एक बार 'दिनमान' पत्रिका के लिए (1983 ) मैं दादा कोंडके का इंटरव्यू कर रहा था। मैंने सवाल किया -''आप की फिल्मों में तमाम डायलॉग्स दो अर्थ वाले क्यों होते हैं? दादा कोंडके का जवाब था -"किसने कहा कि दो अर्थ वाले होते हैं? मेरे सभी डायलॉग का अर्थ एक ही होता है। दूसरा अर्थ आपके दिमाग में है।"