देश के 11 एयरपोर्ट पर अडानी समूह की नज़र है। वो जल्द ही इनके लिए बोली लगाएगा। अडानी समूह अगले 5 वर्षों में 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना बना रहा है। अडानी समूह के पास कई शहरों में एयरपोर्ट हैं।
अडानी ग्रुप एयरपोर्ट कारोबार में बड़ा दांव लगा रहा है। ग्रुप अगले पांच वर्षों में अपने हवाई अड्डा कारोबार में 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश करने वाला है। साथ ही, सरकार द्वारा निजी क्षेत्र को लीज पर दिए जाने वाले 11 हवाई अड्डों के लिए आक्रामक रूप से बोली लगाने की तैयारी कर रहा है।
अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग्स लिमिटेड (AAHL) के निदेशक जीत अडानी ने मुंबई में एक इंटरव्यू में कहा, "हम इस उद्योग से बहुत उम्मीदें हैं और अगले दौर की बोली में सभी 11 हवाई अड्डों के लिए 100 प्रतिशत आक्रामक रहेंगे।" उन्होंने बताया कि हवाई अड्डा कारोबार में अगले पांच वर्षों में 1 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा।
मौजूदा समय में अडानी समूह भारत का सबसे बड़ा निजी हवाई अड्डा ऑपरेटर है। उसके पास देश के यात्री यातायात का लगभग 23 प्रतिशत और कार्गो यातायात का 33 प्रतिशत हिस्सा है। ग्रुप सात हवाई अड्डों का संचालन करता है - मुंबई, अहमदाबाद, लखनऊ, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम, जयपुर और मंगलुरु। इनमें से छह हवाई अड्डे 2019 में उसे मिले थे, जबकि मुंबई हवाई अड्डा 2021 में जीवीके ग्रुप से अधिग्रहित किया था। 2019 में ही मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता में वापसी की थी। नेता विपक्ष राहुल गांधी का आरोप है कि अडानी समूह के लिए मोदी सरकार ने सारे नियम-कानून तोड़ दिए हैं।
नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री मुरलीधर मोहोल ने हाल ही में संसद में कहा था, "चुनिंदा पांच हवाई अड्डों- अमृतसर, वाराणसी, भुवनेश्वर, रायपुर और त्रिची के साथ 6 छोटे हवाई अड्डों को जोड़ा जाएगा। इन सभी एयरपोर्ट को सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत संचालन, प्रबंधन और विकास के लिए सौंपा जाएगा।" नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने हाल ही में बताया था कि पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत कई हवाई अड्डों की पहचान की गई है। जिनमें भुवनेश्वर, वाराणसी, अमृतसर, त्रिची, इंदौर, रायपुर, कालीकट, कोयम्बटूर, नागपुर, पटना, मदुरै, सूरत, रांची, जोधपुर, चेन्नई, विजयवाड़ा, वडोदरा, भोपाल, तिरूपति, हुबली, इम्फाल, अगरतला, उदयपुर, देहरादून और राजमुंदरी शामिल हैं। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन के तहत 2022-2025 के बीच 25 हवाई अड्डों को लीज पर देने की योजना है। सरकार का लक्ष्य 2047 तक वर्तमान 163 हवाई अड्डों की संख्या को 350-400 तक बढ़ाना है।
ग्रुप का नवीनतम एयरपोर्ट नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट होगा, जो 25 दिसंबर से कमर्शियल ऑपरेशन शुरू करेगा। यह अडानी ग्रुप द्वारा शुरू से बनाया गया पहला हवाई अड्डा है। यानी सरकार ने इसे विकसित करके नहीं दिया है। उसके पास पहले से जो एयरपोर्ट हैं, उन्हें सरकार ने बनया और अडानी को वो एयरपोर्ट मिल गया। नवी मुंबई एयरपोर्ट शुरू होने से मौजूदा मुंबई हवाई अड्डे पर दबाव कम होगा और क्षेत्रीय हवाई यातायात में राहत मिलेगी।
