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खड़गे बयान न देते तो क्या गुजरात हार रही थी बीजेपी?

गुजरात में मतदान शुरू होने से पहले भावना का ‘ब्रह्मास्त्र’ बीजेपी ने चल दिया है। मौका कांग्रेस ने दिया है या कि मौका बीजेपी ने ढूंढ़ लिया है- इस पर दो मत हो सकते हैं। लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान को ‘नरेंद्र मोदी की तुलना रावण से करने का मुद्दा’ एक संपूर्ण पैकेज के रूप में मतदाताओं के समक्ष परोसा जा चुका है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान को बीजेपी ने प्रधानमंत्री, देश और गुजरातियों के अपमान से जोड़ा है। बतौर अध्यक्ष सोनिया गांधी के उस बयान की भी याद दिलायी है जिसमें नरेंद्र मोदी के लिए ‘मौत का सौदागर’ कहा गया था। मणिशंकर अय्यर के ‘नीच’ वाले बयान की भी याद दिलायी गयी है। 

इन बयानों को 2007 और 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के लिए ‘फलदायी’ और स्वयं कांग्रेस के लिए ‘आत्मघाती’ साबित होना बताया जाता रहा है।

mallikarjun kharge pm narendra modi ravan remark controversy - Satya Hindi

क्या ‘आत्मघाती बयानों’ की वजह से जीती बीजेपी?

क्या मल्लिकार्जुन खड़गे का नरेंद्र मोदी की तुलना रावण से करना एक बार फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में निर्णायक साबित होगा? क्या इस बयान से बीजेपी को फायदा और कांग्रेस को इस हद तक नुकसान होगा कि बीजेपी सरकार की वापसी हो जाएगी?

2007 में बीजेपी की सीटें 127 से घटकर 116 रह गयी थीं। सीटों का घटना क्या सोनिया गांधी के ‘मौत का सौदागर’ वाले बयान से बीजेपी को हुआ ‘फायदा’ बताता है?

2017 में बीजेपी की सीटें 115 से घटकर 99 रह गयीं थीं। फिर इसे मणिशंकर अय्यर के बयान का बीजेपी के लिए ‘फायदेमंद असर’ के तौर पर कैसे देखा जा सकता है?

कई राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि अगर कांग्रेस नेताओं ने ‘आत्मघाती बयान’ नहीं दिए होते तो विगत विधानसभा चुनावों में शायद बीजेपी की सत्ता में वापसी नहीं होती या फिर कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो चुकी होती। खुद बीजेपी के नेता भी जब इस बात का दावा करते हैं कि सोनिया और मणिशंकर अय्यर के बयानों ने उन्हें जीत दिला दी तो इसका छिपा हुआ मतलब यही होता है कि इन बयानों के बगैर उनकी हार सुनिश्चित थी।

जब बीजेपी हार नहीं रही थी तो खड़गे के बयान से जीत कैसे जाएगी?

mallikarjun kharge pm narendra modi ravan remark controversy - Satya Hindi

2022 में विधानसभा चुनाव से पहले किसी बीजेपी नेता या राजनीतिक विश्लेषक में इतना दमखम नहीं दिखा है जो साफ तौर पर कह सके हों कि गुजरात का चुनाव बीजेपी हार रही है। सभी का दावा बीजेपी की निश्चित जीत के लिए है। ऐसे में मल्लिकार्जुन खड़गे के ताजा बयान से बीजेपी की जीत हो जाएगी- इस दावे का आधार कहां है? क्या खड़गे के बयान से पहले बीजेपी गुजरात हार रही थी?

