दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ते ही किसानों द्वारा पराली जलाए जाने को भी बड़ा दोष दिया जा रहा है। लेकिन क्या किसान ही इसके लिए ज़िम्मेदार हैं? औद्योगिक इकाइयाँ और वाहन ज़म्मेदार नहीं हैं? क्या सरकार की नीतियाँ ज़िम्मेदार नहीं हैं? इसके बावजूद क्या किसानों द्वारा पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है? और यदि पराली जलाए जाने को पूरी तरह ख़त्म करना है तो क्या सरकार की ओर से इसके लिए वैकल्पिक रास्ते तलाशे गए हैं?
किसानों को दंडित करने से क्या वायु प्रदूषण का स्थायी समाधान हो जाएगा?
- हरियाणा
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- 26 Oct, 2025

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए किसानों को दंडित करने की नीति पर सवाल- क्या यह स्थायी समाधान है या असली कारणों से ध्यान भटकाना?

ये सवाल इसलिए क्योंकि पराली जैसी समस्या से निपटे बिना किसानों की फ़सलें प्रभावित हो सकती हैं और इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर होगा। प्रदूषण पर स्थिति को जानने से पहले यह जान लें कि भारत में कृषि की स्थिति क्या है। भारत में वैश्विक भौगोलिक क्षेत्र 2.4% है और जल संसाधन लगभग 4.2% है, लेकिन विश्व की जनसंख्या का 17.6% भरत में है। भारत की बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्यान अन्न उपलब्ध करवाना देश के लिए बड़ी चुनौतियों में से एक है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार भारत में वार्षिक 93 .5 मी.टन गेहूं, 105.24 मी. टन चावल, 22.26 मी.टन टन मक्का, 16.03 मी.टन ज्वार, बाजरा, रागी आदि, 341.20 मी. टन गन्ना, 7.79 मी. टन फाइबर, कपास, जूट, 18.3 मी. टन दालें, 30.90 मी. टन ऑइल सीड का उत्पादन खेतों में होता है।