अडानी और जीएमआर जैसे ग्रुप भारत के उड़ान यात्रा बूम का फायदा उठाने की होड़ में हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह निवेश और निजीकरण विमानन क्षेत्र की वृद्धि को और गति देगा।
अडानी एयरपोर्टों को लेकर विवाद क्या है
अडानी ग्रुप की एयरपोर्ट मोनोपली पर मुख्य विवाद यह है कि ग्रुप ने 2019 के निजीकरण दौर में छह हवाई अड्डों (अहमदाबाद, लखनऊ, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम, जयपुर और मंगलुरु) की बोली हासिल की। जिस दौर में अडानी को यह एयरपोर्ट मिले, इन पर सरकार को मुनाफा हो रहा था लेकिन सरकार ने इन्हें निजी क्षेत्र को सौंपने का फैसला किया। ये सभी एयरपोर्ट अडानी समूह को मिले। इससे ग्रुप भारत का सबसे बड़ा निजी एयरपोर्ट ऑपरेटर बन गया, जो देश के यात्री यातायात का लगभग 25 प्रतिशत और कार्गो का 33 प्रतिशत नियंत्रित करता है।
विपक्षी दल, खासकर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि बोली प्रक्रिया नियमों में बदलाव किए गए। जैसे पिछले अनुभव की जरूरत का नियम और एक ही बोलीदाता को कई एयरपोर्ट देने की सीमा हटाने का नियम खत्म कर दिए गए। इससे अडानी को फायदा हुआ। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने इसे "क्रोनी कैपिटलिज्म" का उदाहरण बताया, जबकि कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि वित्त मंत्रालय और नीति आयोग ने इन बदलावों का विरोध किया था।
विवाद का एक बड़ा हिस्सा मोनोपली के खतरे से जुड़ा है। आलोचक कहते हैं कि एक ही ग्रुप का इतना नियंत्रण उपभोक्ताओं के लिए खतरनाक है, क्योंकि इससे शुल्क बढ़ सकते हैं और सेवा की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिए अडानी का कब्जा होने के बाद लखनऊ और मंगलुरु एयरपोर्ट पर यूजर डेवलपमेंट फीस (UDF) में कई गुना वृद्धि हुई है। तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट के निजीकरण पर केरल सरकार और विधानसभा ने कड़ा विरोध किया, यहां तक कि आमराय से प्रस्ताव पारित किया कि यह जनहित में नहीं है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एयरपोर्ट जैसे प्राकृतिक मोनोपली वाले क्षेत्र में एकल नियंत्रण से प्रतिस्पर्धा कम होती है और कीमतें बढ़ती हैं, जबकि अडानी ग्रुप का दावा है कि उन्होंने बोली निष्पक्ष रूप से जीती और निवेश से इंफ्रास्ट्रक्चर सुधरा है।
अडानी ग्रुप पर पहले से कई विवाद रहे हैं, जिनमें 2023 की हिंडनबर्ग रिपोर्ट प्रमुख है। अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग ने आरोप लगाया कि ग्रुप ने स्टॉक मैनिपुलेशन, अकाउंटिंग फ्रॉड और ऑफशोर कंपनियों का दुरुपयोग किया, जिससे ग्रुप की मार्केट वैल्यू में 150 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट आई। हालांकि, भारतीय अदालतों और सेबी ने कई आरोपों को खारिज कर दिया और ग्रुप ने इन्हें आधारहीन बताया। हाल ही में अमेरिकी न्याय विभाग ने रिश्वतखोरी के आरोप लगाए, जिसमें सोलर प्रोजेक्ट्स के लिए भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देने का दावा है, जिसे ग्रुप ने नकारा है। ये आरोप एयरपोर्ट निजीकरण से अलग हैं, लेकिन समग्र रूप से ग्रुप की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हैं।
कुल मिलाकर, एयरपोर्ट मोनोपली का विवाद सरकार की निजीकरण नीति, क्रोनीज्म के आरोप और उपभोक्ता हितों से जुड़ा है। कुछ का मानना है कि अडानी का विस्तार भारत के विमानन क्षेत्र की तेज वृद्धि (15-16 प्रतिशत वार्षिक) के लिए जरूरी है और निवेश ला रहा है। जबकि आलोचक इसे अस्वस्थ प्रथा मानते हैं जो लंबे समय में महंगा पड़ सकता है।