गुजरात कैबिनेट में अचानक फेरबदल हुआ है। क्या यह बदलाव मंत्रियों के खराब प्रदर्शन की वजह से हुआ या चुनाव से पहले बीजेपी की रणनीतिक मजबूरी है?
गुजरात मंत्रिमंडल में फेरबदल
गुजरात कैबिनेट में अचानक बदलाव हुआ। एक दिन पहले मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को छोड़कर पूरी कैबिनेट से इस्तीफा दिलाया गया और अब शुक्रवार को नयी कैबिनेट भी बन गई। पहले जहाँ कैबिनेट मं 17 मंत्री थे वहीं फेरबदल के बाद अब नयी कैबिनेट में 26 मंत्री हैं। तो ये अचानक बदलाव क्यों? क्या बदले गए मंत्रियों ने अपना ठीक से काम नहीं किया और इसलिए बदल दिया गया या फिर क्या मंत्री न बनाए जाने वालों का गुस्सा इतना बढ़ गया था कि पार्टी में भगदड़ मच जाती इसलिए बागि़यों को शांत करने के लिए मंत्रिमंडल बदल दिया गया? या फिर यह महज चुनावी रणनीति का हिस्सा है?
इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लीजिए कि क्या फेरदबदल हुआ है। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने शुक्रवार को एक बड़े फेरबदल के साथ नई मंत्रिपरिषद का गठन किया। मुख्यमंत्री को छोड़कर पूरी कैबिनेट के सामूहिक इस्तीफे के एक दिन बाद यह कदम उठाया गया, जिसमें सौराष्ट्र क्षेत्र पर विशेष जोर दिया गया है। महिलाओं, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों को अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया है। उपमुख्यमंत्री पद को पुनर्स्थापित करते हुए माजुरा विधायक हर्ष संघवी को पदोन्नत किया गया, जबकि क्रिकेटर रवींद्र जडेजा की पत्नी रीवाबा जडेजा सहित कई नए चेहरे शामिल किए गए।
सामूहिक इस्तीफे से नई शुरुआत
गुरुवार को राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को छोड़कर बाक़ी सभी मंत्रियों ने इस्तीफा सौंप दिया था। शुक्रवार को गांधीनगर में राज्यपाल आचार्य देवव्रत के समक्ष 21 मंत्रियों ने शपथ ली। चार मंत्रियों विष्णगर विधायक ऋषिकेश पटेल, जसदान विधायक कुंवरजी बावलिया, पारदी विधायक कनुभाई देसाई और भावनगर ग्रामीण विधायक पुरुषोत्तमभाई सोलंकी के इस्तीफे स्वीकार नहीं किए गए, इसलिए उन्हें दोबारा शपथ लेने की ज़रूरत नहीं पड़ी। सोलंकी को राज्य मंत्री (मत्स्य पालन एवं पशुपालन) के रूप में बरकरार रखा गया।
कुल मिलाकर, बीजेपी ने पुरानी कैबिनेट से छह मंत्रियों को बरकरार रखा। इनमें उपमुख्यमंत्री हर्ष संघवी, जो पहले राज्य मंत्री थे और प्रफुल्ल पंशेरिया (राज्य मंत्री) शामिल हैं। इन्होंने शपथ ली। गुजरात विधानसभा में 182 सदस्य हैं, जो अधिकतम 27 मंत्रियों की अनुमति देती है।
बीजेपी का कहना है कि नई कैबिनेट में गुजरात के हर क्षेत्र, जाति और समुदाय का संतुलन बनाया गया है। इसमें महिला विधायक और 40 वर्ष से कम उम्र के युवा चेहरे भी हैं।
सौराष्ट्र पर विशेष फोकस
कहा जा रहा है कि नयी कैबिनेट में सौराष्ट्र क्षेत्र पर विशेष फोकस है जहां जून में आप के गोपाल इटालिया ने विसावदर उपचुनाव में भाजपा के किरीट पटेल को कड़ी टक्कर दी थी। नई कैबिनेट में सौराष्ट्र से नौ चेहरे शामिल हैं, जबकि पुरानी कैबिनेट में केवल पांच थे। बीजेपी ने पटेल समुदाय को मजबूत करने के लिए भावनगर पश्चिम विधायक जीतुभाई वाघाणी को वापस बुलाया। वाघाणी 2016-2020 तक गुजरात भाजपा के अध्यक्ष रहे थे। उन्होंने 2017 के विधानसभा तथा 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को जीत दिलाई थी। वे भूपेंद्र पटेल की पहली कैबिनेट में कैबिनेट मंत्री थे, लेकिन 2022 चुनावों के बाद छोटी कैबिनेट में जगह नहीं मिली।
