अख़बार विज्ञापनों से भरे हुए हैं, हालात यह हैं कि आपको ख़बर ढूंढने के लिए ख़ासी मशक्कत करनी पड़ेगी। लगता है कि इस बात की होड़ लगी है कि कौन कितना ज़्यादा विज्ञापन दे सकता है। विज्ञापन का यह पैसा कहीं खैरात से नहीं आता, यह जनता की गाढ़ी कमाई का ही पैसा है जिसके दम पर सरकारें धड़ाधड़ विज्ञापन दे रही हैं। इस मामले में कोई भी पार्टी किसी से कम नहीं है।