छत्तीसगढ़ के कुछ आदिवासी गाँवों में पादरियों और 'धर्मांतरित ईसाइयों' के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले होर्डिंग्स को लेकर विवाद तेज हो गया है। केरल स्थित सिरो-मालाबार चर्च ने इस क़दम की कड़ी निंदा की है और इसे 'दूसरे दर्जे के नागरिकों' के रूप में चिह्नित करने वाला बताया। पूर्वी कैथोलिक चर्चों में सबसे बड़े संगठनों में से एक सिरो-मालाबार चर्च ने कहा कि यह 'विभाजन के बाद देश की सबसे विभाजनकारी सीमा' है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए चर्च ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की मांग की है, जबकि राज्य सरकार इसे आदिवासी संस्कृति की रक्षा का कदम बता रही है।

यह विवाद न केवल धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल उठा रहा है, बल्कि हिंदुत्व की बढ़ती आक्रामकता और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के बीच तनाव को भी सामने ला रहा है। जुलाई में केरल की दो ननों की गिरफ्तारी ने भी इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर हवा दी थी, जो कथित रूप से धर्मांतरण और मानव तस्करी के आरोपों पर आधारित थी। कहा जा रहा है कि ऐसे क़दम सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं, जो आदिवासी क्षेत्रों में पहले से मौजूद तनाव को और गहरा सकता है।
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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फ़ैसला

बहरहाल, केरल की सिरो-मालाबार चर्च का यह बयान तब आया है जब हाल ही में साइनबोर्ड पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का फ़ैसला आया है। 28 अक्टूबर 2025 को चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभू दत्ता गुरु की छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने दो याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें कांकेर जिले के आठ गांवों में लगे होर्डिंग्स को हटाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि ये होर्डिंग्स ग्राम सभाओं द्वारा लगाए गए लगते हैं और ये 'आदिवासी जनजातियों के हितों तथा स्थानीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए सचेत उपाय' हैं।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार अतिरिक्त एडवोकेट जनरल वाई.एस. ठाकुर ने कोर्ट में तर्क दिया कि होर्डिंग्स का उद्देश्य 'अन्य गांवों से आने वाले ईसाई पादरियों को अवैध धर्मांतरण के लिए आदिवासियों को लुभाने या धोखा देने से रोकना' है। उन्होंने कहा कि ये बोर्ड सीमित उद्देश्य के लिए हैं, जो आदिवासियों की संस्कृति को नुकसान पहुंचाने वाले अवैध कृत्यों को रोकते हैं। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा, 'लुभावने या धोखाधड़ी से जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए होर्डिंग्स लगाना असंवैधानिक नहीं है।'

याचिकाकर्ता कांकेर के दिग्बाल तांडी और बस्तर के नरेंद्र भवानी ने याचिका में कहा कि पंचायत विभाग का सर्कुलर 'हमारी परंपरा हमारी विरासत' शीर्षक से ग्राम सभाओं को निर्देश देता है, जो वास्तव में ईसाई पादरियों और धर्मांतरितों को रोकने का बहाना है।

सिरो-मालाबार चर्च की कड़ी प्रतिक्रिया

केरल के सिरो-मालाबार चर्च ने सोमवार को बयान जारी किया है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार चर्च ने बयान में कहा है, 'छत्तीसगढ़ के कुछ गांवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने वाले साइनबोर्ड लगाए गए हैं। इस कदम को कोर्ट ने मंजूरी दे दी। यह साइनबोर्ड एक समूह को दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में चिह्नित करता है, जो विभाजन के बाद देश की सबसे विभाजनकारी सीमा है।'

रिपोर्ट के अनुसार चर्च ने कहा, 'धर्मनिरपेक्ष भारत में हिंदुत्व की ताक़तों ने धार्मिक भेदभाव और आक्रामक असहिष्णुता का एक और प्रयोग सफलतापूर्वक शुरू कर दिया है। छत्तीसगढ़ के कुछ गाँवों में पादरियों और धर्मांतरित ईसाइयों पर प्रतिबंध लगाकर संस्थागत सांप्रदायिकता की नयी रथयात्रा शुरू हो गयी है।' 
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चर्च ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की अपील की। इसने कहा, "एक ऐसे देश में जहां लिंच मॉब, दलितों-आदिवासियों के उत्पीड़क और 'घर वापसी' जबरन धर्मांतरण करने वाले प्रतिबंधित नहीं हैं, इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जानी चाहिए।"

चर्च ने हिंदुत्व के ख़िलाफ़ प्रतिरोध को 'संविधान के साथ गठबंधन' में लड़ने की सलाह दी, न कि किसी धार्मिक कट्टरता के साथ। बयान में कहा गया, "इस हिंदुत्व आक्रमण के खिलाफ प्रतिरोध को अन्य सांप्रदायिकता या अतिवाद से जोड़कर न लड़ा जाए, न ही 'पवित्र मौन' बनाए रखा जाए। फासीवाद-विरोधी शब्दों का दुरुपयोग करने वाले सांप्रदायिक समर्थकों के प्रलोभनों को न सुना जाए। भारत को धर्मनिरपेक्ष रखने के लिए लड़ाई संविधान के हिसाब से लड़ी जानी चाहिए, जो नागरिक अधिकारों का मैग्ना कार्टा है।"

यह सिरो-मालाबार चर्च वही है जो केरल में बीजेपी की ईसाई आउटरीच मिशन में शीर्ष पर है। चर्च ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया है। चर्च के प्रवक्ता ने कहा कि यह कदम अल्पसंख्यकों के बीच भय पैदा कर रहा है और सामाजिक सद्भाव को नुकसान पहुंचा रहा है।
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जुलाई का ननों का मामला

जुलाई 2025 में केरल की दो ननों प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस की गिरफ्तारी पर भी विवाद हुआ था। 25 जुलाई को दुर्ग रेलवे स्टेशन पर उन्हें और नारायणपुर के सुकमान मंडावी को गिरफ्तार किया गया था। बजरंग दल के सदस्य रवि निगम की शिकायत पर एफआईआर दर्ज हुई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि वे नारायणपुर की तीन आदिवासी लड़कियों को नौकरी के बहाने धर्मांतरण और मानव तस्करी के लिए आगरा ले जा रही थीं। लड़कियों के परिवारों ने आरोपों से इनकार किया। उन्होंने कहा कि लड़कियां स्वेच्छा से नौकरी के लिए जा रही थीं, और बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने उन्हें धमकाया। बाद में उन्हें जमानत दी गई थी। लेकिन इस पूरे मामले को लेकर काफी विवाद हुआ था।