Aadhar ECI Supreme Court Citizenship: न्यायपालिका के इतिहास में 12 अगस्त ऐतिहासिक दिन है। बॉम्बे हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि आधार को नागरिकता के सबूत के सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग की दलील सही है।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) की इस दलील पर मुहर लगा दी कि आधार को भारतीय नागरिता के सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग अपनी जगह सही है कि आधार कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड की प्रामाणिकता की जांच करना अनिवार्य है। चुनाव आयोग अदालत में कह चुका है कि आधार को नागरिकता के सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। दो प्रमुख अदालतों की एक ही दिन में एक जैसी टिप्पणी आई है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को ही एक अन्य मामले में भी यही टिप्पणी की है।
जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (एसआईआर) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, "चुनाव आयोग का यह कहना सही है कि आधार को नागरिकता के निर्णायक प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इसे सत्यापित किया जाना चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सबसे पहले यह तय करना होगा कि क्या चुनाव आयोग के पास सत्यापन प्रक्रिया करने का अधिकार है। जस्टिस सूर्यकांत ने टिप्पणी की, "अगर उनके (चुनाव आयोग) पास अधिकार नहीं है, तो सब कुछ खत्म हो जाता है। लेकिन अगर उनके पास अधिकार है, तो कोई समस्या नहीं हो सकती।"
लाइव लॉ के मुताबिक जाने माने वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया से बड़े पैमाने पर मतदाता बाहर हो जाएँगे, खासकर वे मतदाता जो ज़रूरी फ़ॉर्म तक जमा नहीं कर पाएँगे। उन्होंने दावा किया कि 2003 की मतदाता सूची में शामिल मतदाताओं को भी नए फ़ॉर्म भरने होंगे, और ऐसा न करने पर, निवास में कोई बदलाव न होने के बावजूद, नाम हटा दिए जाएँगे।
सिब्बल ने कोर्ट में कहा- चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार 7.24 करोड़ लोगों ने फॉर्म जमा किए थे, फिर भी लगभग 65 लाख लोगों के नाम बिना किसी उचित जाँच या मृत्यु या पलायन के आधार पर सूची से बाहर कर दिए गए। उन्होंने बेंच से कहा, "उन्होंने अपने हलफनामे में स्वीकार किया है कि उन्होंने कोई सर्वे नहीं कराया।"
अदालत ने सवाल किया कि 65 लाख का आँकड़ा कैसे निकाला गया और क्या यह आशंका सत्यापित तथ्यों पर आधारित थी या अनुमानों पर। पीठ ने कहा, "हम यह समझना चाहते हैं कि आपकी आशंका काल्पनिक है या वास्तविक चिंता।" पीठ ने यह भी पूछा कि जिन लोगों ने फॉर्म जमा किए थे, वे पहले से ही ड्राफ्ट रोल में थे।
सिब्बल ने तब दावा किया था कि 2025 की सूची में 7.9 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें से 4.9 करोड़ मतदाता 2003 की सूची में थे तथा 22 लाख मतदाता मृत दर्ज हैं।
याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग ने मृत्यु या निवास बदलने के कारण बाहर किए गए मतदाताओं की सूची का खुलासा न तो अदालती दस्तावेज़ों में और न ही अपनी वेबसाइट पर किया है। भूषण ने कहा, "उनका कहना है कि उन्होंने बूथ-स्तरीय एजेंटों को कुछ जानकारी दी है, लेकिन दावा करते हैं कि वे इसे किसी और को देने के लिए बाध्य नहीं हैं।"
बेंच ने कहा कि अगर कोई मतदाता आधार और राशन कार्ड के साथ फॉर्म जमा करता है, तो चुनाव आयोग को उसकी जानकारी सत्यापित करनी होगी। पीठ ने यह भी स्पष्ट करने की मांग की कि क्या गुम हुए दस्तावेज़ों की सूचना पाने के हकदार लोगों को वास्तव में सूचित किया गया था।