बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है, लेकिन विपक्षी महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर असमंजस बरकरार है। राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने खुद को गठबंधन का सीएम चेहरा घोषित किया है और भाकपा माले (CPI-ML) व समाजवादी पार्टी जैसे सहयोगी दल उनका खुलकर समर्थन कर रहे हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। हाल ही में वरिष्ठ कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि 'मुख्यमंत्री का चेहरा जीत के बाद तय होगा'। इससे गठबंधन के भीतर मतभेद की अटकलें तेज हो गई हैं।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने हाल ही में कहा, 'इंडिया गठबंधन में सभी सहयोगी दल मिलकर चुनाव लड़ेंगे और जीत के बाद विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री का चेहरा तय किया जाएगा।' यह बयान तेजस्वी यादव के उस दावे के बाद आया है, जिसमें उन्होंने आरा में 'वोटर अधिकार यात्रा' के दौरान मंच से खुद को महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा बताया था।
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कांग्रेस की इस रणनीति ने कई सवाल खड़े किए हैं। बिहार में कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने भी कहा कि मुख्यमंत्री का चेहरा बिहार की जनता तय करेगी, अभी हड़बड़ी करने की जरूरत नहीं है। यह साफ है कि कांग्रेस तेजस्वी को सीएम चेहरा घोषित करने में जल्दबाजी नहीं करना चाहती।

तेजस्वी को समर्थन

महागठबंधन के प्रमुख घटक दल भाकपा माले ने तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा मानने में कोई हिचक नहीं दिखाई। माले के नेताओं का कहना है कि तेजस्वी का युवा नेतृत्व और 'वोटर अधिकार यात्रा' ने जनता में उत्साह पैदा किया है। माले नेता दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा, 'तेजस्वी बिहार में बदलाव का चेहरा हैं। उनके नेतृत्व में गठबंधन मजबूती से चुनाव लड़ेगा।' 

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हाल ही में बिहार दौरे के दौरान तेजस्वी को 'बिहार का भावी मुख्यमंत्री' बताकर उनके पक्ष में मजबूत समर्थन जताया। अखिलेश ने कहा था कि तेजस्वी के पास बिहार को नई दिशा देने का विजन है।

कांग्रेस की रणनीति क्या?

कांग्रेस की चुप्पी और सीएम चेहरा घोषित करने में देरी के पीछे कई रणनीतिक कारण माने जा रहे हैं। बिहार में ईबीसी 36% और ओबीसी 27% है और ये मतदाता सबसे बड़े वोट बैंक हैं। तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी का आधार मुख्य रूप से यादव और मुस्लिम समुदायों में है। कांग्रेस को डर है कि तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने से गैर-यादव ओबीसी और सवर्ण मतदाता छिटक सकते हैं, जो कांग्रेस के पारंपरिक वोटर हैं।

कांग्रेस 2020 के विधानसभा चुनाव में 70 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन केवल 19 सीटें जीत सकी। 2024 के लोकसभा चुनाव में उसका प्रदर्शन आरजेडी से बेहतर रहा, जहां उसने 9 सीटों पर लड़कर 3 सीटें जीतीं। कांग्रेस अब अधिक सीटों की मांग कर रही है और तेजस्वी को सीएम चेहरा घोषित करके आरजेडी का दबदबा बढ़ने से रोकना चाहती है।
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कांग्रेस बिहार में अपनी खोई हुई सियासी जमीन वापस पाना चाहती है। 1980 के दशक तक बिहार में कांग्रेस की तूती बोलती थी, लेकिन लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के उभरने से उसका प्रभाव कम हुआ। कहा जा रहा है कि तेजस्वी को सीएम चेहरा बनाने से आरजेडी का प्रभाव और बढ़ेगा, जो कांग्रेस के लिए लंबे दौर में नुकसानदायक हो सकता है।

कांग्रेस को लगता है कि सीएम चेहरा घोषित करने से गठबंधन के भीतर तनाव बढ़ सकता है। पप्पू यादव जैसे नेता ने कहा है कि सीएम का फैसला चुनाव के बाद विधायक दल करेगा।

राहुल गांधी की 'वोटर अधिकार यात्रा' ने बिहार में कांग्रेस को नई ऊर्जा दी है। पार्टी इसे भुनाना चाहती है और तेजस्वी को सीएम चेहरा घोषित करने से पहले अधिक सियासी लाभ लेना चाहती है।

आरजेडी की रणनीति

तेजस्वी यादव ने बार-बार कहा है कि 'महागठबंधन बिना सीएम चेहरे के चुनाव नहीं लड़ेगा।' 'वोटर अधिकार यात्रा' और 'बिहार अधिकार यात्रा' ने युवाओं और ईबीसी समुदायों में खासी लोकप्रियता हासिल की है। तेजस्वी ने नीतीश सरकार पर बेरोजगारी, पलायन, और 'वोट चोरी' जैसे मुद्दों पर हमला बोला है। आरजेडी चाहता है कि तेजस्वी को सीएम चेहरा घोषित कर गठबंधन एकजुट होकर नीतीश के खिलाफ लड़े। आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी कहा है कि तेजस्वी को बिहार का सीएम बनने से कोई नहीं रोक सकता। आरजेडी की रणनीति साफ है कि वह तेजस्वी के नेतृत्व में ईबीसी, ओबीसी, और मुस्लिम वोटों को एकजुट करना चाहता है।
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महागठबंधन में असहमति

महागठबंधन के भीतर सीएम चेहरा और सीट बंटवारे को लेकर तनाव साफ दिख रहा है। रिपोर्टें हैं कि आरजेडी 150 सीटों पर दावा कर रही है, जबकि वाम दल 40 और कांग्रेस 70 सीटों की मांग कर रही है। कांग्रेस के सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह ने तेजस्वी का समर्थन किया है, लेकिन पार्टी का आलाकमान इस पर सहमत नहीं दिखता। पप्पू यादव का बयान कि 'सीएम का फैसला विधायक दल करेगा' गठबंधन में असहमति को और गहराता है। 

क्या होगा भविष्य?

कांग्रेस की चुप्पी और सलमान खुर्शीद का बयान महागठबंधन के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकता है। एक ओर, यह गठबंधन को लचीला बनाए रखता है और गैर-यादव ओबीसी व सवर्ण वोटरों को जोड़ने में मदद कर सकता है। दूसरी ओर, सीएम चेहरा तय न होने से गठबंधन का प्रचार कमजोर पड़ सकता है, क्योंकि नीतीश कुमार एनडीए के स्पष्ट चेहरा हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन के लिए सीएम चेहरा एक अहम मुद्दा बना हुआ है। तेजस्वी यादव का दावा, भाकपा माले और अखिलेश यादव का समर्थन, और कांग्रेस की चुप्पी इस सियासी ड्रामे को और रोचक बना रही है। अब देखना यह है कि क्या कांग्रेस अपनी रणनीति बदलकर तेजस्वी को सीएम चेहरा घोषित करती है, या यह सस्पेंस चुनाव तक बरकरार रहता है।