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फाइल फोटो

जाति जनगणना से राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ा नीतीश का कद 

बिहार सरकार ने राज्य में जाति जनगणना के आंकड़ों को जारी कर दिया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तमाम बाधाओं के बावजूद बिहार में जाति जनगणना कराने को लेकर डटे रहे। 
माना जा रहा है कि यह नीतीश कुमार की जिद ही थी कि उन्होंने इसे करवा कर और इसके आंकड़ों को सार्वजनिक कर के ही दम लिया। 
राजनीति की नब्ज को समझने वालों का मानना है कि पहले विपक्ष को एकजुट कर और अब बिहार में जाति जनगणना करवा कर विपक्षी दलों को नया मुद्दा देकर नीतीश कुमार ने बेहद समझदारी से भाजपा को बड़ी चोट पहुंचाई है। नीतीश कुमार के इन दो काम ने भाजपा को बेहद परेशान कर दिया है। 
माना जा रहा है कि विपक्ष की एकजुटता और जाति जनगणना का मुद्दा ये दोनों भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में हरवा सकते हैं। 2024 के बाद नीतीश कुमार के राजनीतिक करियर के खत्म होने की भविष्यवाणी करने वाले उनके विरोधी भी उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य मान रहे हैं। 

यह नीतीश कुमार की सफलता मानी जाएगी

बिहार में जब जाति जनगणना की बात अगस्त 2021 शुरु हुई थी तो नीतीश कुमार भाजपा के साथ गठबंधन कर के सरकार चला रहे थे। गठबंधन सहयोगी भाजपा ने तब किंतु-परंतु के साथ जाति जनगणना पर उन्हें समर्थन दिया था लेकिन उसके नेताओं ने इसपर सवाल भी खूब उठाए थे। 

वहीं दूसरी ओर तब विपक्ष में रहे राजद और उसके नेता तेजस्वी यादव ने जाति जनगणना पर नीतीश कुमार का साथ दिया था। तब पक्ष और विपक्ष दोनों मिलकर इसके लिए आगे बढ़े थे। 10 दलों के नेता दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे। केंद्र से उस समय देश भर में जाति जनगणना कराने की मांग की गई थी लेकिन केंद्र ने इंकार कर दिया। केंद्र के इंकार के बाद बिहार सरकार ने अपने दम पर राज्य में जाति जनगणना कराने की घोषणा कर दी। 

इसका विरोध भी खूब हुआ। कई भाजपा नेताओं ने नीतीश पर खूब कटाक्ष किए। कई लोग इसके विरोध में पटना हाईकोर्ट चले गये। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन अंत में फैसला बिहार सरकार के पक्ष में आया। कानूनी अड़चनों ने इस जाति जनगणना को और इसके आंकड़ों को सामने आने से रोकने की कोशिश की लेकिन इन सब के बावजूद नीतीश इसे सामने लाने में कामयाब रहे। 

भले ही बिहार में जाति जनगणना करवाने में नीतीश कुमार को राजद और कांग्रेस का समर्थन मिला हो लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह नीतीश कुमार की सफलता मानी जाएगी। 

इस काम ने नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र में ला दिया है और उनका कद भी बढ़ा है। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि अब देश भर की विपक्षी नेताओं के बीच नीतीश कुमार का कद और भी तेजी से बढ़ेगा। 

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विपक्ष को दिया नया चुनावी मुद्दा

नीतीश कुमार ने जाति जनगणना करवा कर देश भर के भाजपा विरोधी दलों या विपक्ष को अब एक नया चुनावी मुद्दा दे दिया है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल अब जाति जनगणना की मांग को जोर-शोर से उठाएंगे। लोकसभा चुनाव में यह बड़ा चुनावी मुद्दा बन जायेगा। यह इतना महत्वपूर्ण मुद्दा है कि भाजपा के पास इसकी कोई काट नहीं दिखती है। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि जाति जनगणना का मुद्दा लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है। 
अगर लोकसभा चुनाव में जाति जनगणना बड़ा मुद्दा बनता है और इंडिया गठबंधन को इसका फायदा होता है तो इसका काफी हद तक श्रेय नीतीश कुमार को मिलेगा। उन्होंने जाति जनगणना करवा कर भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे की काट के रूप में विपक्ष को वह हथियार दे दिया है जो मौजूदा भारतीय राजनीति की पूरी तस्वीर बदल सकता है। 

नीतीश ने ही विपक्ष को किया है एकजुट 

नीतीश कुमार ही वह नेता है जिन्होंने विपक्षी दलों को एकजुट किया है। वह करीब एक वर्ष से विपक्षी दलों के नेताओं को एकजुट करने में लगे रहे हैं। कई राज्यों का दौरा कर वहां के क्षेत्रीय दलों के नेताओं से मिले और उन्हें एकजुट होने के लिए मनाया। 
नीतीश कुमार ने इस वर्ष 23 जून को पटना में विपक्षी दलों की बैठक आयोजित करवाई और पहली बार करीब डेढ़ दर्जन विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने में कामयाबी पाई। बाद में उनकी कोशिशों का परिणाम इंडिया गठबंधन के रूप में सामने आया। इसके बाद नीतीश को राष्ट्रीय राजनीति के बड़े खिलाड़ी के तौर पर देखा जाने लगा।
इस बैठक के बाद नीतीश कुमार को विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के संयोजक पद के दावेदार के रूप में देखा जाने लगा। बाद के दिनों में वे गठबंधन के संयोजक भले ही नहीं बने लेकिन एक मजबूत चेहरा बन कर उभरे हैं। 
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नीतीश के जातिगत गणना के मुद्दे को कांग्रेस ने अपनाया

बिहार सरकार द्वारा इसके आंकड़े जारी करने के कुछ ही देर बाद कांग्रेस नेताओं ने अपनी प्रतिक्रिया में बेहद मजबूती से जाति जनगणना की मांग कर दी है। 
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक्स पर लिखा है कि बिहार की जातिगत जनगणना से पता चला है कि वहां ओबीसी, एससी और एसटी 84 प्रतिशत है। केंद्र सरकार के 90 सचिवों में सिर्फ़ 3 ओबीसी हैं, जो भारत का मात्र 5 प्रतिशत बजट संभालते हैं! इसलिए, भारत के जातिगत आंकड़े जानना ज़रूरी है। जितनी आबादी, उतना हक़, ये हमारा प्रण है।
वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर लिखा है कि बिहार सरकार ने अभी राज्य में कराए गए जाति आधारित सर्वे के नतीजे जारी कर दिए हैं। 
इस पहल का स्वागत करते हुए और कांग्रेस सरकारों द्वारा कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों में इसी तरह के पहले के सर्वेक्षणों को याद करते हुए, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अपनी मांग दोहराती है कि केंद्र सरकार जल्द से जल्द राष्ट्रीय जाति जनगणना कराए। 
यूपीए-2 सरकार ने, वास्तव में इस जनगणना के कार्य को पूरा कर लिया था लेकिन इसके नतीजे मोदी सरकार ने जारी नहीं किए। सामाजिक सशक्तिकरण कार्यक्रमों को मज़बूती प्रदान करने और सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने के लिए ऐसी जनगणना आवश्यक हो गई है।
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क़मर वहीद नक़वी
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