नरोत्तम मिश्रा
बीजेपी - दतिया
हार
फ़िल्म- 'गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल'
डायरेक्टर- शरण शर्मा
स्टार कास्ट- पंकज त्रिपाठी, जाह्नवी कपूर, अंगद बेदी, मानव विज, आयशा रजा मिश्रा, विनीत कुमार सिंह
स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म- नेटफ्लिक्स
रेटिंग- 3.5/5
ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म नेटफ्लिक्स पर फ़िल्म 'गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल' रिलीज़ हुई है जो कि एक बायोपिक फ़िल्म है। यह फ़िल्म शौर्य चक्र से सम्मानित पायलट 'गुंजन सक्सेना' की कहानी है। 1999 में कारगिल वॉर के दौरान गुंजन ने कश्मीर में घायल हुए जवानों को लड़ाई के बीच से वापस घर लाने का काम किया था। फ़िल्म निर्देशक के तौर पर शरण शर्मा की यह पहली फ़िल्म है। निखिल मल्होत्रा और शरण शर्मा ने मिलकर फ़िल्म की कहानी लिखी है और इसमें लीड रोल में जाह्नवी कपूर, पंकज त्रिपाठी, मानव विज, अंगद बेदी और विनीत कुमार हैं। तो आइये जानते हैं फ़िल्म की कहानी के बारे में-
फ़िल्म की कहानी शुरू होती है लखनऊ में रहने वाले एक परिवार से जिसमें भारतीय थलसेना में लेफ्टिनेंट कर्नल पद से रिटायर पिता अनूप सक्सेना (पंकज त्रिपाठी), माँ (आयशा रजा मिश्रा), बड़ा भाई अंशु (अंगद बेदी) और बहन गुंजन (जाह्नवी कपूर) हैं। गुंजन बचपन से ही एक सपना देखती है पायलट बनने का जिसे उनके पिता यह कहकर हवा देते हैं कि प्लेन लड़की उड़ाये या लड़का कहलाते तो पायलट ही हैं। माँ और भाई को लगता है कि गुंजन ग़लत सपना देख रही है। पढ़ाई पूरी करने के बाद गुंजन कमर्शियल पायलट बनने के लिए कोशिश करती है। उसके पिता के दिखाये रास्ते के ज़रिए वह एयरफ़ोर्स पायलट बन जाती है। जहाँ पर भी गुंजन निराश होती है वहाँ पर उसके पिता आशा की किरण दिखा देते हैं। गुंजन एयरफ़ोर्स पायलट तो बन जाती है लेकिन एक लड़की होने के नाते उसकी मुश्किलें भी बढ़ जाती हैं। जैसे कि उस समय में एक लड़की का पायलट बनने का सपना देखना ही बड़ी बात होती थी।
अफ़सर विनीत सिंह (विनीत कुमार सिंह) गुंजन से कहते हैं कि हमारी ज़िम्मेदारी है इस देश की रक्षा करना, तुम्हें बराबरी का मौक़ा देना नहीं। यहाँ पर महिला और पुरुष की बराबरी के बीच गुंजन फँस जाती है। उसे आगे बढ़ने के लिए काफ़ी संघर्ष करना पड़ता है। 'गुंजन सक्सेना' कारगिल के मिशन तक कैसे पहुँचती हैं, कैसे एक पिता अपनी बेटी के सपनों में पंख लगाकर उसके पायलट बनने के सफर को पूरा करवाता है, गुंजन किस तरह से संघर्ष करती है उन लोगों से जो कहते हैं कि लड़कियाँ पायलट नहीं बनतीं, ये सब जानने के लिए आपको फ़िल्म 'गुंजन सक्सेना' नेटफ्लिक्स पर देखनी पड़ेगी। यह फ़िल्म सिर्फ़ डेढ़ घंटे की है।
'गुंजन सक्सेना' कारगिल युद्ध में जाने वाली पहली महिला पायलट हैं। साल 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए कारगिल युद्ध में फ्लाइट लेफ्टिनेंट 'गुंजन सक्सेना' ने चीता हेलिकॉप्टर उड़ाते हुए युद्ध में घायल हुए सैनिकों की मदद की थी। घायल सैनिकों की मदद करने के साथ ही गुंजन पर पाकिस्तान वॉर ज़ोन पर नज़र रखने की भी ज़िम्मेदारी थी। अपनी जान को जोखिम में डालकर 'गुंजन सक्सेना' ने सभी को बचाया था। 'गुंजन सक्सेना' को वीरता के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित भी किया गया था।
