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केंद्र ने अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर 26 अगस्त को बुलाई सर्वदलीय बैठक 

अफ़ग़ानिस्तान में तेज़ी से बदल रहे हालात के बीच भारत सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाने का फ़ैसला किया है। 26 अगस्त को सुबह 11 बजे यह बैठक बुलाई गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में विदेश मंत्री एस. जयशंकर से क़दम उठाने के लिए कहा था। इधर, भारत अफ़ग़ानिस्तान में फंसे भारतीयों की वतन वापसी के काम में जुटा हुआ है। 

मुश्किल में है सरकार

अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर केंद्र सरकार दबाव में है कि वह करे तो क्या करे। क्या वह तालिबान से बात कर उसे मान्यता दे, अगर वह ऐसा करती है तो फिर आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ने वाले स्टैंड पर उसे देश के भीतर ही सवालों का सामना करना पड़ेगा। हालांकि तालिबान अब अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने जा रहा है लेकिन भारत सरकार तालिबान को आतंकवादी संगठन मानती है, ऐसे में बड़ी मुश्किल उसके सामने है कि वह क्या क़दम उठाए। 

हम जानते हैं कि भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में 3 अरब डॉलर का निवेश किया है। ताज़ा दौर में भी वह वहां कई बड़े प्रोजेक्ट चला रहा है। हालांकि तालिबान ने उससे कहा है कि वह अपने प्रोजेक्ट्स पर काम जारी रखे लेकिन यह तभी होगा जब भारत सरकार उससे बात करे क्योंकि अब वह आधिकारिक रूप से वहां सरकार बनाने जा रहा है और दुनिया के ताक़तवर मुल्क़ों में से एक चीन ने उसे मान्यता दे दी है। 

पाकिस्तान उसके समर्थन में है और चीन-पाकिस्तान और तालिबान शासित अफ़ग़ानिस्तान भारत के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं। ऐसे में सरकार से बार-बार पूछा जाएगा कि वह अपना स्टैंड साफ करे कि वह तालिबान से बात करेगी या नहीं?

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भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि अफ़ग़ानिस्तान के हालात पर उसकी पैनी नज़र है और उसका पूरा ध्यान अभी वहां से भारतीयों को निकालने पर है। लेकिन उसके बाद तो केंद्र सरकार को इस बारे में फ़ैसला लेना ही होगा कि आख़िर तालिबान से बात की जाए या नहीं। इस भंवर से निकलने के लिए मोदी सरकार को विपक्षी दलों के सुझावों की ज़रूरत है और इसीलिए सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है। 

कुल मिलाकर सरकार पसोपेश में है कि वह अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर क्या स्टैंड ले। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक़, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश मंत्री जयशंकर इस मामले में हालात को भांपने में पूरी तरह फ़ेल रहे।

विपक्ष से नहीं करती बात!

मोदी सरकार पर यह भी आरोप लगता है कि वह विपक्षी दलों को अहमियत नहीं देती। ख़ुद से फ़ैसला कर क़दम उठा लेती है। हालांकि जब वह बुरी तरह घिर जाती है, तब उसे विपक्ष की याद आती है। जैसे- नोटबंदी, कोरोना की पहली लहर में लॉकडाउन लगाने जैसे बड़े मसलों पर उसने विपक्ष से बात नहीं की और प्रधानमंत्री ने टीवी के सामने आकर इनका एलान कर दिया लेकिन गलवान में हुए घटनाक्रम के बाद जब वह मुश्किल में थी तो उसने विपक्षी दलों को बुलाया था, वैसा ही इस बार भी हुआ है। 

देखिए, इस मसले पर चर्चा- 
इधर, तालिबान ने अमेरिका को चेताया है कि वह जल्द से जल्द अपनी सेनाओं को वापस बुला ले, अगर इसमें देरी हुई तो इसके गंभीर नतीजे होंगे। तालिबान ने इसके लिए 31 अगस्त तक की सीमा तय की है। अमेरिका सहित कई देश इन दिनों अफ़ग़ानिस्तान में फंसे अपने लोगों को वहां से बाहर निकाल रहे हैं। 

बाइडन ने चेताया था

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कुछ दिन पहले कहा था कि अगर तालिबान अमेरिका पर व्यक्तिगत हमले करेगा तो अमेरिका इसका जोरदार जवाब देगा। बाइडन ने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का फ़ैसला पूरी तरह सही है। 

बाइडन ने कहा था कि अमेरिका का लक्ष्य कभी भी वहां राष्ट्र का निर्माण करना या लोकतंत्र को स्थापित करना नहीं था बल्कि अपने देश पर होने वाले और आतंकी हमलों को रोकना था। अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था, “वहां के राजनेताओं ने हथियार डाल दिए और मुल्क़ छोड़कर भाग गए। कुछ इलाक़ों में सेना लड़े बिना ही हार गई।” 

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जब से तालिबान ने हुकूमत संभाली है, तभी से काबुल के हामिद करज़ई एयरपोर्ट पर जबरदस्त अफ़रा-तफरी का माहौल है। बीते कुछ दिनों में काबुल एयरपोर्ट पर फ़ायरिंग भी हुई है और इसमें कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। इसके बाद एयरपोर्ट पर कुछ वक़्त के लिए कॉमर्शियल फ्लाइट्स को सस्पेंड करना पड़ा था। 

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क़मर वहीद नक़वी
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