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अनुच्छेद 35 ए ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों को छीना : सीजेआई

सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को अनुच्छेद 370 पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35 ए जिसे 2019 में खत्म कर दिया गया था, उसने जम्मू और कश्मीर में नागरिकों के कई मौलिक अधिकारों को छीन लिया। 
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि इसने नागरिकों से जम्मू- कश्मीर में रोजगार, अवसर की समानता और संपत्ति अर्जित करने के अधिकारों को छीना है। ये अधिकार खास तौर पर गैर-निवासियों से छीने गए हैं। 

सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच सोमवार को 11 वें दिन जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को रद्द करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। 

ये सब अधिकार गैर निवासियों से छीने गए 

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधीन आने वाले किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता, अचल संपत्ति को अर्जित करने का अधिकार और राज्य सरकार के तहत रोजगार का अधिकार आता है। 

ये सब अधिकार गैर निवासियों से छीने गए क्योंकि निवासियों के विशेष अधिकार थे। 

सीजेआई ने कहा कि संवैधानिक सिद्धांत के अनुसार, भारत सरकार एक एकल इकाई है और भारत सरकार एक शाश्वत इकाई है। 

सीजेआई ने कहा कि राज्य सरकार के तहत रोजगार विशेष रूप से अनुच्छेद 16(1) के तहत नागरिकों को प्रदान किया जाता है। जम्मू और कश्मीर में जहां एक ओर अनुच्छेद 16(1) को संरक्षित रखा गया, वहीं 35 ए ने उस मौलिक अधिकार को ही छीन लिया जिसके आधार पर किसी भी चुनौती से सुरक्षा दी जाती थी। इसी तरह, अनुच्छेद 19 देश के किसी भी हिस्से में नागरिकों को रहने और बसने का अधिकार देता है। 

हमने पिछली गलती को सुधार लिया है 

सुनवाई के दौरान सोमवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें रखीं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में सभी मामलों को संशोधन के साथ लागू किया गया था। 

उन्होंने कहा कि भारत के संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 21ए के तहत शिक्षा का अधिकार जोड़ा गया ,लेकिन यह बेहद महत्वपूर्ण अधिकार भी 2019 तक जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं हो पाया था। 

एसजी तुषार मेहता ने कहा कि पूर्व की गलतियों का असर आने वाली पीढ़ियों पर नहीं पड़ सकता है। हमने 2019 में पिछली गलती को सुधार लिया है। 

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केंद्र का फैसला बराबरी का दर्जा देता है

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जम्मू और कश्मीर से अनुच्छेद 35 ए को हटाने के फैसले का बचाव किया और इसको लेकर दलीलें दी। 

उन्होंने कहा कि यहां जिस चीज पर आपत्ति जताई गई है वह सत्ता का संवैधानिक प्रयोग है। जो कि मौलिक अधिकार प्रदान करता है और संपूर्ण संविधान को लागू करता है। 

केंद्र का यह फैसला जम्मू-कश्मीर के लोगों को बराबरी का दर्जा देता है। यह उन सभी कल्याणकारी कानूनों को लागू करता है जो जम्मू-कश्मीर में पहले लागू नहीं थे। 

उन्होंने कहा कि अब जम्मू और कश्मीर में निवेश आ रहा है। अब पुलिसिंग केंद्र के पास होने से पर्यटन शुरू हो गया है। 

जम्मू-कश्मीर में परंपरागत रूप से कुटीर उद्योग थे और आय का स्रोत पर्यटन था। अभी 16 लाख पर्यटक आए हैं। वहां नए-नए होटल खुल रहे हैं जिससे बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिलता है। 

उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का संविधान केवल एक कानून के बराबर है। यह उस तरह का संविधान नहीं है जैसा कि हम समझते हैं। 

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2019 में खत्म किया गया था अनुच्छेद 370 और 35 ए

2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रस्ताव दिया कि अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को खत्म कर दिया जाए। इस पर तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने एक आदेश जारी किया था जिसमें कहा गया था कि भारतीय संविधान के प्रावधान अब से जम्मू और कश्मीर पर लागू होंगे। 

इसे खत्म करने के बाद पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती, नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला समेत कई नेताओं को एहतियातन घर में नजरबंद कर दिया गया था। केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई थी। इन्हीं याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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