दिल्ली में नगर निगम के उपचुनाव रेखा गुप्ता सरकार के लिए अहम राजनीतिक परीक्षा बन गए हैं। क्या जनता सरकार पर भरोसा जताएगी या विपक्ष को मिलेगा बढ़त का मौका?
बिहार चुनावों के शोर के बीच दिल्ली में चुनावी सरगर्मियां शुरू हो गई हैं। 30 नवंबर को नगर निगम की 12 सीटों पर होने वाले उपचुनाव यों तो बीजेपी की ट्रिपल इंजन की सत्ता पर कोई असर नहीं डालेंगे लेकिन 27 साल बाद दिल्ली की गद्दी पर काबिज हुई बीजेपी की यह अग्नि परीक्षा जरूर है। नौ महीने पहले मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हुई रेखा गुप्ता के लिए केवल प्रतिष्ठा का ही नहीं बल्कि अपने आपको साबित करने का मौका भी है। अगर बीजेपी अनुकूल नतीजे नहीं ला पाई तो उसे रेखा सरकार पर जनमत का नतीजा ही माना जाएगा। यही नहीं, अगर आम आदमी पार्टी इन चुनावों में कुछ भी हासिल कर लेती है तो उसके लिए एक संजीवनी होगी।
विधानसभा चुनावों में जीतने के बाद बीजेपी ने नगर निगम में भी सत्ता पलट कर दिया था और फिलहाल 238 सीटों में से 115 बीजेपी के पास और 99 आम आदमी पार्टी के पास हैं। कांग्रेस के पास आठ और आप से टूटकर बनी इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी के पास 16 सीटें हैं। इंद्रप्रस्थ विकास पार्टी का समर्थन भी बीजेपी के साथ है। इसलिए 12 सीटों का नतीजा बीजेपी के लिए वैसे तो कोई खतरा नहीं है लेकिन राजनीतिक रूप से ये उपचुनाव बहुत महत्वपूर्ण माने जा सकते हैं। इसका एक कारण यह है कि इन 12 में से 9 सीटों पर 2022 के चुनावों में बीजेपी जीती थी। इनमें से एक सीट द्वारका—बी वार्ड पर कमलजीत सहरावत जीती थीं जो अब पश्चिमी दिल्ली से सांसद हैं। बाकी आठ सीटों पर जीते पार्षद अब विधायक बन गए हैं। आम आदमी पार्टी के तीन पार्षद भी विधायक बने हैं। इसलिए बीजेपी को अपनी साख बचाने के लिए कम से कम 9 सीटें जीतनी ही होंगी। इनमें रेखा गुप्ता का शालीमार बाग वार्ड भी है जिसपर उन्होंने पिछली बार जीत दर्ज की थी लेकिन बाद में वह विधायक बनकर मुख्यमंत्री बन गई।
कहाँ कहाँ हैं उपचुनाव?
इसी तरह बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में सातों सीटों पर विजय पताका फहराई थी। ये उपचुनाव 6 संसदीय सीटों पर फैले हुए हैं। केवल यमुनापार में उत्तर—पूर्वी दिल्ली की सीट पर ही कोई उपचुनाव नहीं है यानी मनोज तिवारी को छोड़कर बाकी छह लोकसभा सदस्यों को भी अपनी प्रतिष्ठा साबित करनी होगी। सबसे ज्यादा चार उपचुनाव चांदनी चौक सीट पर हैं जहां प्रवीण खंडेलवाल को चांदनी महल और चांदनी चौक सीटों पर खासी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि 2022 के चुनावों पर यहां से बीजेपी हार गई थी। शालीमार बाग और अशोक विहार सीट को अपेक्षाकृत आसान माना जा सकता है।
पश्चिमी दिल्ली, दक्षिण दिल्ली और नई दिल्ली सीट पर दो—दो वार्डों में चुनाव है। पश्चिमी दिल्ली से कमलजीत सहरावत को अपनी सीट द्वारका—बी और दिचाऊं कलां सीट हर हाल में जीतकर दिखानी होगी। दक्षिण दिल्ली से संगम विहार और दक्षिण पुरी सीट पर सांसद रामवीर सिंह बिधूड़ी के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। दक्षिण पुरी सीट पिछली बार आम आदमी पार्टी के हिस्से में गई थी। इसी तरह पूर्वी दिल्ली सीट के लिए केंद्रीय राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा और उत्तर—पश्चिम दिल्ली की मुंडका सीट के लिए योगेंद्र चंदोलिया को अपनी साख बचाने के लिए सबकुछ दांव पर लगाना होगा।
