राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिंसा पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की नींद तीन दिन बाद अब खुली है। वह भी आधी रात को। या यूँ कहें कि वह अब होश में आए हैं। वह भी तब जब यह हिंसा पूरी तरह बेकाबू हो गई।
अजीत डोभाल का यह हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा तब हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भारत से जा चुके थे। तो क्या वह ट्रंप के जाने का इंतज़ार कर रहे थे? क्या उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और ज़्यादा बदनामी का डर लग रहा था?
तो क्या हिंसा पर बदनामी से बचने के लिए कार्रवाई करने में ढिलाई बरती गई? चाहे वह प्रधानमंत्री के स्तर पर हो या गृह मंत्री अमित शाह के स्तर पर या फिर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के स्तर पर? क्या ट्रंप की यात्रा के कारण इस मामले में बड़े स्तर पर हस्तक्षेप नहीं किया गया, इससे हिंसा बढ़ती गई और मरने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ती गई?