लिए ही भाजपा ने पवन सिंह को यहां से खड़ा कर दिया है। इसके पीछे वे तर्क देते हैं कि पवन सिंह आरा सीट से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, जहां उनकी लोकप्रियता बिहार में सबसे ज्यादा मानी जाती है। वह इसे छोड़ कर काराकाट सीट से लड़ रहे हैं तो इसके पीछे कुछ तो राजनीति होगी। 
इस सीट पर आम लोगों के बीच चर्चा इस बात की भी हो रही है कि भाजपा और जदयू उपेंद्र कुशवाहा का राजनैतिक करियर खत्म करने के लिए कोशिश कर रही हैं। 

वहीं भाजपा नेता इन दावों को खारिज कर रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा भी इन दावों को खारिज करते हुए कहते हैं कि एनडीए में एकता है। 

इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में जदयू के महाबली सिंह को जीत मिली थी। इस बार एनडीए के सीट बंटवारे में यह सीट राष्ट्रीय लोक मोर्चा के खाते में गई, जिसके बाद उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू के महाबली सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा को 84 हजार वोटों से हराया था। 

उपेंद्र कुशवाहा 2014 से 2018 तक केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। वह जदयू में भी लंबे समय तक रह चुके हैं। नीतीश कुमार से मतभेद के कारण उन्होंने जदयू को छोड़ अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा बनाई थी। इसी पार्टी से वह उम्मीदवार हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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