सीमा पर जवानों के साथ दिवाली मनाने वाले प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में उन्हीं जवानों को भोजन और कपड़ा नहीं मिलने की क्या कल्पना भी की जा सकती है? सेना के बलिदान और 'राष्ट्रवाद' जैसे मुद्दों के दम पर सत्ता में आई पार्टी से क्या ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि देश की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभाल रही सेना के साथ ऐसा व्यवहार हो? वह भी उन जवानों के साथ जो सियाचिन और लद्दाख जैसी दुर्गम जगह पर तैनात हों। ऐसी जगह जहाँ ज़िंदगी बचा पाना ही अपने आप में एक बड़ी चुनौती हो। ऐसा क्यों हो रहा है? सरकार की ही एजेंसी कंप्रट्रोलर ऑडिटर जनरल यानी सीएजी ने इस पर रिपोर्ट दी है।