काफी जोड़ तोड़ और मान मनौव्वल के बाद रविवार की शाम बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में सीट शेयरिंग की घोषणा तो हो गई लेकिन जो बात सबसे चौंकाने वाली है वह यह है कि नीतीश कुमार अब इस गठबंधन में बड़े भाई का रुतबा खो चुके हैं। 

नीतीश कुमार इस समय अपने सबसे बुरे दौर में माने जाते हैं, इसके बावजूद उनकी पार्टी की यह ज़िद थी कि प्रतीकात्मक रूप से ही सही सीट शेयरिंग में उसे सबसे बड़ी पार्टी का दर्जा दिया जाए। इसीलिए आज की घोषणा से पहले जो सीट शेयरिंग का फॉर्मूला सामने आ रहा था उसमें जदयू को 102 और भारतीय जनता पार्टी को 101 सीट दिए जाने की बात कही जा रही थी। यानी जो भी सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो उसमें सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जदयू को रखा जाए और उसकी सीट बीजेपी से एक ही सही लेकिन ज्यादा हो।
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बीजेपी बराबरी पर आई

अब घोषित सीट शेयरिंग फार्मूला के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी उतनी ही सीटों (101) पर चुनाव लड़ेगी जितनी सीट पर नीतीश कुमार का जनता दल यूनाइटेड लड़ेगा। यानी बड़े भाई को अब कम सीटों पर राजी करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने बराबरी का दर्जा पा लिया है। यह वही नीतीश कुमार हैं जो 2020 के विधानसभा चुनाव में इस बात पर अड़े थे कि बिहार में एनडीए का चेहरा वही होंगे। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी यह बात माननी पड़ी थी लेकिन अब माहौल बदल गया है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस सीट शेयरिंग फॉर्मूला से 2025 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को पहला झटका लग चुका है। 2020 की विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड ने सीट शेयरिंग फॉर्मूला में भारतीय जनता पार्टी से पांच सीटें ज्यादा ली थीं। तब जनता दल यूनाइटेड ने 115 उम्मीदवार दिए थे जबकि भारतीय जनता पार्टी की तरफ़ से 110 उम्मीदवार दिए गए थे। 

नीतीश कुमार के सबसे करीबी माने जाने वाले जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा की भी एक सीट कम की गई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में जीतन राम मांझी की पार्टी को 7 सीटें दी गई थीं, जिनमें से उसने चार पर जीत हासिल की थी लेकिन इस बार उसे 6 सीटें दी गई हैं।

चिराग पासवान की स्थिति

इस बार की सीट शेयरिंग की दूसरी खास बात यह है कि चिराग पासवान की लोजपा (आर) को 29 सीटें दी गई हैं। पिछली बार एनडीए में रहते हुए भी चिराग पासवान की पार्टी ने एनडीए से अलग होकर विधानसभा चुनाव में अपने 135 उम्मीदवार खड़े किए थे। तब चिराग पासवान की पार्टी को केवल एक सीट पर जीत मिली थी लेकिन समझा जाता है कि उस समय उनके उम्मीदवारों ने नीतीश कुमार के कम से कम तीन दर्जन उम्मीदवारों को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक दिलचस्प बात यह भी है कि जिस उम्मीदवार ने चिराग पासवान की पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी वह भी उन्हें छोड़ गया था।

इस साल के विधानसभा चुनाव में एनडीए के घटक दलों में एक और बदलाव यह है कि उपेंद्र कुशवाहा अपनी नई पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के साथ यहां बने हुए हैं। उन्हें सीट शेयरिंग फॉर्मूला में छह विधानसभा क्षेत्र दिए गए हैं। पिछली बार उपेंद्र कुशवाहा अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ एआईएमआईएम और बहुजन समाज पार्टी के गठबंधन में थे। 2020 के विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने 104 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन इसका खाता भी नहीं खुल पाया था। 
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नीतीश के लिए बड़ा झटका?

2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए में चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की वापसी ने भारतीय जनता पार्टी के सामने यह मुश्किल खड़ी कर दी थी कि वह सीट शेयरिंग कैसे करे। बताया जा रहा था कि जहां चिराग पासवान 40 सीट और जीतन राम मांझी कम से कम 15 सीट चाह रहे थे वहीं उपेंद्र कुशवाहा भी लगभग इतनी ही सीटों के उम्मीदवार थे।

फिलहाल, भारतीय जनता पार्टी यह दिखाने में कामयाब नजर आती है कि उसने सभी घटक दलों को मना लिया है लेकिन जानकार कहते हैं कि जनता दल यूनाइटेड और नीतीश कुमार के लिए यह एक बड़ा झटका है। नीतीश कुमार की पार्टी में इस समय दो धड़े माने जाते हैं। एक धड़ा वह है जो नीतीश कुमार की नीति और सिद्धांतों के साथ है और पूरी तरह उनके लिए समर्पित है लेकिन दूसरा धड़ा भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा के करीब माना जाता है। कहा जा रहा है कि जो धड़ा भारतीय जनता पार्टी के करीब है उसी ने इस सीट शेयरिंग के लिए नीतीश कुमार को तैयार किया है।

जनता दल यूनाइटेड के सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार चाहे जितनी बुरी हालत में हों लेकिन वह यह चाहते थे कि भारतीय जनता पार्टी उनकी पार्टी से कम सीटों पर चुनाव लड़े। लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी उन्हें पीछे धकेलने में कामयाब नज़र आती है और इसका जनता दल यूनाइटेड के समर्थकों-कार्यकर्ताओं और नेताओं पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है। 
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नीतीश कुमार की रेवड़ियाँ

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मुफ्त की रेवड़ियों का ऐलान करके नीतीश कुमार ने कुछ हद तक अपने खोए समर्थन को वापस पाया है लेकिन अभी इस बात में शक है कि यह उनके लिए काफी होगा। मुफ्त की रेवड़ियों में सबसे प्रमुख बात यह है कि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के नाम पर हर परिवार की एक महिला के खाते में ₹10000 देने का वादा किया है और लगभग एक करोड़ महिलाओं को ये पैसे मिल भी चुके हैं। 

इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी ने उनकी सीटों की संख्या कम क्यों की? जानकारों का कहना है कि इसकी वजह यह है कि भारतीय जनता पार्टी अब अपने कार्यकर्ताओं को साफ़ तौर पर यह बताना चाहती है कि नीतीश कुमार का समय पूरा हो चुका है और यह उनके 20 साल के शासन के अंत की शुरुआत हो सकती है। इसके साथ ही बीजेपी यह संदेश भी देना चाहती है कि बिहार में एनडीए की सरकार का मतलब होगा भाजपा की सरकार।