सीजेआई बीआर गवई पर जूता फेंकने और चिल्लाने के मामले में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने वकील राकेश किशोर के ख़िलाफ़ अवमानना कार्रवाई की मंजूरी दे दी है। उन्होंने इस घटना को कु्त्सित और निंदनीय क़रार दिया है। अटॉर्नी जनरल की मंजूरी के बाद जब सुप्रीम कोर्ट में अवमानना कार्रवाई के लिए मामले को उठाया गया तो सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने इस मामले को तुरंत आगे बढ़ाने से इनकार करते हुए कहा कि इसे 'अपने आप ख़त्म होने दो' ताकि सोशल मीडिया पर विवाद न भड़के। 

यह मामला सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई पर जूता फेंकने से जुड़ा है। घटना 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट हॉल नंबर 1 में घटी थी जब सीजेआई बी.आर. गवई की अगुवाई वाली बेंच सुनवाई कर रही थी। वकील राकेश किशोर अचानक अपना जूता उतारकर सीजेआई की ओर फेंक दिया। सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें तुरंत पकड़ लिया, लेकिन इस दौरान किशोर ने 'सनातन धर्म' से जुड़ा नारा लगाया। जूता सीजेआई के पास गिरा। सीजेआई गवई ने शांत रहते हुए कहा, 'इसे नज़रअंदाज़ कर दें और सुनवाई जारी रखें।' उन्होंने इस मामले को तवज्जो नहीं देने की अपील की। 
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लेकिन सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर बवाल मच गया। किशोर ने मीडिया में बयान दिया जिसमें कोई पश्चाताप नजर नहीं आया। इस घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किशोर का लाइसेंस तुरंत सस्पेंड कर दिया, जो वकालत के पेशे के लिए एक कड़ी चेतावनी है।

'संवैधानिक निष्ठा पर सवाल'

एजी आर. वेंकटरमणि ने 15 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकस सिंह को पत्र लिखकर अवमानना कार्रवाई की सहमति दी। पत्र में एजी ने कहा, 'राकेश किशोर का यह कृत्य कोर्ट्स एक्ट, 1971 की धारा 2(सी) के तहत आपराधिक अवमानना का स्पष्ट मामला है। उनका आचरण और बयान न केवल स्कैंडलस हैं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और प्राधिकार को कमजोर करने के लिए सोची-समझी साजिश है।' एजी ने जोर दिया कि यह केवल एक व्यक्तिगत घटना नहीं, बल्कि संवैधानिक संस्था की निष्ठा पर हमला है।'
एजी ने पत्र में आगे कहा, 'किसी भी व्यक्ति के पास न्यायालय को बदनाम करने का कोई भी कारण नहीं हो सकता। माननीय न्यायाधीशों पर कोई चीज फेंकना या फेंकने का प्रयास करना, या कार्यवाही के संचालन में दोष निकालने के लिए न्यायाधीशों पर चिल्लाना निंदनीय होगा। राकेश किशोर द्वारा दिया गया कारण कभी भी ऐसे निंदनीय आचरण को उचित नहीं ठहरा सकता। इस तरह के कृत्य न्यायालय की गरिमा और स्वयं विधि के शासन का गंभीर अपमान हैं। मुझे लगता है कि श्री राकेश किशोर ने अपने आचरण के संबंध में कोई पश्चाताप नहीं दिखाया है जैसा कि उनके बाद के कथनों से साफ़ है।'
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सुप्रीम कोर्ट में उठा मामला

एससीबीए अध्यक्ष विकस सिंह और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संयुक्त रूप से जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच के समक्ष यह मामला उछाला। सिंह ने कहा, 'सोशल मीडिया पर यह घटना बेकाबू हो गई है। हर तरह की अपमानजनक टिप्पणियां हो रही हैं, जो संस्थागत गरिमा को नुकसान पहुंचा रही हैं।' मेहता ने भी सोशल मीडिया पर रेस्ट्रेनिंग ऑर्डर की मांग की, ताकि फेक न्यूज और भड़काऊ कंटेंट को रोका जा सके।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुनवाई के दौरान बेंच ने मामले को तुरंत लिस्ट करने से साफ मना कर दिया। जस्टिस कांत ने कहा, 'सीजेआई ने इस घटना पर अत्यधिक उदारता दिखाई है, जो संस्था की मजबूती को दिखाता है। लेकिन अगर हम इसे फिर से उछालेंगे, तो सोशल मीडिया पर विवाद भड़केगा।' जस्टिस बागची ने टिप्पणी की, 'जब ऐसी टिप्पणियां होती हैं, तो एल्गोरिदम उन्हें प्रमोट करता है। यहां तक कि आपका उल्लेख भी मोनेटाइज हो जाएगा। इसे अपने आप ख़त्म होने दें।'
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कोर्ट ने सोशल मीडिया के मौजूदा स्वरूप पर चिंता जताई। जस्टिस कांत ने कहा, 'हम कंटेंट के उत्पादक और उपभोक्ता दोनों हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है; यह संस्थागत गरिमा को प्रभावित नहीं कर सकती।' यह टिप्पणी हाल की घटनाओं के संदर्भ में अहम है, क्योंकि सोशल मीडिया पर न्यायपालिका के खिलाफ ट्रोलिंग बढ़ रही है।

हालाँकि, जस्टिस कांत ने पूछा कि क्या इसे शुक्रवार को सूचीबद्ध किया जाए या अदालत के दोबारा खुलने के बाद। अगले हफ़्ते सुप्रीम कोर्ट में दीपावली की छुट्टी है। सिंह ने जवाब दिया, 'कल ही हो जाए। यह सिलसिला जारी है। अगर कुछ करना है, तो तुरंत करना होगा।' लेकिन अदालत ने छुट्टी के बाद इस पर सुनवाई करने का फ़ैसला किया। जस्टिस कांत ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा, 'देखते हैं एक हफ़्ते में क्या होता है। क्या 'सेलेबल पॉइंट्स' बचे हैं या नहीं।!'