बिहार में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी में परिवारवाद के आरोपों पर राजनीतिक माहौल गरमा गया है। शीर्ष स्तर के सात नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। जानिए उन्होंने कुशवाहा पर क्या आरोप लगाया है।
जिन उपेंद्र कुशवाहा के बेटे बिहार कैबिनेट में सबसे कम उम्र में मंत्री बनने और जिंस-शर्ट पहने शपथ लेने के लिए सुर्खियों में थे, उनकी पार्टी में बड़ी बगावत हो गई है। परिवारवाद का आरोप लगाते हुए कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के 7 शीर्ष नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। उपेंद्र कुशवाहा ने पार्टी के चार विधायकों को दरकिनार कर अपने बेटे दीपक प्रकाश कुशवाहा को मंत्री बना दिया था। दीपक न तो विधायक हैं और न ही विधान पार्षद। उपेंद्र कुशवाहा खुद राज्यसभा सांसद हैं, जबकि उनकी पत्नी स्नेहलता कुशवाहा सासाराम से विधायक हैं।
पार्टी के सात वरिष्ठ नेताओं ने बुधवार को एक साथ इस्तीफा दे दिया और उपेंद्र कुशवाहा पर खुलेआम 'परिवार को आगे बढ़ाने की बेतरह कोशिश' का आरोप लगाया। इस्तीफा देने वालों में पार्टी के नंबर-दो नेता कहे जाने वाले जीतेन्द्र नाथ भी शामिल हैं। जितेंद्र नाथ पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। इस्तीफा देने वाले अन्य नेता हैं- राज्य अध्यक्ष महेन्द्र कुशवाहा, राज्य महासचिव सह प्रवक्ता राहुल कुमार, राज्य महासचिव एवं नालंदा प्रभारी राजेश रंजन सिंह, राज्य महासचिव एवं जमुई प्रभारी बिपिन कुमार चौरसिया, राज्य महासचिव एवं लखीसराय प्रभारी प्रमोद यादव और शेखपुरा जिला अध्यक्ष पप्पू मंडल।
'कुशवाहा सिर्फ परिवार देख रहे हैं'
जीतेन्द्र नाथ ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से कहा, 'मैं पिछले नौ साल से कुशवाहा जी के साथ हूँ और उनकी राजनीति को बहुत क़रीब से समझता हूँ। जो शख्स कभी खुद को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी मानता था, 2020 के विधानसभा चुनाव में अपनी तत्कालीन पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी यानी आरएलएसपी के खाता भी नहीं खुलने के बाद से वह अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। अब लग रहा है कि वह अपने परिवार को सेट करने की जल्दबाजी में हैं। गैर-विधायक बेटे को मंत्री बनाना सरासर पक्षपात है।'
जीतेंद्र नाथ शेखपुरा सीट से टिकट की दौड़ में थे, लेकिन वह सीट आख़िरकार जदयू को चली गई।'समाजवादी राजनीति का गिरा हुआ खंभा'
राज्य अध्यक्ष महेन्द्र कुशवाहा ने उपेंद्र कुशवाहा को समाजवादी राजनीति का गिरा हुआ खंभा करार देते हुए कहा, 'वे नैतिकता और मूल्यों की बड़ी-बड़ी बातें करते थे, लेकिन उन्होंने खुद उन पर अमल नहीं किया।' द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पार्टी प्रवक्ता राहुल कुमार ने कहा, 'यह एकतरफा रिश्ता था जो अब खत्म हो गया। कुशवाहा जी परिवारवादी जाल में फंस गए हैं। अब उनमें और दूसरे परिवारवादी नेताओं में कोई फर्क नहीं रहा। एक साधारण कार्यकर्ता की अब आरएलएम में कोई जगह नहीं है।'
चार सीट जीती थी पार्टी ने
हालिया बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने 243 में से 202 सीटें जीती थीं। राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने गठबंधन के तहत 6 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 पर जीत हासिल की। गठबंधन की जीत के बाद आरएलएम को उसके कोटे में एक मंत्री पद मिला था, जिसे उपेंद्र कुशवाहा ने अपने बेटे दीपक प्रकाश को दे दिया।कार्यकर्ताओं की अनदेखी पर भी ग़ुस्सा
अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार राजेश रंजन सिंह ने कहा कि ऐसी पार्टी की विचारधारा से वे सहमत नहीं हैं जो अपने कार्यकर्ताओं की क़ीमत न समझे और सब कुछ परिवार को सौंप दे। शेखपुरा जिला अध्यक्ष पप्पू मंडल ने पार्टी की जिला इकाई को बिना कार्यकर्ताओं से राय लिए भंग करने के फैसले पर भी सवाल उठाया।
बीजेपी के लिए नई मुश्किल?
बीजेपी बिहार में परिवारवाद के खिलाफ सबसे बड़ी आवाज उठाती रही है, खासकर राजद और कांग्रेस पर। अब उसके अपने गठबंधन सहयोगी में परिवारवाद का यह खुला आरोप निश्चित रूप से नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा है।
कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में और भी इस्तीफे हो सकते हैं। तो क्या आरएलएम का वजूद ख़तरे में पड़ सकता है? उपेंद्र कुशवाहा की ओर से इस पूरे विवाद पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।