8 मार्च 2017 को जयपुर की एनआईए विशेष अदालत ने फैसला सुनाया। इसने 7 आरोपियों को सबूतों की कमी और 'शक का लाभ' देते हुए बरी कर दिया। बरी हुए आरोपियों में लोकेश शर्मा, चंद्रशेखर लेवे, मुकेश वासनी, हर्षद उर्फ मुनना उर्फ राज, नबकुमार सरकार उर्फ स्वामी असमानंद, मफात उर्फ मेहुल और भारत मोहनलाल रतेश्वर शामिल थे। हालांकि, अदालत ने दो आरोपियों देवेंद्र गुप्ता और भावेश पटेल को दोषी ठहराया। उन्हें कई धाराओं और यूएपीए के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई गई। तीसरा आरोपी सुनील जोशी 2007 में ही मध्य प्रदेश के देवास में रहस्यमयी तरीके से मारा गया था। अदालत ने पाया कि गुप्ता और पटेल ने बम प्लांटिंग और साजिश रची, लेकिन अन्य के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले।
हाईकोर्ट ने खारिज की, देरी को आधार बनाया
बरी किए जाने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ शिकायतकर्ता सैयद सरवर चिश्ती ने 1 जून 2017 को राजस्थान हाईकोर्ट में अपील दाखिल की। लेकिन सुनवाई 2022 तक टलती रही। 4 मई 2022 को हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी। अदालत ने एनआईए एक्ट की धारा 21(5) की सख्त व्याख्या करते हुए कहा कि अपील दाखिल करने में 1135 दिनों की देरी को 90 दिनों से अधिक माफ नहीं किया जा सकता। धारा 21(5) एनआईए मामलों में अपील की समय सीमा 90 दिन निर्धारित करती है, और देरी को 'पर्याप्त कारण' के बिना माफ नहीं किया जा सकता। हाईकोर्ट ने इसे तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया, बिना मामले की मेरिट पर विचार किए।