दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते ही किसानों द्वारा पराली जलाए जाने को भी बड़ा दोष दिया जा रहा है। लेकिन क्या किसान ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं? औद्योगिक इकाइयाँ और वाहन ज़म्मेदार नहीं हैं? क्या सरकार की नीतियाँ ज़िम्मेदार नहीं हैं? इसके बावजूद क्या किसानों द्वारा पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है? और यदि पराली जलाए जाने को पूरी तरह ख़त्म करना है तो क्या सरकार की ओर से इसके लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशे गए हैं?