सरकारी बैंकों ने पिछले साढ़े पांच साल में कुल 6 लाख 15 हज़ार 647 करोड़ रुपये के खराब कर्ज़ को अपने खातों से राइट-ऑफ कर दिया है। यह जानकारी लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लिखित जवाब में दी। इस पर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि आम लोग और किसान एक किश्त न चुका पाएँ तो संपत्ति कुर्क कर ली जाती है, लेकिन सरकार अमीरों के लाखों करोड़ रुपये माफ़ कर रही है।

सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, 'पिछले 5 सालों में धन्ना सेठों के 6,150,000,000,000 रुपए माफ़ हुए। आप अपने लोन की एक किश्त ना चुका पायें तो घर मुश्तण्डे भेजे जायेंगे, क्रेडिट हिस्ट्री बर्बाद हो जाएगी, संपत्ति की कुर्की होगी। किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं। पर अमीरों के 6.15 लाख करोड़ रुपए माफ!'
सरकार का कहना है कि यह क़दम उधारकर्ताओं की देनदारियों को माफ करने के बजाय बैंकों के बैलेंस शीट को साफ-सुथरा करने के मक़सद से उठाया गया है। संसद को सोमवार को इसकी जानकारी दी गई। यह जानकारी वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने लोकसभा में लिखित उत्तर में दी।

राइट ऑफ़ का क्या मतलब?

जब बैंक को लगता है कि लोन अब वसूल नहीं होगा तो वह उसे अपनी बैलेंस शीट से राइट-ऑफ कर देता है, यानी उसे खराब कर्ज़ मानकर हटा देता है। इसका मतलब ये नहीं कि कर्ज़ माफ हो गया। बैंक अभी भी कानूनी रूप से वसूली की कोशिश कर सकता है, लेकिन अपने खातों में वो कर्ज़ अब संपत्ति नहीं दिखाया जाता। साफ़-साफ़ कहें तो बैंक भी यह मान लेता है कि उसको ये पैसे मिलने की संभावना न के बराबर है।

रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया यानी आरबीआई के आँकड़ों के अनुसार पीएसयू बैंकों ने पिछले पाँच वित्तीय वर्षों और वर्तमान वित्तीय वर्ष 30 सितंबर 2025 तक कुल 6,15,647 करोड़ रुपये के ऋण राइट ऑफ किए हैं।

यह आँकड़ा खराब कर्ज यानी नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स या एनपीए की सफाई का हिस्सा है, जो बैंकों की वित्तीय स्थिति को मजबूत दिखाने में सहायक सिद्ध हुआ है।

चौधरी ने साफ़ किया कि वित्त वर्ष 2022-23 से सरकार ने पीएसयू बैंकों में कोई पूंजी निवेश नहीं किया है, क्योंकि बैंक अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत कर चुके हैं, लाभदायक हो गए हैं और पूंजी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बाजार वित्तपोषण तथा आंतरिक जमा आय पर निर्भर हैं। 1 अप्रैल 2022 से 30 सितंबर 2025 तक पीएसयू बैंकों ने इक्विटी और बॉन्ड के माध्यम से बाजार से 1.79 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं।
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राइट-ऑफ का असर

मंत्री ने राइट-ऑफ की प्रक्रिया के बारे में कहा कि बैंक आरबीआई दिशानिर्देशों और बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों के अनुसार चार वर्ष पूरे होने के बाद पूर्ण प्रावधान वाले एनपीए को राइट ऑफ करते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा राइट-ऑफ उधारकर्ताओं की वापसी की देनदारियों को माफ करने का परिणाम नहीं होता। राइट ऑफ लोन की वसूली विभिन्न तंत्रों के माध्यम से जारी रहती है, जिनमें सिविल कोर्ट, डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल, इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के तहत नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल यानी एनसीएलटी में मामले शामिल हैं।

चौधरी ने जोर दिया कि प्रावधान पहले से ही किए जा चुके होने के कारण राइट-ऑफ में कोई नकदी बाहर नहीं जाती है और इससे बैंकों की तरलता पर कोई असर नहीं पड़ता। बैंक नियमित बैलेंस शीट सफाई के हिस्से के रूप में राइट-ऑफ का मूल्यांकन करते हैं, जिससे कर लाभ प्राप्त होता है, पूंजी का अनुकूलन होता है, उधार क्षमता बढ़ती है और निवेशक भावना मजबूत होती है।

लोकसभा में अन्य प्रश्नों के उत्तर में मंत्री ने कहा कि भारत में निर्यात वित्तपोषण का प्राथमिक स्रोत बैंक और वित्तीय संस्थाएँ बनी हुई हैं। पिछले पांच वित्तीय वर्षों में पीएसयू बैंकों, स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया और एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट बैंक द्वारा कुल 21.71 लाख करोड़ रुपये का निर्यात ऋण दिया गया। यह आँकड़ा भारत के निर्यात क्षेत्र को मजबूत करने में बैंकों की अहम भूमिका को दिखाता है।
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धोखाधड़ी मामलों में वृद्धि

चौधरी ने एक अन्य उत्तर में बताया कि सितंबर 2025 तक पिछले साढ़े चार वर्षों में 5 लाख 83 हज़ार 291 धोखाधड़ी के मामले दर्ज किए गए, जिनकी राशि 3,588.22 करोड़ रुपये थी। इनमें से 238.83 करोड़ रुपये की वसूली हो चुकी है। उन्होंने कहा कि देश में डिजिटल भुगतान लेनदेन की बढ़ती संख्या के साथ साइबर और डिजिटल भुगतान धोखाधड़ी की घटनाएँ भी बढ़ी हैं। सरकार और आरबीआई इनके ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठा रहे हैं। हालाँकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि यह सख़्त क़दम किस तरह का है और इसका लाभ किसी को मिलता भी है या सिर्फ़ दावे करने के लिए है।

हालाँकि, सरकार की ओर से कहा जा रहा है कि 2017-18 के रिकॉर्ड एनपीए स्तर से उबरते हुए बैंकों ने अपना लाभ फिर से बहाल किया है और बाजार से पूंजी जुटाने की क्षमता विकसित की है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया उधार क्षमता बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को गति देने में सहायक होगी। हालाँकि, वसूली प्रक्रिया को और तेज करने की ज़रूरत पर जोर दिया जा रहा है। लोकसभा में यह जानकारी विपक्ष के सवालों के बीच आई है, जो बैंकिंग क्षेत्र की पारदर्शिता और जवाबदेही पर केंद्रित थे।