इतिहास की अज्ञानता और सांप्रदायिक नफ़रत का एक और उदाहरण सामने आया है—बहादुर शाह ज़फ़र की तस्वीर को औरंगज़ेब समझकर बिगाड़ दिया गया। जानिए पूरा मामला और इस पर उठ रहे सवाल।
फोटो साभार: एक्स/@zoo_bear/वीडियो ग्रैब
लीजिए, बहादुरशाह जफर को फिर से औरंगज़ेब समझकर एक हिंदू संगठन के लोगों ने बवाल कर दिया। मामला उत्तर प्रदेश के गजियाबाद रेलवे स्टेशन का है। हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने बहादुर शाह जफर की पेंटिंग को औरंगजेब की पेंटिंग समझकर कालिख पोत दी। यह पेंटिंग उस बहादुर शाह जफर की थी जो 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक थे और भारत में उनको काफ़ी सम्मान से देखा जाता है। यहाँ तक कि पीएम मोदी ने म्यांमार की अपनी यात्रा के दौरान यांगून शहर में बहादुर शाह जफर की मजार पर न सिर्फ़ श्रद्धासुमन अर्पित किए थे, बल्कि उनकी तस्वीरें भी उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट की थीं।
लेकिन अब यही बहादुरशाह जफर हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं के निशाने पर आ गए। 18 अप्रैल को गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने स्टेशन के सौंदर्यकरण के तहत बनाई गई स्वतंत्रता सेनानियों की पेंटिंग्स में से एक पर कालिख पोत दी। यह पेंटिंग अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की थी, लेकिन कार्यकर्ताओं ने इसे मुगल बादशाह औरंगजेब की तस्वीर समझ लिया।
एक्स पर वायरल हुए वीडियो में कार्यकर्ताओं को पेंटिंग पर काला स्प्रे करते और नारे लगाते देखा गया। रेलवे ने इस घटना की निंदा की और रेलवे सुरक्षा बल यानी आरपीएफ़ ने रेलवे अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया।
दरअसल, यह घटना न केवल ऐतिहासिक अज्ञानता को दिखाती है, बल्कि नफ़रत को भी दिखाती है। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ एक्स यूजर्स ने इसे ऐतिहासिक अज्ञानता करार दिया, जबकि अन्य ने इसे मुस्लिम विरोधी भावना से जोड़ा। एक यूज़र दिव्यानी सिंह राजपूत ने लिखा, 'इसलिए शिक्षा इतनी महत्वपूर्ण है।' इस घटना ने न केवल हिंदू रक्षा दल की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए, बल्कि हिंदू समूहों द्वारा ऐसी गतिविधियों के व्यापक प्रभावों को भी सामने लाया।
हिंदू समूहों द्वारा तोड़फोड़ या ग़लत पहचान से जुड़ी यह कोई पहली घटना नहीं है। पिछले महीने ही जब औरंगजेब की कब्र का विवाद चल रहा था तब भी औरंगजेब समझकर बहादुरशाह जफर की तस्वीर को जला दिया गया था।
बहादुरशाह जफर को स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है और उनकी 1857 की क्रांति में बड़ी भूमिका रही है। बहादुर शाह जफर मुगल साम्राज्य के अंतिम सम्राट थे और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकात्मक नेता रहे। उनकी विशेषताएं न केवल उनके शासनकाल, बल्कि उनकी व्यक्तिगत जिंदगी, काव्य रचनाओं और ऐतिहासिक महत्व के कारण उल्लेखनीय हैं।
बहादुर शाह जफर 1837 में मुगल सम्राट बने, लेकिन उस समय मुगल साम्राज्य का प्रभाव केवल दिल्ली के लाल किले तक सीमित रह गया था। वे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की कठपुतली के रूप में शासन करते थे, जिसके कारण उनकी राजनीतिक शक्ति नाममात्र की थी। लेकिन 1857 के विद्रोह में सिपाहियों ने उन्हें भारत का सम्राट घोषित किया और उनके नेतृत्व में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हालांकि, वे स्वयं इस भूमिका के लिए अनिच्छुक थे और सैन्य नेतृत्व में सक्रिय नहीं रहे, फिर भी उनकी उपस्थिति ने विद्रोह को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बहादुर शाह जफर एक उत्कृष्ट उर्दू कवि थे, जिन्हें "जफर" उपनाम से जाना जाता है। जफर ने दिल्ली को सांस्कृतिक केंद्र के रूप में बनाए रखा। उनके दरबार में गालिब, दाग देहलवी, और मोमिन जैसे प्रसिद्ध कवि और साहित्यकार थे। वे संगीत, कला, और साहित्य के प्रति गहरी रुचि रखते थे।
जफर धार्मिक रूप से सहिष्णु थे और हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। 1857 के विद्रोह में उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को एकजुट करने की कोशिश की और गायों की हत्या पर प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठाए ताकि हिंदू भावनाओं का सम्मान हो।
1857 का विद्रोह असफल होने के बाद ब्रिटिश सरकार ने जफर को बंदी बना लिया और 1858 में उन्हें रंगून निर्वासित कर दिया। वहां उन्होंने अपने अंतिम दिन गरीबी और अपमान में बिताए। उनकी मृत्यु 7 नवंबर, 1862 को हुई।
जफर को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के खिलाफ भारतीय प्रतिरोध का प्रतीक माना जाता है। उनकी सादगी, देशप्रेम, और दुखद कहानी ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक विशेष स्थान दिलाया।
बहरहाल, हाल के महीनों में ऐसी कई घटनाएँ सामने आई हैं, जो नफ़रत भड़काने वाली रही हैं और इन वजहों से हिंसा तक भड़क गई है। हाल में रामनवमी पर इस तरह का बवाल कई जगहों पर दिखा।
गाजियाबाद की घटना ऐतिहासिक अज्ञानता का साफ़ उदाहरण है। बहादुर शाह जफर को औरंगजेब जैसे विवादास्पद शासक के साथ भ्रमित करना न केवल शिक्षा की कमी को दिखाता है, बल्कि मुगल इतिहास के प्रति एक सामान्यीकृत नफरत को भी उजागर करता है। यह धारणा कि सभी मुगल शासक हिंदू-विरोधी थे, दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा प्रचारित की जाती है।
हिंदू संगठनों की गतिविधियां हिंदुत्व की विचारधारा से प्रेरित हैं, जो भारत को हिंदू राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की वकालत करती है। यह विचारधारा धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ उत्तेजक कार्रवाइयों को बढ़ावा देती है। गाजियाबाद की घटना में मुस्लिम-विरोधी भावना साफ़ थी, क्योंकि कार्यकर्ताओं ने पेंटिंग को मुगल शासक से जोड़ा, जिसे वे हिंदू-विरोधी मानते हैं।
एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इन घटनाओं को बढ़ावा देने और सामाजिक ध्रुवीकरण को तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। गाजियाबाद की घटना के बाद एक्स पर कुछ यूजर्स ने हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं का समर्थन किया, जबकि अन्य ने इसे नफ़रत का उदाहरण बताया।
गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर बहादुर शाह जफर की पेंटिंग पर कालिख पोतने की घटना और हाल की अन्य समान घटनाएं हिंदू संगठनों द्वारा तोड़फोड़ और गलत पहचान की बढ़ती प्रवृत्ति को दिखाती हैं। ये घटनाएं ऐतिहासिक अज्ञानता, हिंदुत्ववादी विचारधारा, और सामाजिक ध्रुवीकरण का परिणाम हैं।