शरण शर्मा ने पहली बार निर्देशक के तौर पर फ़िल्म 'गुंजन सक्सेना' बनाई है और वो इसमें कामयाब रहे हैं। फ़िल्म में ज़्यादा ड्रामा को न दिखाते हुए सीधे कहानी पर ही फोकस रखा गया है। फ़िल्म की सिनेमैटोग्राफ़ी काफ़ी अच्छी है। इसके अलावा फ़िल्म 'गुंजन सक्सेना' के गाने भी हर एक सीन के साथ फिट बैठते हैं। फ़िल्म के गाने सिंगर अरिजीत सिंह, अरमान मलिक, रेखा भारद्वाज और ज्योति नूरां ने गाये हैं। कुल मिलाकर बात करूँ तो शरण शर्मा ने एक अच्छी फ़िल्म बनाई है।
जाह्नवी कपूर के फ़िल्मी करियर की यह दूसरी फ़िल्म है और उन्होंने इसमें काफ़ी मेहनत की है। जाह्नवी कपूर की मेहनत हर एक सीन में देखने को मिली। उनके चेहरे के भाव से ही कई सीन पूरे हो गए और उन्होंने इसे काफ़ी अच्छे से पेश किया। कारगिल युद्ध में शामिल होने वाली पहली महिला पायलट की बायोपिक में जाह्नवी को जोश से भरा हुआ दिखना था लेकिन यहाँ पर कुछ कमी रह गई। पिता के किरदार में पंकज त्रिपाठी एक बार फिर से अपनी अदाकारी से एक अलग छाप छोड़ देंगे। पंकज की रियलिस्टिक एक्टिंग उनके किरदार को दमदार बना देती है और वही फ़िल्म में देखने को मिला। फ़िल्म में माँ का किरदार निभाने वाली आयशा रजा ने भी शानदार अभिनय किया है। तो वहीं बड़े भाई के रोल में अंगद बेदी भी अपने रोल में ख़ूब जमे। विनीत कुमार सिंह की बात करें तो एक्टर कई बार अपनी आँखों से ही अभिनय कर जाते हैं और इस फ़िल्म में अफ़सर के किरदार में उनकी यह कलाकारी कमाल की रही। मानव विज का किरदार भले ही छोटा रहा हो लेकिन उन्होंने उसे बखूबी निभाया।
यह एक बायोपिक फ़िल्म है और इसमें ज़्यादा ड्रामा नहीं दिखाया गया है, कहानी अंत तक एक ही दिशा में चलती रहती है। फ़िल्म में बाप-बेटी के ख़ूबसूरत रिश्ते को दिखाया गया है। साथ ही यह भी दिखाया गया है कि बेटियों को सिर्फ़ रसोई तक सीमित न रखकर उन्हें अपने सपने पूरे करने की आज़ादी देनी चाहिए। जो गुंजन के पिता ने उसे उस वक़्त दी थी जब लोग लड़कियों की शिक्षा भी पूरी नहीं करवाते थे और जल्दी शादी कर देते थे। फ़िल्म में कमी यह खलती है कि गुंजन सक्सेना के संघर्ष और उनके बारे में कम दिखाया गया जबकि कहानी का ध्यान पुरुषों के द्वारा महिलाओं को बराबरी का दर्जा न देना और स्त्री विरोधी मानसिकता वाले लोगों पर ज़्यादा चला गया।
इन दिनों बॉलीवुड में नेपोटिज़्म पर काफ़ी बहस चल रही है और ऐसे में धर्मा प्रोडक्शन की ओर से जाह्नवी कपूर स्टारर फ़िल्म रिलीज़ हो गई है। कई लोग सोशल मीडिया पर फ़िल्म के बायकॉट का ट्रेंड चला रहे हैं लेकिन क्या इसमें जाह्नवी कपूर की ग़लती है कि वो एक स्टार्स के परिवार में पैदा हुई। जाह्नवी कपूर अगर मेहनत न करतीं और उनको मौक़ा मिलता तो यह ग़लत होता लेकिन इस फ़िल्म में जाह्नवी कपूर ने काफ़ी मेहनत की है और गुंजन सक्सेना के किरदार को काफ़ी अच्छे से पर्दे पर पेश किया है।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें