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फाइल फोटो

बिहार में कांग्रेस और राजद के बीच सीट बंटवारे को लेकर क्यों फंसा है पेंच ? 

बिहार में कांग्रेस और राजद के बीच लोकसभा चुनाव के लिए सीटों की शेयरिंग पर मंगलवार की शाम कोई सहमति बन सकती है। लालू यादव दिल्ली पहुंच गए हैं और दोनों दलों के नेताओं के बीच मंगलवार शाम इसको लेकर एक बैठक होने जा रही है। इस बैठक में सीट बंटवारे पर मुहर लग सकती है। 
बिहार में इंडिया गठबंधन के दो सबसे बड़े दल कांग्रेस और राजद के बीच सीटों का बंटवारा अब तक नहीं हो पाया है। लोकसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी हैं इसके बावजूद सीटों के बंटवारे को लेकर अब तक सहमति नहीं बनने के कारण अटकलें लगाई जा रही है कि दोनों दलों के बीच तोलमोल का दौर चल रहा है और इनके बीच सीटों के बंटवारे को लेकर अंदर ही अंदर एक दूसरे से नाराजगी चल रही है। 
इन अटकलों को तब बल मिला जब बिहार में इंडिया गठबंधन या महागठबंधन के बीच सीटों की शेयरिंग को लेकर कोई औपचारिक घोषणाएं होने से पहले ही राजद या लालू प्रसाद यादव ने कई सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। 
इस बीच अब खबर आ रही है कि दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर फंसे मामले को सुलझाने के लिए राजद सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव ने कांग्रेस को 8 सीटों का फाइनल ऑफर दे दिया है। 
सूत्रों का कहना है कि राजद लोकसभा चुनाव में बिहार की 8 सीटें ही कांग्रेस के लिए छोड़ने के लिए तैयार है। राजद ने जो सीटें कांग्रेस को ऑफर की हैं उसमें सासाराम, समस्तीपुर, पटना साहिब, भागलपुर, मुजफ्फरपुर या, शिवहर में से कोई एक, सुपौल, किशनगंज और पश्चिमी चंपारण सीट शामिल है।
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस 10 सीटें मांग रही है जबकि राजद 8 सीटें ही देने पर अड़ा है। कांग्रेस पूर्णिया और कटिहार सीट के लिए राजद पर दबाव बना रही है। कांग्रेस चाहती है कि राजद औरंगाबाद सीट भी उसे दे। 
पूर्णिया सीट पर पप्पू यादव और कटिहार सीट पर तारिक अनवर को कांग्रेस लड़ाना चाहती है। कांग्रेस की तरफ से औरंगाबाद सीट पर पूर्व राज्यपाल निखिल कुमार चुनाव लड़ना चाहते हैं। इस सीट पर राजद ने सीट बंटवारे से पहले ही अभय कुशवाह को टिकट दे दिया है। 

कई सीटों पर राजद कर चुकी है उम्मीदवारों की घोषणा 

बिहार में महागठबंधन के बीच भले ही सीटों को लेकर अब तक कोई अंतिम सहमति नहीं बनी है लेकिन राजद या लालू प्रसाद यादव ने पहले से ही अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा और उन्हें पार्टी का सिंबल बांटना शुरु कर दिया है। राजद ने करीब एक दर्जन उम्मीदवारों को सिंबल बांट दिया है। इसके कारण कांग्रेस काफी असहज दिख रही है और कांग्रेस के नेता इसके कारण परेशान भी हैं। 

बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अखिलेश सिंह से जब मीडिया ने इसको लेकर सवाल किया तो उन्होंने कहा कि पार्टी का सिंबल वापस भी होता है। उन्होंने कहा कि बिहार में इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के बीच सीट शेयरिंग को लेकर आने वाले एक से दो दिनों में आधिकारित तौर पर घोषणा भी हो जायेगी। उन्होंने कहा है कि सहयोगी दलों से इसको लेकर बातचीत अच्छे दौर में चल रही है। 

राजद ने जमुई, नवादा, गया, औरंगाबाद, बांका, मुंगेर, पाटलिपुत्र, सारण, बक्सर, महाराजगंज, जहानाबाद, उजियारपुर लोकसभा सीट के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है। इन सबसे बिहार कांग्रेस के नेता लगातार असहज होते दिख रहे हैं। उन्हें यह पसंद नहीं आर रहा कि बिना उनकी सहमति लिए राजद अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर रहा है।
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एक दूसरे को ताकत दिखाने की हो रही कोशिश  

