भ्रष्टाचार के आरोपों ने बिहार में बीजेपी को बैकफुट पर ला खड़ा किया है। लालू-राबड़ी-तेजस्वी परिवार पर भ्रष्टाचार के लगे आरोपों को मुद्दा बनाती रही बीजेपी की जुबान इन दिनों बंद है। प्रशांत किशोर ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी, स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के खिलाफ तथ्यों के साथ भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर सियासी जगत में सनसनी फैला दी है। मगर, सबसे ज्यादा बेचैनी बीजेपी के भीतर है। यहां अटल-आडवाणी युग से जुड़े बीजेपी और संघ के ईमानदार नेता सकदम हैं। वे इस स्थिति को न सहन कर पा रहे हैं और न ही इस पर कुछ बोल पा रहे हैं। एक घुटन जैसी स्थिति है।
अंदरखाने की बेचैनी
न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बेचैन हैं बल्कि बिहार के स्थानीय नेताओं में भी हड़कंप है। हाल में मोदी-शाह के भाषणों में भ्रष्टाचार का जिक्र तक नहीं दिखा है। वहीं बीजेपी और संघ से जुड़े नेता-कार्यकर्ता घुटन महसूस कर रहे हैं। बीजेपी के एक कद्दावर नेता ने नाम उद्धृत न करने की शर्त पर कहा कि इच्छा तो होती है कि टीवी चैनल पर ही कह डालूं कि अटल-आडवाणी के युग में भ्रष्टाचार के आरोप लगते ही इस्तीफे हो जाया करते थे तो आज ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? मगर, क्या करें, बेबस हैं।
ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी में कट्टर ईमानदार छवि वाले नेता नहीं हैं। उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा हों या फिर मंत्री जनक राम या फिर नंद किशोर यादव सरीखे नेता- इनके नाम सम्मान के साथ लिए जाते हैं। पूर्व सांसद आर के सिंह, डॉ. सीपी ठाकुर, पूर्व मंत्री नीतीश मिश्रा हों या फिर पूर्व विधायक डॉ. उषा विद्यार्थी सरीखे नेता, इनकी भी खूब साख है। मगर, इनकी खामोशी अब खुद इनसे सवाल करने लगी है। हालाँकि इक्के-दुक्के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से भी जुबान खोली है।
आरके सिंह ने आवाज़ उठाई पर अब वे भी चुप
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह का बयान तो न सिर्फ बीजेपी के लिए बल्कि एनडीए के लिए झटका है। आरके सिंह ने साफ-साफ कहा है कि आरोपी नेता सफाई दें, वरना इस्तीफा दें। यह बयान भाजपा के भीतर भ्रष्टाचार पर पैदा हो रही अंदरूनी कलह की स्थिति को उजागर करता है। मगर, अब आरके सिंह को भी चुप करा दिया गया है। ऐसे में जो नेता कुछ बोलना भी चाहते हैं वो सटक गये हैं। बीजेपी में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो पार्टी को ओबीसी नेता की ज़रूरत को देखते हुए सम्राट चौधरी पर किसी कार्रवाई को रणनीतिक तौर पर गलत मानते हैं, वहीं ईमानदार और बीजेपी के निष्ठावान लोग यह मानते हैं कि भ्रष्टाचार पर अपने नेताओं का बचाव करने से पार्टी का भला नहीं होगा। सम्राट चौधरी (कुशवाहा), दिलीप जायसवाल (यादव) और मंगल पांडे (भूमिहार) जैसी जातियों के नेताओं को बचाने की होड़ में भाजपा अपनी 'भ्रष्टाचार-विरोधी' छवि खो रही है। राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि प्रशांत किशोर कई अन्य बीजेपी नेताओं के खिलाफ भी सबूत लेकर सामने आने वाले हैं।
सम्राट चौधरी पर न केवल वित्तीय अनियमितताओं के आरोप हैं बल्कि सात हत्या के मामलों में भी नाम आने का दावा प्रशांत किशोर ने किया है। दिलीप जायसवाल पर एक अल्पसंख्यक मेडिकल कॉलेज को अवैध तरीके से हड़पने का इल्जाम है, जबकि मंगल पांडे पर मंत्री रहते हुए भ्रष्टाचार के पुराने केसों को फिर से उछाला गया है।
किशोर ने इन्हें 'लालू प्रसाद से भी ज्यादा भ्रष्ट' बताते हुए सबूतों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। ये आरोप कोई नई बात नहीं हैं। सम्राट चौधरी पर शिल्पी जैन हत्याकांड जैसी पुरानी घटनाओं का जिक्र हो रहा है, और जायसवाल-पांडे पर वित्तीय घोटालों की फाइलें खंगाली जा रही हैं। लेकिन किशोर का हमला इसलिए घातक है क्योंकि यह भाजपा के 'जीरो टॉलरेंस' वाले दावे को सीधा चुनौती देता है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने तो किशोर से सबूत मांगे हैं, लेकिन एनडीए के अंदर से चुप्पी साफ बता रही है कि ये आरोप हवा में नहीं उड़ाए जा रहे।
BJP के लिए खतरे की घंटी
सवाल ये उठ रहे हैं कि सम्राट चौधरी पर बीजेपी नेतृत्व क्या इसलिए कार्रवाई नहीं कर पा रही है कि वे ओबीसी नेता हैं, कुशवाहा नेता हैं? लेकिन, बीजेपी के ही नेता मानते हैं कि सम्राट चौधरी दूसरे दलों से आए हुए ऐसे नेता हैं जिनकी पकड़ खुद की जाति में भी नहीं है। भ्रष्टाचार और आपराधिक अतीत ही उनकी पहचान है। ऐसे में क्या खुद ओबीसी मतदाता इस बात को पसंद करेंगे कि जाति के आधार पर बीजेपी अपने भ्रष्ट नेता का बचाव करें?
बिहार की राजनीति हमेशा से जाति पर टिकी रही है। भाजपा ने पिछड़े वर्गों को साधने के लिए सम्राट चौधरी जैसे नेताओं को ऊंचा उठाया, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों को नजरअंदाज करने से अब वही वोट बैंक खिसकने लगा है। यदि एनडीए ने इन आरोपों की निष्पक्ष जांच नहीं कराई, तो जनता का गुस्सा फूट पड़ेगा।
इतिहास गवाह है कि 1970 के दशक में जेपी आंदोलन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जनाक्रोश से ही सत्ता बदली थी। कहीं वही हवा आज भी तैयार ना हो जाए, इसकी चिंता बीजेपी को सता रही है। भाजपा को सबक लेना चाहिए। केवल जाति को प्राथमिकता देकर भ्रष्टाचार को पनपने देना घातक साबित होगा। विजय कुमार सिन्हा, आरके सिंह, नंद किशोर यादव जैसे ईमानदार नेताओं को आगे लाना होगा। नये ओबीसी और दलित नेताओं की तलाश भी की जा सकती है। अगर ऐसा नहीं होता है तो 2025 के चुनावों में जन सुराज जैसी नई ताक़तें एनडीए के लिए नई मुसीबत बनकर सामने आ सकती हैं।