वर्ष 2002 में बेस्ट फ़ॉरेन फ़िल्म कैटेगरी में ऑस्कर जीतने वाली फ़िल्म नो मैन्स लैंड इसलिए याद है क्योंकि उसी श्रेणी में आमिर ख़ान की लगान को भी नामित किया गया था। नो मैन्स लैंड ने ऑस्कर जीतकर कई भारतीयों का दिल तोड़ा लेकिन जब मैंने वह फ़िल्म देखी तो लगान उसके आसपास भी नहीं थी। एक कसी हुई कहानी में युद्ध की व्यथा ऐसी कि अंत सीने के आर-पार हो जाये। बोस्नियाई लेखक और निर्देशक डेनिस तानोविक की बतौर डायरेक्टर वह पहली फ़िल्म थी। पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया हैबीटाट सेंटर में विनोद कापड़ी द्वारा निर्देशित पायर को देखते हुए वह फ़िल्म दिमाग में कौंधी। तानोविक के उलट कापड़ी इससे पहले भी कुछ फ़िल्मों का निर्देशन कर चुके हैं लेकिन पायर उनकी अब तक की सारी फ़िल्मों को पीछे छोड़ देती है।
क्या फ़िल्म 'पायर' है भारत की 'नो मैन्स लैंड'? जानें क्यों हो रही है तुलना
- सिनेमा
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- 15 Jun, 2025
विनोद कापड़ी की फ़िल्म 'पायर' को लेकर चर्चाएं तेज़ हैं। क्या यह फ़िल्म बोस्नियाई क्लासिक 'नो मैन्स लैंड' की भारतीय समांतर बन सकती है? जानिए कहानी, भाव, और निर्देशन की समानताएं।

यह बिल्कुल अलग काम है जिसके मयार बिल्कुल अलग है। कहानी, स्क्रीनप्ले, एक्टिंग, म्यूज़िक और साउंड इफेक्ट के साथ फ़िल्म की सेटिंग और कास्ट सभी बहुत शानदार। नो मैंन्स लैंड युद्ध की निरर्थकता और प्रेशर बम के ऊपर लेटे व्यक्ति की व्यथा पर ख़त्म होती है तो पायर में एक चिता बनती है जिसमें पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के खाली हो चुके गाँवों की व्यथा जल रही है।