दूसरी तरफ बिहार की राजनीति पर करीब से नजर रखने वाले राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में राजद और कांग्रेस के बीच अंदर ही अंदर एक दूसरे को ताकत दिखाने की जंग भी चल रही है। इसी को लेकर पिछले दिनों कांग्रेस ने पप्पू यादव और उनकी पार्टी को कांग्रेस में शामिल करवाया। 
कांग्रेस ने संकेत दे दिया है कि पूर्णिया सीट पर वह पप्पू यादव को अपना उम्मीदवार बनाएगी। पप्पू यादव पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं और कई बार यहां से फिर चुनाव लड़ने की इच्छा जता चुके हैं। ऐसे में तय माना जा रहा है कि वह यहां से चुनाव लड़ेगे।  
पप्पू यादव को पार्टी में शामिल कर कांग्रेस ने अपनी ताकत को बिहार के कोसी और सीमांचल इलाके में बढ़ाने की कोशिश की है। इस इलाके में यादव आबादी बड़ी संख्या में है खासकर मधेपुरा और पूर्णिया में, अगर पप्पू पूर्णिया सीट से लोकसभा चुनाव लड़ते हैं और जीते तो यह इलाका कांग्रेस के लिए मजबूत किला बन सकता है। राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि, कोसी और सीमांचल में राजद का मजबूत वोट बैंक रहा है। यहां मुस्लिम आबादी भी बड़ी संख्या में है। यही कारण है कि इस इलाके में कांग्रेस ताकतवर हो यह राजद भी नहीं चाहती है। पिछले दिनों राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा भी इस इलाके से गुजर चुकी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार से एक मात्र सीट किशनगंज से कांग्रेस को जीत मिली थी जबकि राजद पूरे बिहार में एक भी सीट नहीं ला पाया था। किशनगंज भी सीमांचल इलाके में आता है। ऐसे में कांग्रेस सीमांचल और कोसी इलाके में खुद को मजबूत करने में पूरी ताकत लगाए हुए हैं।
कांग्रेस ने पप्पू यादव को पार्टी में शामिल करवा कर लालू यादव को परेशान कर दिया है। पप्पू यादव का मधेपुरा, पूर्णिया, सहरसा में  बड़ा वोट बैंक है, ऐसे में लालू यादव नहीं चाहते हैं कि पप्पू यादव, यादवों के वोट बैंक में सेंधामारी करें। माना जा रहा है कि कांग्रेस का साथ मिलने के बाद इस इलाके में पप्पू यादव का कद और भी बढ़ सकता है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद को इसी बात का डर है, यही कारण है कि उन्होंने बीमा भारती को पूर्णिया में उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया है। 

कई राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बनने के कारण कुछ सीटों पर राजद और कांग्रेस के बीच दोस्ताना मुकाबला हो सकता है। ऐसा होने पर इसका सीधा फायदा एनडीए को होगा। राजद और कांग्रेस के बीच वोटों का बंटवारा होने पर एनडीए के उम्मीदवारों के जीतने की संभावना बढ़ जाएगी। ऐसे में अब देखना होगा कि अगले एक-दो दिनों में बिहार की राजनीति क्या करवट बदलती है। 

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इस कारण भी कांग्रेस से खफा है राजद नेतृत्व

सूत्रों का कहना है कि राजद का नेतृत्व यानी लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव कांग्रेस से इसलिए भी नाराज चल रहे हैं कि कांग्रेस लड़ कर अपनी क्षमता से ज्यादा सीटें ले लेती है लेकिन ज्यादातर सीटों पर बुरी तरह से हार जाती है। 
बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 71 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन इनमें से मात्र 19 पर वह जीत हासिल कर पाई। राजद को लगता है कि अगर इनमें से आधी सीटों पर भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की होती तो आज तेजस्वी यादव सीएम होते। 
राजद को लग रहा है कि कांग्रेस फिर लोकसभा चुनाव में 10 सीटों की जिद कर रही जो कि जो कि उसकी क्षमता से कहीं ज्यादा की मांग है। दूसरी तरफ राजद बिहार में कांग्रेस की जगह माले को आगे बढ़ाता दिख रहा है। कांग्रेस को लग रहा है कि माले लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है और इससे राजद को भविष्य में कोई राजनैतिक नुकसान भी नहीं होने वाला है। 
माले ने बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा और 12 सीटों पर जीत हासिल की। ऐसे में माले का प्रदर्शन कांग्रेस के प्रदर्शन से कहीं ज्यादा बेहतर रहा है।  
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क़मर वहीद नक़वी
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