मैं वहाँ मौजूद था — 1988 की वो शाम, दिल्ली के सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में, जब राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों का समारोह था। शाम सलीके से आगे बढ़ रही थी — जब मंच से दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए राज कपूर का नाम लिया गया। राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण खड़े हुए, तालियाँ बजने लगीं। पूरा हॉल उठ खड़ा हुआ। मगर राज कपूर नहीं उठे। उठ नहीं सके। एक तेज़ अस्थमा का दौरा उन्हें उनकी पत्नी के कंधे पर ढहा चुका था— जैसे साँसें ही साथ छोड़ गई हों।