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मणिपुर मीडिया का एक समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह: ईजीआई को सेना का पत्र

एफ़आईआर का सामना कर रहे एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया यानी ईजीआई का प्रतिनिधिमंडल सेना के निमंत्रण पर मणिपुर में मीडिया रिपोर्टिंग का मूल्यांकन करने गया था। इसने सुप्रीम कोर्ट को यह बात बताई है। मणिपुर पुलिस द्वारा फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट के लिए ईजीआई पर एफ़आईआर दर्ज करने के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा है। इसने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि सेना के ख़त में ईजीआई को बताया गया कि इम्फाल घाटी के मीडिया आउटलेट उन तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने में लगे हुए हैं जो पत्रकारिता नैतिकता के सभी मानदंडों का उल्लंघन करते हैं। ख़त में कहा गया कि इस प्रक्रिया में आगे की हिंसा को भड़काने वाले ये हो सकते हैं।

ईजीआई की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा को 12 जुलाई को लिखे गए सेना के ख़त में कहा गया है, 'मैं आपके ध्यान में मणिपुर की इंफाल घाटी में मीडिया आउटलेट्स द्वारा की जा रही पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग को लाने के लिए लिख रहा हूँ। ...संवेदनशील स्थिति को भड़काने वाली सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए 4 मई को इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया था। हालाँकि, इम्फाल घाटी के मीडिया आउटलेट उन तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने में लगे हुए हैं जो पत्रकारिता की नैतिकता के सभी मानदंडों का उल्लंघन करते हैं और इस प्रक्रिया में आगे की हिंसा को भड़काने वालों में से एक हो सकते हैं।'

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उस ख़त में कहा गया है कि मीडिया का एक समुदाय के पक्ष में और दूसरे समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह उनकी रिपोर्ताज में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उसमें यह भी कहा गया है कि गलत रिपोर्टिंग की मात्रा बहुत अधिक है। ख़त में कई घटनाओं का भी ज़िक्र किया गया है। 

ईजीआई को लिखे गए ख़त में खमेनलोक में 13 जून की एक ख़बर का ज़िक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि 'भीड़ ने 12 जून से खमेनलोक और आसपास के इलाकों के गांवों पर धावा बोल दिया था। भीड़ को महिलाओं का पूरा समर्थन प्राप्त था, जिन्होंने गांव तक पहुंचने की कोशिश कर रहे सेना के जवानों को रोक दिया, ताकि भीड़ बिना किसी बाधा के गांव को जला सके। कई गांवों में आगजनी करने के बाद उनका समर्थन करने वाले जवाबी हमले में मारे गए। यह हमलावरों पर हमला करने का स्पष्ट मामला था। मारे गए लोगों में से कुछ उस क्षेत्र के नहीं थे और यह तथ्य कि वे दूसरे समुदाय के एक गांव में मारे गए थे।' ख़त में अखबारों के स्क्रीनशॉट साझा किए गए हैं जिनके शीर्षक कुछ इस तरह से मिलते-जुलते हैं- 'कुकी आतंकी हमले में कम से कम 9 नागरिक मारे गए'।

खत में 9 जून की एक और घटना का ज़िक्र है। इसमें कहा गया, 'खोकेन के कुकी गांव पर 9 जून की सुबह 4 बजे पुलिस की वर्दी पहने हथियारबंद बदमाशों ने हमला कर दिया था। इस घटना में तीन लोगों की मौत हो गई, जिसमें एक 67 वर्षीय महिला भी शामिल थी, जिसे गांव के चर्च में गोली मार दी गई थी। जब यह खबर फैली कि सेना हमलावरों के साथ मुठभेड़ कर रही है तो बड़ी संख्या में मैतेई महिलाएं पास के गांव सांगाइथेल में इकट्ठा होने लगीं। 9 जून को दोपहर तक कुकी हैंडल से मृतकों के नाम ट्विटर पर पोस्ट किए गए। कुकी उग्रवादियों द्वारा खोकेन गांव (कुकी गांव) पर हमला और मारे गए लोगों को कुकी उग्रवादी (एक 67 वर्षीय महिला और एक 70 वर्षीय पुरुष) बताया जाना पत्रकारिता में एक और काला क्षण साबित हो सकता है।' साझा किए अख़बारों के स्क्रीनशॉट में शीर्षक है- 'गन फाइट में तीन मारे गए, दो घायल'।
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4 जून को एक एम्बुलेंस को जलाए जाने की घटना का भी ज़िक्र किया गया है। सेना के ख़त में कहा गया है कि "घटना इम्फाल के इरोइसेम्बा इलाके में घटी। गोली लगने से घायल होने के कारण अस्पताल ले जाए जा रहे सात वर्षीय कुकी लड़के को शाम करीब 6 बजे मैतेई लोगों की भीड़ ने उसकी मैतेई मां और एक अन्य रिश्तेदार के साथ एम्बुलेंस के अंदर जिंदा जला दिया। लड़के के पिता कुकी थे और यह रिश्ता पूरे परिवार पर कुकी समुदाय का होने का ठप्पा लगाने के लिए काफी था। भीड़ ने दो महिलाओं और एक बच्चे को एंबुलेंस में जिंदा जला दिया। इम्फाल मीडिया ने इस घटना को पूरी तरह से ब्लैक आउट कर दिया, क्योंकि इससे एक समुदाय की छवि खराब होती। एक घटना जो पहले पन्ने की सुर्खियाँ होनी चाहिए थी, वह अखबारों से स्पष्ट रूप से गायब थी। हालाँकि, इसे 6 जून को कुछ राष्ट्रीय मीडिया के पत्रकारों द्वारा उठाया गया और अंततः 7 जून तक अधिकांश राष्ट्रीय मीडिया पोर्टलों पर सामने आया। वहां भी, कुकी भीड़ पर जलाने का आरोप लगाने का असफल प्रयास किया गया।'

ख़त में कहा गया है कि ये कुछ मामले हैं जो स्थानीय मीडिया द्वारा बड़े पैमाने पर की जा रही 'अनैतिक' रिपोर्टिंग के कुछ उदाहरण हैं। उसमें कहा गया है कि ऐसे मामले बहुत हुए हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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