RSS Mathura Kashi Temples: आरएसएस सरसंघचालक मोहन भागवत ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह स्थल हिंदुओं को सौंपने की मांग का समर्थन किया। उनका कहना है कि संघ कार्यकर्ता इससे जुड़े आंदोलन में हिस्सा ले सकते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने दिल्ली में अपनी तीन दिवसीय व्याख्यानमाला के समापन पर वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह के विवादित स्थलों को हिंदुओं को सौंपने की मांग का समर्थन किया। यह बयान धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से संवेदनशील माना जा रहा है और इसने एक बार फिर इन ऐतिहासिक विवादों को सुर्खियों में ला दिया है। इस बयान पर इसलिए भी ध्यान गया है, क्योंकि इस समय नेता विपक्ष राहुल गांधी की लोकप्रियता वोट चोरी आंदोलन की वजह से बढ़ी है। एक सर्वे में इसका जिक्र किया गया है कि अगर आज चुनाव हो जाए तो बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकती। क्या यह सवाल बनता है कि बिहार, बंगाल और उसके बाद यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मथुरा, काशी और संभल के मुद्दे को आरएसएस ने उभारा है।
मोहन भागवत का बयान
'संघ की 100 वर्षों की यात्रा- नए क्षितिज' व्याख्यानमाला के अंतिम दिन गुरुवार को भागवत ने कहा कि संघ इन स्थलों को हिंदुओं को सौंपने की मांग का समर्थन करता है। भागवत ने दूसरे पक्ष (मुस्लिमों) को अपनी दावेदारी छोड़ने को कहा। उन्होंने स्वयंसेवकों को इन स्थलों के लिए किसी भी आंदोलन में शामिल होने की स्वतंत्रता दी। भागवत ने आयोजन में शामिल लोगों के 218 सवालों के जवाब दिए, जिनमें यह मुद्दा भी शामिल था।
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद
वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर लंबे समय से विवाद है। यह भी पहले अदालत में ज्ञानवापी के सर्वे की मांग की गई। अदालत ने सर्वे का आदेश दिया। सर्वे रिपोर्ट में इसे हिन्दू मंदिर घोषित कर दिया गया। यहां भी याचिकाकर्ता संभल वाले विष्णु शंकर जैन हैं। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद का निर्माण 17वीं सदी में औरंगजेब द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर किया गया था। हाल के वर्षों में, पुरातात्विक सर्वेक्षणों और अदालती कार्यवाहियों ने इस विवाद को और जटिल बना दिया है। हिंदू संगठन मस्जिद परिसर में मंदिर की बहाली की मांग कर रहे हैं, जबकि मुस्लिम पक्ष इसे मस्जिद के रूप में बनाए रखने की वकालत करता है।
मथुरा शाही ईदगाह विवाद
मथुरा में शाही ईदगाह और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बीच का विवाद भी दशकों पुराना है। हिंदू पक्ष का दावा है कि ईदगाह का निर्माण श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर को तोड़कर किया गया था। इस मामले में भी अदालती सुनवाई चल रही है, और कई संगठन मंदिर की बहाली की मांग कर रहे हैं।
ये दोनों विवाद अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले की तरह ही धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील हैं। 1991 के पूजा स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम के तहत, 15 अगस्त 1947 की स्थिति में धार्मिक स्थलों की प्रकृति को बदला नहीं जा सकता, लेकिन हिंदू पक्ष इस कानून को मानने को तैयार नहीं है। कुछ मामलों में अदालत में एक ही पैटर्न पर याचिका दायर कर सर्वे की मांग की गई। सर्वे रिपोर्ट में जगह को हिन्दू मंदिर बताया गया।
फिलहाल, दोनों मामले अदालत में हैं, और पुरातात्विक सर्वेक्षणों व कानूनी दलीलों के आधार पर फैसले की प्रतीक्षा है। भागवत के बयान के बाद इस मुद्दे पर सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियां तेज होने की संभावना है। विश्लेषकों का कहना है कि विपक्षी दल देश में बुनियादी मुद्दे उठा रहा है और बीजेपी-आरएसएस अभी भी जनता को हिन्दू-मुस्लिम विवादों में उलझाए हुए हैं। बिहार एसआईआर और नेता विपक्ष राहुल गांधी के वोट चोरी आंदोलन ने बीजेपी की लोकप्रियता पर चोट की है। मूड ऑफ द नेशन सर्वे में कहा गया है कि अगर आज चुनाव हो तो बीजेपी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर सकती है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन की वजह से बीजेपी केंद्र की सत्ता तक पहुंची। आरएसएस और बीजेपी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि धार्मिक मुद्दा ही उनके हिन्दू वोट बैंक को एकजुट रखता है। इसलिए मथुरा, काशी और संभल मुद्दे को फिर से जिन्दा किया जा रहा है। इस साल बिहार चुनाव है, अगले साल पश्चिम बंगाल और उसके बाद 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव है। इसलिए आरएसएस इस मुद्दे पर फिर से ज़ोर दे रहा है।