सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के अजमेर दरगाह बम धमाके के मामले में राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस दरगाह शरीफ के खादिम और शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती की विशेष अनुमति याचिका यानी स्पेशल लीव पिटिशन पर जारी किया गया है। इस याचिका में राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए की विशेष अदालत द्वारा 7 आरोपियों को बरी किए जाने के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने 3 अक्टूबर 2025 को यह नोटिस जारी किया। 

यह मामला 18 साल पुराने उस धमाके से जुड़ा है, जिसमें सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में भक्तों की भीड़ के बीच विस्फोट से तीन लोगों की मौत हो गई थी और 17 अन्य घायल हुए थे। धमाका रमजान के पवित्र महीने के दौरान इफ्तार के समय हुआ था, जिसे सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश के रूप में देखा गया। एनआईए की जाँच में इसे 'हिंदू चरमपंथी' तत्वों से जोड़ा गया था, लेकिन अदालती फ़ैसलों ने कई सवाल छोड़ दिए हैं।

सांप्रदायिक साजिश

11 अक्टूबर 2007 को शाम करीब 6:14 बजे अजमेर शरीफ दरगाह के मुख्य प्रांगण में एक शक्तिशाली बम विस्फोट हुआ। यह धमाका इफ्तार के ठीक बाद हुआ, जब दरगाह में हजारों श्रद्धालु इकट्ठा थे। विस्फोट इतना जोरदार था कि आसपास की दुकानों और दीवारें ध्वस्त हो गईं। तीन लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि 17 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। इस मामले की जाँच एनआईए ने की। 

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी ने दरगाह को निशाना बनाकर मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की कोशिश की। एनआईए ने 13 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, लेकिन मुकदमे के दौरान कई गवाह पलट गये, जिससे अभियोजन पक्ष कमजोर पड़ गया।

एनआईए अदालत का फैसला

8 मार्च 2017 को जयपुर की एनआईए विशेष अदालत ने फैसला सुनाया। इसने 7 आरोपियों को सबूतों की कमी और 'शक का लाभ' देते हुए बरी कर दिया। बरी हुए आरोपियों में लोकेश शर्मा, चंद्रशेखर लेवे, मुकेश वासनी, हर्षद उर्फ मुनना उर्फ राज,  नबकुमार सरकार उर्फ स्वामी असमानंद, मफात उर्फ मेहुल और भारत मोहनलाल रतेश्वर शामिल थे।  हालांकि, अदालत ने दो आरोपियों देवेंद्र गुप्ता और भावेश पटेल को दोषी ठहराया। उन्हें कई धाराओं और यूएपीए के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई गई। तीसरा आरोपी सुनील जोशी 2007 में ही मध्य प्रदेश के देवास में रहस्यमयी तरीके से मारा गया था। अदालत ने पाया कि गुप्ता और पटेल ने बम प्लांटिंग और साजिश रची, लेकिन अन्य के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले।

हाईकोर्ट ने खारिज की, देरी को आधार बनाया

बरी किए जाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती ने 1 जून 2017 को राजस्थान हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। लेकिन सुनवाई 2022 तक टलती रही। 4 मई 2022 को हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी। अदालत ने एनआईए एक्ट की धारा 21(5) की सख्त व्याख्या करते हुए कहा कि अपील दाखिल करने में 1135 दिनों की देरी को 90 दिनों से अधिक माफ नहीं किया जा सकता। धारा 21(5) एनआईए मामलों में अपील की समय सीमा 90 दिन निर्धारित करती है, और देरी को 'पर्याप्त कारण' के बिना माफ नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने इसे तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया, बिना मामले की मेरिट पर विचार किए।

सुप्रीम कोर्ट में याचिका

सैयद सरवर चिश्ती ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की, जो हाईकोर्ट के 4 मई 2022 के आदेश को चुनौती देती है। याचिका में मुख्य तर्क यह है कि धारा 21(5) की कठोर व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता का अधिकार और 21 यानी जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार का उल्लंघन करती है। याचिकाकर्ता का कहना है कि 90 दिनों की सख्त सीमा पीड़ितों और शिकायतकर्ताओं के अपील के मौलिक अधिकार को मनमाने ढंग से सीमित करती है, जिससे न्याय तक पहुंच बाधित होती है।