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मुख्य सूचना आयुक्त हीरालाल सामरिया

नए CIC की नियुक्ति चुनाव के दौरान क्यों, कांग्रेस ने खड़े किए सवाल

विपक्ष और केंद्र के बीच टकराव का एक और मोर्चा खुल गया है। सोमवार को मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में सूचना आयुक्त हीरालाल सामरिया की नियुक्ति विवाद का मुद्दा बन गई है। कांग्रेस सांसद और विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी ने अध्यक्ष द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें सीआईसी के चयन के बारे में "पूरी तरह से अंधेरे में रखा गया"। तमाम संस्थाओं में नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार की एक नियुक्ति समिति है, जिसका सदस्य नेता विपक्ष भी होता है। लेकिन केंद्र सरकार ऐसी नियुक्तियों में अब नेता विपक्ष की सलाह नहीं ले रही है। पहले की नियुक्तियों में भी कई विवाद हो चुके हैं।
हीरालाल सामरिया को सोमवार को राष्ट्रपति मुर्मू ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा सत्तारूढ़ पार्टी के कई नेता और मंत्री मौजूद थे।
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लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने लिखा, ''अत्यंत दुख और भारी मन से मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूं कि केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के चयन के मामले में सभी लोकतांत्रिक मानदंडों, रीति-रिवाजों और प्रक्रियाओं की धज्जियां उड़ा दी गईं। सरकार ने चयन के बारे में न तो मुझसे परामर्श किया और न ही मुझे सूचित किया।''
सरकार की पैंतरेबाजीः कांग्रेस सांसद चौधरी के करीबी सूत्रों ने बताया कि सरकार की ओर से उन्हें एक बैठक के बारे में बताया गया था, फिर तारीखें बदल दी गईं। जिसके कारण उन्हें अपना यात्रा कैलेंडर फिर से तय करना पड़ा, कोलकाता की अपनी यात्रा स्थगित करनी पड़ी। उसके बाद अचानक पता चला कि सीआईसी का नाम घोषित किया जाना था और उन्हें अंधेरे में रखा गया।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुसार, सीआईसी और आईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिश पर की जाती है। इस समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता (या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता) शामिल होते हैं। प्रधान मंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री भी समिति में होता है।
चौधरी ने बताया कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के अधिकारी अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में समिति की बैठक के लिए उनकी उपलब्धता के लिए उनके कार्यालय पहुंचे थे। उनके कार्यालय ने उन्हें सूचित किया कि वह 2 नवंबर तक दिल्ली में उपलब्ध हैं और उन्हें 3 नवंबर को पूर्व निर्धारित बैठक में भाग लेने के लिए पश्चिम बंगाल जाना है।
इसके बाद अधीर को डीओपीटी से एक पत्र मिला जिसमें बताया गया कि समिति की बैठक 3 नवंबर को शाम 6 बजे होने वाली है। इसके बाद उन्होंने कार्मिक, लोक शिकायत और मंत्रालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह को पत्र लिखा। उनसे बैठक की तारीख फिर से तय करने का आग्रह किया। क्योंकि वो बंगाल में हैं।
चौधरी के दफ्तर ने इस संबंध में 1 नवंबर को डीओपीटी को पत्र भी भेजा था। राष्ट्रपति को लिखे पत्र में अधीर ने कहा- “बैठक के कार्यक्रम के संबंध में, मेरा कार्यालय लगातार डीओपीटी के संबंधित अधिकारियों के संपर्क में था। यह बहुत स्पष्ट शब्दों में सूचित किया गया था कि एक पूर्व-निर्धारित समारोह के कारण, जिसमें मुझे पश्चिम बंगाल में भाग लेना है। मेरे लिए प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार बैठक में भाग लेना संभव नहीं होगा।”
उन्होंने लिखा है- यह अनुरोध किया गया था कि बैठक को उस दिन शाम 6 बजे के बजाय 1 या 2 नवंबर, 2023 या 3 नवंबर, 2023 को सुबह 9 बजे आयोजित करने के लिए पुनर्निर्धारित किया जा सकता है। चूंकि मैं 3 नवंबर, 2023 की शाम को कोलकाता की पूर्व निर्धारित बैठक में भाग लेने के लिए प्रतिबद्ध हूं, इसलिए मैं प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार बैठक में भाग लेने में असमर्थता व्यक्त करने के लिए मजबूर हूं।
अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार ने मेरे अनुरोधों पर कोई ध्यान नहीं दिया और मुझे सूचित किए बिना नए सीआईसी की नियुक्ति कर दी। 3 अक्टूबर को वाई के सिन्हा का कार्यकाल पूरा होने के बाद से सीआईसी का पद खाली है। 2020 में सीआईसी के रूप में सिन्हा की नियुक्ति भी समिति की बैठक में चौधरी की कड़ी आपत्तियों के बावजूद हुई थी। नए सीआईसी हीरालाल सामरिया पूर्व आईएएस अधिकारी हैं। सामरिया ने श्रम और रोजगार सचिव के रूप में कार्य किया था। उन्हें नवंबर 2020 में आईसी नियुक्त किया गया था।
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कांग्रेस की कड़ी आपत्ति

कांग्रेस नेता और सांसद प्रमोद तिवारी ने सीआईसी नियुक्ति विवाद में और मुद्दे भी उठाए हैं। प्रमोद तिवारी ने कहा कि इस समय पांच राज्यों के चुनाव हो रहे हैं। चुनाव आचार संहिता लागू है, ऐसे में सरकार कोई नीतिगत फैसले नहीं ले सकती। सीआईसी की नियुक्ति भी उसी दायरे में आती है। इसके बावजूद मोदी सरकार आचार संहिता की धज्जियां उड़ा रही है। नए सीआईसी की नियुक्ति में भी यही किया गया है। इससे पहले पीएम मोदी ने अगले पांच वर्षों तक मुफ्त राशन योजना लागू रहने की घोषणा चुनावी रैली में की थी। लेकिन चुनाव आयोग इन बातों का कोई संज्ञान नहीं ले रहा है।
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क़मर वहीद नक़वी
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