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नागरिकता क़ानून: पूर्वोत्तर-बंगाल में विरोध जारी, 6 लोगों की मौत, मोदी से मिलेंगे सीएम

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ पूर्वोत्तर के राज्यों में हो रहे विरोध प्रदर्शन जारी हैं। विशेषकर असम में लोगों का आक्रोश थम नहीं रहा है। असम सरकार को हालात को संभालने में मुश्किल पेश आ रही है क्योंकि प्रदर्शनकारी अपने रुख से पीछे नहीं हट रहे हैं। अब इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल और कुछ अन्य बीजेपी नेता जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात करने के लिए दिल्ली आएंगे। असम के संसदीय कार्य मंत्री चन्द्र मोहन पटोवारी ने शनिवार को बताया कि यह फ़ैसला लिया गया है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से मिलकर उन्हें राज्य के हालात के बारे में बताया जाएगा। बीजेपी के लिए मुश्किलें इसलिए ज़्यादा बढ़ गई हैं क्योंकि एनडीए में उसकी सहयोगी असम गण परिषद भी खुलकर इसके विरोध में उतर आई है। 
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मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने ट्वीट कर सभी लोगों शांति बनाए रखने की अपील की है। उन्होंने कहा कि हम भारत के सभी वैध नागरिकों की सुरक्षा और असम के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा, ‘मैं समाज के सभी वर्गों का आह्वान करता हूं कि वे इस क़ानून को लेकर गुमराह करने वालों और जो हिंसा में शामिल हैं, ऐसे लोगों को विफल कर दें। हमें असम की विकास यात्रा को जारी रखना है।’ 

असम में इस क़ानून के विरोध में हुए प्रदर्शनों में अब तक 6 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि कई लोग घायल हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में भी इस क़ानून के ख़िलाफ़ लोग सड़कों पर हैं और वहां से 5 ट्रेनों, तीन रेलवे स्टेशनों और 25 बसों में तोड़फोड़ किए जाने की ख़बर है। असम में इंटरनेट सेवाओं को बंद रखने की समयसीमा आगे बढ़ाते हुए इसे 16 दिसंबर तक बंद रखा गया है। हालाँकि डिब्रूगढ़ और गुवाहाटी और मेघालय के कुछ हिस्सों में कर्फ़्यू में ढील दी गई है। 

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश के बाक़ी राज्यों में भी विरोध की आग फैलने लगी है। शुक्रवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ जोरदार प्रदर्शन किया था। देश में कई जगहों से इसके विरोध में प्रदर्शन किए जाने की ख़बरें हैं। अब राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने क़ानून के विरोध में 21 दिसंबर को ‘बिहार बंद’ बुलाया है।
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राज्य सरकारों ने जताया विरोध 

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर विपक्षी दलों की सरकारों ने मुखर विरोध जताया है। पश्चिम बंगाल, पंजाब और केरल की सरकारों ने कहा है कि वे अपने-अपने राज्यों में इस क़ानून को लागू नहीं होने देंगे। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस शासित सरकारों ने भी इस क़ानून को संविधान विरोधी क़रार दिया है। 

इस क़ानून के अनुसार 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध नागरिक नहीं माना जाएगा और उन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी। 

विपक्षी राजनीतिक दलों का कहना है कि यह क़ानून संविधान के मूल ढांचे के ख़िलाफ़ है। इन दलों का कहना है कि यह क़ानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है और धार्मिक भेदभाव के आधार पर तैयार किया गया है।

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर मोदी सरकार की अगली परीक्षा सुप्रीम कोर्ट में होगी। इंडियन यूनियन मुसलिम लीग (आईयूएमएल), जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने इस क़ानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसके ख़िलाफ़ कोर्ट में याचिका दाख़िल की है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा है कि वह इस विधेयक के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएगी। 

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क़मर वहीद नक़वी
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