सौराष्ट्र के अन्य प्रतिनिधियों में जामनगर उत्तर विधायक रीवाबा जडेजा, कांग्रेस से बीजेपी में शामिल होने वाले पोरबंदर विधायक अर्जुन मोढ़वाड़िया भी शामिल हैं। इसके अलावा जयेश रडाड़िया और उदय कांगड़ जैसे युवा विधायक भी सौराष्ट्र से हैं। कहा जा रहा है कि ऐसा फेरबदल एंटी-इनकंबेंसी को दूर करने और सौराष्ट्र में आप की पैठ रोकने के लिए भी है। एनडीटीवी के अनुसार, भाजपा सौराष्ट्र के पटेल समुदाय में अपनी पैठक बनाने की कोशिश कर रही है।
महिलाओं व आदिवासियों को बढ़ावा
महिलाओं का प्रतिनिधित्व पुरानी कैबिनेट के एक से बढ़ाकर तीन कर दिया गया। रीवाबा जडेजा, दर्शना वाघेला और मनीषा वाकिल ने राज्य मंत्री के रूप में शपथ लीं। कैबिनेट में आदिवासी विधायकों की संख्या चार हो गई, जो राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ मजबूत करेगी।
कैबिनेट में जातिगत संरचना
कैबिनेट में आठ अन्य पिछड़ा वर्ग, चार आदिवासी, तीन अनुसूचित जाति, दो क्षत्रिय, छह पटेल समुदाय, एक ब्राह्मण और एक जैन समुदाय से मंत्री शामिल हैं। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, यह सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा है, जिसमें सौराष्ट्र, उत्तर और दक्षिण गुजरात से संतुलन बनाया गया।
स्थानीय चुनावों पर नजरें
कहा जा रहा है कि बीजेपी ने इस फेरबदल को 2026 के स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी के तौर पर अंजाम दिया है। चुनाव के लिहाज से देखा जाए तो ऐसी एंटी-इनकंबेंसी को ख़त्म करने के लिए रणनीति अपनाई जाती है। विपक्षी दलों ने इसे सिर्फ चेहरे बदलना करार दिया।
तो सवाल है कि एक साथ क़रीब क़रीब पूरी कैबिनेट को एकसाथ बदल देने पर भी किसी मंत्री ने विरोध तक क्यों नहीं किया? पहले मुख्यमंत्री तक बदल दिए गए, लेकिन विरोध की आवाज़ तक नहीं उठी थी। एक सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या बीजेपी के पास काबिल नेताओं की कमी है इसलिए उसे पूरी की पूरी कैबिनेट को बदलना पड़ जाता है? क्या मंत्री न बनाए जाने वालों का गुस्सा इतना बढ़ गया था कि पार्टी में भगदड़ मच जाती इसलिए बागि़यों को शांत करने के लिए मंत्रिमंडल बदल दिया गया? क्या ये इसलिए करना पड़ रहा है कि जनता का गुस्सा मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ इतना बढ़ता जा रहा है कि मंत्रियों को बदलकर उस ग़ुस्से को शांत किया गया?
गुजरात में बीजेपी ने सात लगातार विधानसभा चुनाव जीते हैं। ऐसे में पूरी कैबिनेट को बदलने का संकेत क्या है? जानकारों का मानना है कि यह कैबिनेट विस्तार 2027 विधानसभा चुनावों की नींव रखेगा। यह फेरबदल न केवल क्षेत्रीय संतुलन को दिखाता है, बल्कि भाजपा की चुनावी रणनीति को भी दिखाता है। अब नजरें स्थानीय निकाय चुनावों पर हैं कि क्या यह कदम पार्टी को मजबूत करेगा।