बिहार की राजनीति में एक बार फिर तब हलचल मच गई जब महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे तेजस्वी यादव ने शुक्रवार को कहा कि जल्द ही और उपमुख्यमंत्रियों के चेहरे की घोषणा होगी। तेजस्वी ने मीडिया से बातचीत में कहा, 'आपको कुछ दिनों में पता चल जाएगा कि और उपमुख्यमंत्री होंगे।' यह बयान न केवल बिहार की सियासत में नई बहस छेड़ दी है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए महागठबंधन की रणनीति को भी दिखा दिया है।

एक दिन पहले ही पटना में एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का आधिकारिक चेहरा घोषित किया गया। इनके अलावा वीआईपी के मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर पेश किया गया। यह कदम कई हफ्तों से चली आ रही आंतरिक कलह और सीट बंटवारे की अनिश्चितता को दूर करने के लिए उठाया गया। इसके साथ ही गहलोत ने कहा कि सरकार बनेगी तो 'एक से ज्यादा उपमुख्यमंत्री' बनेंगे। अब तेजस्वी ने भी कहा है कि जल्द ही और उपमुख्यमंत्रियों के नाम की घोषणा की जाएगी।
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ये नाम कौन-कौन हो सकते हैं?

मुकेश सहनी के अलावा अभी तक किसी का नाम आधिकारिक रूप से नहीं लिया गया है। लेकिन घोषणा में कहा गया है कि एक से अधिक उपमुख्यमंत्री बनेंगे। माना जा रहा है कि अन्य नाम कांग्रेस और वाम दल से हो सकते हैं। इसमें संभावित नाम किसी दलित या मुस्लिम नेता का हो सकता है। वैसे, बिहार में कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम दलित नेता हैं। वैसे, कहा तो यह भी जा रहा है कि क्या सीपीआई (एम) एल से भी कोई इस पद का दावेदार हो सकता है। 

महागठबंधन को क्या फायदा होगा?

यह घोषणा महागठबंधन के लिए रणनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकती है, लेकिन चुनौतियां भी हैं। इन घोषणाओं से महागठबंधन को जातीय आधार पर वोटबैंक को मज़बूती मिलेगी। तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने से MY (मुस्लिम-यादव) वोट बैंक मजबूत होता है, जबकि उपमुख्यमंत्री पदों से अन्य पिछड़े वर्गों यानी EBC को लुभाने का प्रयास है। MY कोर यानी 25-30% वोट के साथ EBC के 36% को जोड़कर गठबंधन का वोट शेयर 50-55% तक पहुंच सकता है। मुकेश सहनी की वजह से उत्तर बिहार यानी मिथिला, सीमांचल में 15-20 सीटों पर फायदा हो सकता है, जहाँ 2020 में महागठबंधन कमजोर था। युवा वोटरों को तेजस्वी का '20 महीने में 20 साल का काम' वाला वादा आकर्षित कर सकता है।

तेजस्वी यादव का यह बयान ऐसे समय में आया है जब 6 और 11 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और महागठबंधन अपनी पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है।

तेजस्वी ने साफ़ किया कि बिहार की जनता मौजूदा सरकार से नाराज़ और असंतुष्ट है। उन्होंने कहा, 'पिछले 20 सालों से मौजूदा सरकार बिहार की जनता का शोषण कर रही है। लोग बदलाव चाहते हैं।' यह बयान नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार पर सीधा हमला है, जिसे तेजस्वी ने बार-बार 'बाहरी ताकतों' के प्रभाव में होने का आरोप लगाया है। बाहरी ताक़तों को लेकर उनका इशारा पीएम मोदी और अमित शाह की ओर है और वह आरोप लगाते हैं कि नीतीश उनके इशारों पर काम करते हैं।

सहरसा में चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, 'मोदी जी गुजरात में फैक्ट्रियां लगाते हैं और बिहार में जीत चाहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं होगा। हम बिहारी हैं, बाहरी लोगों से नहीं डरते।' यह बयान न केवल बिहार की क्षेत्रीय अस्मिता को उभारने की कोशिश है, बल्कि बीजेपी के खिलाफ जनता को एकजुट करने की रणनीति भी दिखाता है।
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महागठबंधन की रणनीति

तेजस्वी यादव को हाल ही में महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया है, जबकि विकासशील इंसान पार्टी यानी वीआईपी के नेता मुकेश सहनी को उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया है। यह घोषणा चुनाव से महज दो सप्ताह पहले हुई है, जिसके कारण महागठबंधन के सामने एकजुट होकर पूरे जोश के साथ प्रचार करने की चुनौती है। सीट-बँटवारे की बातचीत में मुकेश सहनी की सख्त मोलभाव की रणनीति ने महागठबंधन के भीतर कुछ तनाव पैदा किया था, लेकिन अब उनकी भूमिका तय होने से गठबंधन को मजबूती मिलने की संभावना है।

तेजस्वी का राघोपुर सीट से चुनाव लड़ना तय है, जो उनका पारंपरिक गढ़ रहा है। उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी का आभार जताया, जिन्होंने उन्हें गठबंधन का चेहरा बनाया। यह ध्यान देने योग्य है कि कांग्रेस ने पहले तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने से परहेज किया था, लेकिन अब ऐसा करना पड़ा। समझा जाता है कि वोटर अधिकार यात्रा के दौरान राहुल और तेजस्वी के बीच की नज़दीकी ने इस फ़ैसले को आसान किया।
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बिहार की जनता का मूड

बिहार में दो चरणों में होने वाले चुनाव और 14 नवंबर को आने वाले परिणाम राज्य की सियासत के लिए निर्णायक होंगे। तेजस्वी का 'बिहार को बिहारी चलाएंगे' का नारा क्षेत्रीय गौरव को उभारने और एनडीए को 'बाहरी' करार देने की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, एनडीए के पास नीतीश कुमार का अनुभव और बीजेपी का मजबूत संगठनात्मक ढांचा है, जो महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती है।

तेजस्वी का यह दावा कि और उपमुख्यमंत्रियों की नियुक्ति होगी, गठबंधन के भीतर विभिन्न दलों को संतुष्ट करने और सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश हो सकती है। बिहार में जातिगत समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं, और इस तरह की घोषणाएं विभिन्न समुदायों को आकर्षित करने का प्रयास हो सकती हैं।

तेजस्वी यादव का यह बयान बिहार की सियासत में नया जोश भरने की कोशिश है। महागठबंधन को अब सीमित समय में अपनी रणनीति को अमलीजामा पहनाना होगा। तेजस्वी की युवा छवि, क्षेत्रीय अस्मिता का मुद्दा और सामाजिक समीकरणों को साधने की कोशिश महागठबंधन को कितना फायदा पहुंचाएगी, यह तो 14 नवंबर को ही पता चलेगा। लेकिन यह साफ है कि बिहार का यह चुनाव केवल सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधारा और अस्मिता की जंग भी है।