क्या सचमुच मल्लिकार्जुन खड़गे ने अपने बयान से प्रधानमंत्री का अपमान कर दिया है? चुनाव रैली में मौजूद नरेंद्र मोदी बीजेपी के स्टार प्रचारक हैं न कि प्रधानमंत्री? लोकतंत्र में विश्वास रखने वाला व्यक्ति यह बात नहीं मान सकता कि चुनाव रैली में प्रधानमंत्री जाया करते हैं। ऐसे में खड़गे ने नरेंद्र मोदी के लिए जो कुछ कहा है उससे प्रधानमंत्री या देश का अपमान हुआ है, यह बातों को तोड़ना-मरोड़ना ही कहा जाएगा।

स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी ही सही- क्या उनका वाकई अपमान हुआ है? ध्यान दें मल्लिकार्जुन खड़गे ने वास्तव में कहा क्या है- “प्रधानमंत्री बोलते हैं कि कहीं और मत देखो। मोदी को देखकर वोट दो। कितनी बार तुम्हारी सूरत देखें? हमने कॉर्पोरेशन चुनाव में तुम्हारी सूरत देखी। MLA चुनाव में, MP इलेक्शन में सूरत देखी। हर जगह पर, क्या रावण की तरह आपके 100 मुख हैं? मुझे समझ नहीं आता।”

हर जगह पर क्या रावण की तरह आपके सौ मुख हैं?- इस सवाल का उत्तर अगर ‘हां’ हो तभी नरेंद्र मोदी की तुलना रावण से होती है। निश्चित रूप से बीजेपी इसका उत्तर ‘हां’ में नहीं दे सकती और इसलिए यह तुलना भी नहीं होती। थोड़ी देर के लिए मान लें कि मोदी-रावण की तुलना हुई है तो यह तुलना किस अर्थ में हुई है? स्पष्ट लगता है कि मायावी के तौर पर अलग-अलग स्वरूप में प्रस्तुत होने के रूप में यह तुलना हुई लगती है।

रावण से तुलना होने का मतलब प्रकाण्ड विद्वान ब्राह्मण भी हो सकता है जिनसे शिक्षा लेने लक्ष्मण को राम ने भेजा था। और, इसका मतलब राक्षस भी हो सकता है जिसने सीता हरण से लेकर सारे महापाप किए। कहने की जरूरत नहीं कि बीजेपी ने इस तुलना को राक्षस से तुलना ही माना है। और, इसलिए वह विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मतदाताओं के सामने ‘विक्टिम कार्ड’ खेल रही है।

गालियों की पैकेजिंग 

बीजेपी की ओर से जवाबी प्रेस कान्फ्रेन्स में संबित पात्रा ने वो सारी गालियां सुनाई, जो बीते दिनों नरेंद्र मोदी के लिए कांग्रेस नेताओं ने दी थीं। एक तरह से उन गालियों की पैकेजिंग करके पेश किया। इन गालियों को सुनाने का मकसद क्या है? नरेंद्र मोदी को गुजरात का बेटा बताते हुए सहानुभूति जुटाना और मतदाताओं का वोट पाना। 

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सहानुभूति वोट की जरूरत क्यों?

बीजेपी को सहानुभूति वोट की जरूरत क्यों पड़ गयी? जाहिर है वह चुनाव के मैदान में जीत के लिए किसी टॉनिक की तलाश कर रही है। सहानुभूति वोट ही उसे टॉनिक नज़र आ रहा है। 2002 के बाद लगातार बीजेपी की घटती सीटें और घटते समर्थन का दस्तूर आगे बढ़ता नज़र आ रहा है। इसके बावजूद क्या बीजेपी अपनी सीटें इस हद तक गिरने नहीं देगी जिसके बाद उसका सरकार बनाना मुश्किल हो जाएगा? क्या बीजेपी सीटें घटने के बावजूद सरकार बना ले जाएगी? और, तब यह कहा जाएगा कि अगर मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘आत्मघाती’ बयान नहीं दिया होता तो बीजेपी सत्ता में वापस नहीं आ पाती और कांग्रेस की वापसी हो जाती! 

अच्छा यही होगा कि ‘आपदा में अवसर’ तलाशती रही बीजेपी के सामने कांग्रेस ‘अवसर में आपदा’ की घुसपैठ ना होने दे। ऐसा तभी हो सकता है जब पार्टी का नेतृत्व खुद का मनोबल बनाए रखे। ऐसा तभी हो सकेगा जब उसे खुद पर भरोसा हो। तुर्क-ब-तुर्क जवाब देकर ही बीजेपी के ब्रह्मास्त्र को कांग्रेस निशाने से दूर कर सकती है।

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प्रेम कुमार
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