छठ पर बिहार जाने के लिए गुजरात के सूरत में प्रवासियों की लाइन
ताज्जुब ये कि गुजरात और देश की एक-एक दशक से अधिक समय से कमान संभाल चुके मोदी बड़ी आसानी से ये भूल गए कि बिहार में पिछले दो दशक में अधिकतर समय बीजेपी नीत एनडीए की ही सरकार रही है !! तब फिर विपक्षी महागठबंधन बिहार से लाखों की तादाद में मजदूरों के पलायन के लिए कैसे जिम्मेदार है ? यदि पिछले दो दशक में बीजेपी की सत्ता में साझेदारी से मुख्यमंत्री बने हुए नीतीश कुमार की सरकार और केंद्र की मोदी सरकार बिहार में भरपूर पूँजी निवेश करतीं तो बिहार के लगभग आधे मर्दों को रोज़गार के लिए पलायन क्यों करना पड़ता?
नीतीश सरकार के राज में न तो वांछित पूँजी निवेश हुआ है और न ही बुनियादी ढांचा खड़ा हुआ है! उल्टे बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की नीतीश सरकार की नाक के नीचे बने पुल एक के बाद एक भरभरा कर ढह रहे हैं! राजनीतिक बेशर्मी का आलम फिर भी ये है कि मोशा हों या नीतीश, बिहार विधानसभा चुनाव में वोट बटोरने के लिए अपने बीस साला राज के बाद भी राज्य की बदहाली का ठीकरा राजद और कांग्रेस के माथे पर फोड़ते नहीं अघा रहे!
नीतीश राज में एक हफ्ते में नौ हत्याओं के बावजूद एनडीए के कर्णधार मतदाता को कभी जंगल राज की दुहाई दे के डराते हैं तो कभी पलायन का हौवा दिखाकर! सवाल ये कि पिछले बीस साल में यदि बिहार में मोदी और नीतीश सरकारों ने उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित किया होता तो क्या ऐन विधानसभा चुनाव के पहले महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों सहित समाज के विभिन्न मतदाता समूहों पर जनता के पैसों की बौछार करनी पड़ती?
मुफ्त बिजली और महिलाओं को नकद राशि देने की विपक्षी सरकारों की पहल को रेवड़ियां बाँटना बताने वाले प्रधानमंत्री मोदी आख़िर उसी लकीर के फ़क़ीर क्यों बन गए? ज़ाहिर है कि मोदी हों या नीतीश, दोनों में से कोई भी बिहार में समुचित रोज़गार सुविधा बढ़ा कर राज्य से मज़दूरों का पलायन रोकने के ठोस उपाय नहीं करना चाहता। क्योंकि यदि बिहार से पलायन रुका तो क्या गुजरात और महाराष्ट्र के कारख़ानों सहित रोज़मर्रा सेवाएं ठप नहीं हो जाएँगी? यदि ऐसा हुआ तो मोदी गुजरात को विपक्ष के लिए अजेय कैसे बनाये रख पाएंगे?
सिर्फ गुजरात ही नहीं अब तो राजधानी दिल्ली और मुंबई सहित महाराष्ट्र में भी बीजेपी और एनडीए की ही सरकार हैं। जरा सोचिए कि दिल्ली से बिहार के प्रवासी मजदूरों को यदि अपने गांव के आसपास रोज़गार मिल गया तो राजधानी में तमाम सेवाएं ठप होने से कैसी अफरा तफरी मच जाएगी? लेकिन इसकी दुहाई देकर बिहार जैसे प्रखर चेतना वाले राज्य को पिछड़ा और बीमारू तो नहीं रखा जा सकता।
यदि बिहार के प्रवासी अपने घर लौटे तो दूसरे राज्यों से आकर महानगरों में काम धंधा संभालने वाले हाथों की आबादी में दुनिया में अव्वल भारत में कोई कमी नहीं है । आबादी ही नहीं बल्कि युवा हाथों की संख्या भी भारत में किसी भी अन्य देश के मुकाबले सबसे ज़्यादा है । इसलिए यहाँ कमी काम करने को उपलब्ध हाथों की नहीं बल्कि रोज़गार के अवसरों की है । यदि दो दशक से राज्य में और 11 साल से केंद्र में सत्तारूढ़ नीतीश और मोदी का गठबंधन बिहार से पलायन नहीं रोक पाया तो फिर कौन रोकेगा?
क्या विपक्ष रोकेगा जिसको चुनाव में साम दाम दंड भेद का हरेक हथकंडा अपना कर मोशा की बीजेपी और उनके एनडीए के सहयोगी दल सत्ता से कोसों दूर पटकने में लगे रहते हैं? फिर भी प्रधानमंत्री मोदी का तुर्रा देखिए कि लालटेन यानी राजद और पंजे यानी कांग्रेस के शिकंजे ने बिहार को पलायन मुक्त नहीं होने दिया!!! जबकि बिहार हो या गुजरात अथवा मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ हों दो दशक से बीजेपी-एनडीए दलों शासित राज्य उनके शिकंजे में फँसे नागरिक अधिकारों, भविष्य की शिक्षा और सामाजिक सौहार्द के लिए छटपटा रहे हैं।