न्यायपालिका और देश के सीजेआई के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक बयान देने वाले बीजेपी सांसद को अपनी ही पार्टी से झटका लगा है। पार्टी ने न सिर्फ़ उनके बयान से खुद को अलग कर लिया है, बल्कि कहा है कि वह अपने नेताओं को इस तरह के बयान नहीं देने के लिए निर्देश देगी।

दरअसल, बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने एक विवादास्पद बयान देकर देश की सियासत में हलचल मचा दी है। इस पर तीखी प्रतिक्रियाएँ आईं। जब बीजेपी की चौतरफ़ा आलोचना हुई तो दुबे के बयान के घंटों बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने देर रात को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक बयान जारी कर पार्टी को इस विवाद से अलग कर लिया। नड्डा ने साफ़ किया कि निशिकांत दुबे और एक अन्य सांसद दिनेश शर्मा के न्यायपालिका और सीजेआई पर दिए गए बयान व्यक्तिगत हैं और बीजेपी का इनसे कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा, 'बीजेपी ऐसे बयानों से न तो सहमत है और न ही इनका समर्थन करती है। पार्टी इन बयानों को पूरी तरह खारिज करती है।' नड्डा ने यह भी बताया कि उन्होंने दोनों सांसदों और अन्य नेताओं को निर्देश दिए हैं कि भविष्य में इस तरह के बयान न दिए जाएँ।

इससे पहले निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना पर निशाना साधते हुए कहा था कि देश में हो रहे 'गृह युद्धों' के लिए सीजेआई जिम्मेदार हैं। यह बयान वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के संदर्भ में आया है, जिसमें कोर्ट ने विधेयक के कुछ प्रावधानों पर सवाल उठाए थे। दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर 'न्यायिक अतिक्रमण' का आरोप लगाया और कहा कि यदि कोर्ट ही क़ानून बनाएगा तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए। उनके इस बयान ने न केवल विपक्ष को हमलावर बनाया, बल्कि उनकी अपनी पार्टी बीजेपी को भी असहज स्थिति में डाल दिया। 

कुछ घंटे बाद नड्डा ने अपने बयान में न्यायपालिका के प्रति बीजेपी के सम्मान पर जोर दिया और कहा कि पार्टी हमेशा से न्यायपालिका को लोकतंत्र का अभिन्न अंग और संविधान के संरक्षण का मज़बूत स्तंभ मानती रही है। यह त्वरित प्रतिक्रिया बीजेपी की ओर से संभावित राजनीतिक नुक़सान को कम करने और न्यायपालिका के साथ टकराव को ख़त्म करने की कोशिश के रूप में देखी जा रही है। 

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दुबे के बयान ने विपक्ष को बीजेपी पर हमला करने का एक बड़ा मौक़ा दे दिया। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, और आम आदमी पार्टी जैसे दलों ने इसे न्यायपालिका का अपमान करार दिया। कांग्रेस नेता मणिकम टैगोर ने इसे निंदनीय बताया और कहा कि दुबे जैसे सांसद संस्थानों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा, 'आप लोग ट्यूबलाइट हैं,' जिसका मतलब था कि बीजेपी को अपने सांसदों के बयानों का असर देर से समझ आता है।

विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि दुबे का बयान बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की मंजूरी के बिना नहीं आ सकता।

कांग्रेस के बी.वी. श्रीनिवास ने सवाल उठाया कि क्या दुबे ने यह बयान अपने 'मालिकों' के इशारे पर दिया था।

इस तरह के बयानों ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच तनाव की आशंका को और हवा दी, खासकर तब जब हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को 'न्यायिक अतिक्रमण' करार दिया था। 


दुबे का बयान वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 के इर्द-गिर्द केंद्रित था, जिसे संसद ने हाल ही में पारित किया था। सुप्रीम कोर्ट में इस विधेयक की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है, और कोर्ट ने सरकार से इसके कुछ प्रावधानों को लागू न करने का आश्वासन मांगा था। दुबे ने कोर्ट के इस रुख को अराजकता की ओर ले जाने वाला बताया और कहा कि यह धार्मिक युद्धों को भड़काने का काम कर रहा है। उनके इस बयान को बीजेपी के कुछ नेताओं ने भी असहज माना, क्योंकि यह पार्टी की उस छवि के ख़िलाफ़ जाता है जो न्यायपालिका के साथ सहयोग और सम्मान की बात करती है।

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निशिकांत दुबे का बयान और नड्डा की त्वरित प्रतिक्रिया कई अहम पहलुओं को उजागर करती है। यह बीजेपी के भीतर अनुशासन और संदेश प्रबंधन की चुनौती को दिखाता है। दुबे जैसे सांसद अक्सर ऐसे बयान देते हैं जो पार्टी की आधिकारिक लाइन से मेल नहीं खाते। इससे पार्टी को बार-बार सफ़ाई देनी पड़ती है, जो उसकी छवि को प्रभावित कर सकती है। 

यह बयान कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन के सवाल को फिर से सामने लाता है।

हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के कुछ फ़ैसलों को लेकर सरकार और कोर्ट के बीच तनाव की ख़बरें सामने आई हैं। दुबे का बयान इस तनाव को और बढ़ाने वाला माना जा सकता है, खासकर तब जब उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति भी समान विचार व्यक्त कर चुके हैं।

बीजेपी की त्वरित प्रतिक्रिया से पता चलता है कि पार्टी इस मुद्दे को बढ़ने से रोकना चाहती है। नड्डा का बयान न केवल दुबे और शर्मा के बयानों को खारिज करता है, बल्कि यह भी संदेश देने की कोशिश करता है कि बीजेपी न्यायपालिका के साथ किसी तरह के टकराव में नहीं है। यह रणनीति खासकर तब महत्वपूर्ण है जब देश में वक़्फ़ विधेयक जैसे संवेदनशील मुद्दों पर पहले से ही धार्मिक और सामाजिक तनाव हैं। 

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निशिकांत दुबे का बयान और बीजेपी की प्रतिक्रिया देश की राजनीति में विचारधारा, अनुशासन, और संस्थागत सम्मान के बीच जटिल संतुलन को दिखाती है। जहां एक ओर बीजेपी अपने सांसदों को व्यक्तिगत बयानों की स्वतंत्रता देती है, वहीं उसे यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि ये बयान पार्टी की व्यापक छवि और नीतियों को नुक़सान न पहुँचाएँ। नड्डा का हस्तक्षेप इस दिशा में एक क़दम है, लेकिन यह देखना बाक़ी है कि क्या यह विवाद पूरी तरह थमेगा या विपक्ष इसे और भुनाने की कोशिश करेगा। साथ ही, यह घटना कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच रिश्तों पर एक गंभीर चर्चा की ज़रूरत को भी दिखाती है, ताकि लोकतंत्र के ये दोनों स्तंभ एक-दूसरे का सम्मान करते हुए काम कर सकें।