बीजेपी के संकल्प पत्र के वादे अधूरे
दरअसल इन चुनावों में बीजेपी के लिए दो तरह की समस्याएं हैं। पहली तो ये कि उसके संकल्प या घोषणा पत्र में जो वादे किए गए थे, उनमें से कई अब तक अधूरे हैं। अभी तक न तो महिलाओं को 2500 रुपए मासिक की पेंशन मिली है, न बुजुर्गों की पेंशन शुरू हुई है, न महिलाओं का पिंक कार्ड बना है, न होली—दीवाली पर 500 रुपए में गैस सिलेंडर मिले हैं, न स्कूलों की फीस पर नियंत्रण हुआ है और न ही प्रदूषण पर नियंत्रण हो सका है।
दूसरी समस्या यह है कि दिल्ली में गंदगी का अंबार है, बसों का संकट और पानी का संकट बहुत अधिक बढ़ गया है। हालांकि डीटीसी के अंतर्गत बसें न खरीदने का दोष केजरीवाल सरकार पर डाला जाता है क्योंकि उन्होंने अपने कार्यकाल के 9 सालों में एक भी बस नहीं खरीदी लेकिन डीटीसी की पुरानी बसें और कलस्टर बसें बीजेपी के शासन में आने के बाद हटी हैं। इसलिए अब आलोचना बीजेपी को सहनी पड़ रही है। जनता यही कह रही है कि जब से बीजेपी आई है, बसों का अकाल पैदा हो गया है। इसी तरह पूरी दिल्ली में सीवर मिक्स गंदे पानी की सप्लाई पिछले तीन—चार महीनों से बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है और लोग विधायकों के पास चक्कर लगा रहे हैं। जनता को ऐसा लग रहा है कि बीजेपी के पास इसका कोई हल नहीं है।
सफाई व्यवस्था चौपट
दिल्ली नगर निगम का सबसे बड़ा काम सफाई व्यवस्था कायम रखना है लेकिन मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के एक महीने के सफाई अभियान के बावजूद दिल्ली में सफाई व्यवस्था चौपट है। बीजेपी अब तक केजरीवाल को सभी समस्याओं के लिए कोसती रही है लेकिन अब बीजेपी को सत्ता में आए 9 महीने का वक्त बीत चुका है। आप यह आरोप लगा रही है कि अब तक रेखा सरकार कुछ भी बड़ा डिलीवर नहीं कर पाई। यहां तक कि प्रदूषण पर नियंत्रण के नाम पर कृत्रिम बारिश का बहुत शोर मचाया गया लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लगा।
आम आदमी पार्टी के लिए इन चुनावों में अब कुछ भी खोने को नहीं है। इसका कारण यह है कि वे नगर निगम की सत्ता तो पहले ही खो चुके हैं और लोकसभा के बाद विधानसभा का चुनाव भी हार चुके हैं। अगर वे कुल तीन सीट भी जीत जाते हैं तो वे यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि जनता अभी उन्हें पसंद कर रही है जबकि बीजेपी के सामने 9 सीटें जीतने की चुनौती है। बीजेपी के लिए जीत की स्थिति तभी बनेगी जब आम आदमी 3 से कम या एक भी सीट नहीं जीत पाए। आम आदमी पार्टी बीजेपी की 9 महीने की सरकार को असफल साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी और बीजेपी के लिए रेखा सरकार की उपलब्धियों को सामने लाकर चुनाव लड़ना होगा। जनता का फैसला दिल्ली की राजनीतिक स्थिति पर जरूर असर डालेगा क्योंकि दिल्ली की आवाज दूर तक जाती है।