इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एनसीआरटी को बड़ा झटका दिया है। अदालत ने कहा है कि स्कूल पाठ्यक्रम में जातिगत भेदभाव के खतरों पर सामग्री शामिल की जाए। एनसीईआरटी राष्ट्रीय पाठ्यपुस्तक निर्माण संस्था है। उसने जाति व्यवस्था का महिमामंडन वाली किताबें विभिन्न क्लासों के लिए छापी हैं। सबसे ताज़ा उदाहरण सातवी कक्षा की सोशल साइंस की किताब है। जिसमें जाति व्यवस्था को सही ठहराया गया है।
जस्टिस विनोद दिवाकर ने 16 सितंबर को यह आदेश जारी किया है। आदेश में सुझाव दिया गया है कि स्कूल के पाठ्यपुस्तकों में जाति और सामाजिक असमानता के प्रति छात्रों को संवेदनशील बनाने वाली सामग्री शामिल की जानी चाहिए। यह मामला अप्रैल 2023 में हरियाणा से यूपी के रास्ते बिहार में अवैध शराब ले जाने से जुड़ा है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने दो कारों को रोका और एफआईआर में आरोपियों की जाति का उल्लेख किया था। अदालत ने पुलिस को जाति का उल्लेख न करने का निर्देश दिया।
जाति के मुद्दे पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि सरकार द्वारा जाति-आधारित असमान व्यवस्थाओं को दूर करने के लिए उठाए गए कदम पॉजिटिव कार्रवाई पर केंद्रित हैं, लेकिन सामाजिक भेदभाव को खत्म करने पर नहीं। आदेश में कहा गया, “कानून प्रत्यक्ष भेदभाव के कृत्यों को दंडित कर सकता है, लेकिन यह अभी संस्थानों, स्कूलों, कार्यस्थलों और गांवों में मौजूद है। देश में स्वच्छता और जेंडर समानता जैसे अभियानों की तरह जातिगत भेदभाव को विशेष रूप से टारगेट करने वाला कोई राष्ट्रव्यापी जागरूकता कार्यक्रम नहीं है।” 
ताज़ा ख़बरें
अदालत ने कहा, “स्कूलों में जाति-विरोधी शिक्षा के लिए विशेष रूप से समर्पित कोई व्यवस्थित पाठ्यक्रम मॉड्यूल नहीं है... जातिगत भेदभाव को कम करने के लिए, सरकार को कानूनों के साथ-साथ निरंतर कार्यक्रमों की आवश्यकता है। सामाजिक सद्भाव और जातिगत समानता को बढ़ावा देने वाला एक राष्ट्रीय अभियान चलाना चाहिए। स्कूल पाठ्यक्रम में बच्चों को समानता, गरिमा और जातिगत भेदभाव के खतरों के बारे में सिखाना चाहिए।” 

यह अदालती आदेश ऐसे समय में आया है जब राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) सभी कक्षाओं के लिए नई पाठ्यपुस्तकें तैयार कर रही है। पिछले साल, इसने तीसरी और छठी कक्षा के लिए पाठ्यपुस्तकें पेश की थीं। इस साल, चौथी, पांचवीं, सातवीं और आठवीं कक्षा के लिए नई किताबें जारी की जाएंगी। कुछ किताबें पहले ही उपलब्ध कराई जा चुकी हैं। लेकिन उसकी किताबें आए दिन विवाद पैदा कर रही है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि वो सरकार के इशारे पर इतिहास को गलत तरह से पेश कर रही है।

एनसीईआरटी ने जाति व्यवस्था का बचाव किया

सातवीं कक्षा की सोशल साइंस की किताब "एक्सप्लोरिंग सोसाइटी इंडिया एंड बियॉन्ड" जाति व्यवस्था का बचाव करती है, यह कहते हुए कि यह लचीली थी और इसने भारत की सामाजिक संरचना को स्थिरता प्रदान की। इस किताब में कहा गया है कि भारतीय समाज में दो-स्तरीय व्यवस्था थी: "जाति" जो पेशे से जुड़ी थी और "वर्ण" जो वैदिक ग्रंथों में बताई गई व्यवस्था थी। इसके मुताबिक चार वर्ण थे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
किताब में एक अंश में कहा गया है, “ऐतिहासिक साक्ष्य, ग्रंथों और शिलालेखों में, यह दर्शाते हैं कि प्रारंभिक काल में व्यक्ति और समुदाय परिस्थितियों की मांग पर अपने पेशेवर व्यवसायों को बदल लेते थे। उदाहरण के लिए, लंबे समय तक सूखा या कोई प्राकृतिक आपदा किसी किसान समुदाय को शहर में प्रवास करने और अन्य व्यवसाय अपनाने के लिए मजबूर कर सकती थी। कुछ ब्राह्मण व्यापार या यहां तक कि सैन्य गतिविधियों की ओर मुड़ सकते थे। इस जटिल व्यवस्था ने भारतीय समाज को संरचित किया, इसकी गतिविधियों, जिसमें आर्थिक गतिविधियां शामिल थीं, को संगठित किया और इसलिए इसे कुछ स्थिरता प्रदान की।”
इसमें आगे कहा गया, “इस बात पर व्यापक सहमति है कि यह व्यवस्था पहले के समय में काफी अलग (विशेष रूप से अधिक लचीली) थी और समय के साथ, विशेष रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान, अधिक कठोर हो गई।”

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज के प्रोफेसर और सामाजिक न्याय के लिए अकादमिक मंच के अध्यक्ष हंसराज सुमन ने कहा कि एनसीईआरटी को जाति को एक असमान व्यवस्था के रूप में बताते हुए पर्याप्त सामग्री शामिल करनी चाहिए थी। 
देश से और खबरें
सुमन ने कहा, “जाति का बचाव करने के बजाय, एनसीईआरटी को बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर, ज्योतिबा फुले, पेरियार के जीवन और उनकी विरासत के बारे में सामग्री देनी चाहिए थी। छात्रों को यह जानना चाहिए कि आंबेडकर को स्कूल में अपने उच्च जाति के सहपाठियों और शिक्षकों द्वारा कैसे भेदभाव का सामना करना पड़ा। इससे बच्चों को असमान जाति व्यवस्था और आरक्षण जैसी सकारात्मक नीतियों की प्रासंगिकता को समझने में मदद मिलती।”