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विशेषज्ञ सुप्रीम कोर्ट पैनल से बोले- पेगासस, सरकारी भूमिका के संकेत मौजूद: रिपोर्ट

ऐसे समय में जब न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि इजराइल से भारत के रक्षा सौदे में पेगासस भी शामिल था, अब भारत में भी ऐसी रिपोर्ट आ रही है कि निशाना बनाए गए मोबाइल फ़ोन में पेगासस के डिजिटल ट्रेल यानी चिह्न मिले हैं। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पेगासस मामले की जाँच के लिए बनाए गए सुप्रीम कोर्ट पैनल को विशेषज्ञों ने ही यह बताया है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम दो साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति को बताया है कि लोगों की अनधिकृत निगरानी के लिए पेगासस स्पाईवेयर का उपयोग करने में राज्य, इसकी खुफिया और कानून प्रवर्तन एजेंसियों की भागीदारी की ओर इशारा करने वाले मज़बूत संकेतक मौजूद हैं।

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संसद से सड़क तक बवाल के बाद पेगासस स्पाईवेयर से जासूसी के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल 27 अक्टूबर को जांच के लिए 3 सदस्यों की एक कमेटी बनाई थी। कमेटी में डॉ. नवीन कुमार चौधरी, डॉ. प्रभाहरन पी. और डॉक्टर अश्निन अनिल गुमस्ते को शामिल किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट पैनल ने उन लोगों से सूचना मांगी थी जिनको अंदेशा था कि उनके मोबाइल डिवाइस में पेगासस मैलवेयर के ज़रिए जासूसी की गई। उसमें कहा गया था कि ऐसे लोग 7 जनवरी की दोपहर तक अपना मोबाइल और सारी जानकारी पैनल के पास जमा करा दें।

इसी संदर्भ में कुछ याचिकाकर्ताओं ने खुद से नियुक्त इन विशेषज्ञों से अपने मोबाइल फोन का फोरेंसिक विश्लेषण कराया और इसकी पूरी जानकारी और मोबाइल फ़ोन सुप्रीम कोर्ट पैनल को दिया।

रिपोर्ट के अनुसार इन साइबर विशेषज्ञों ने कहा है कि फोन में 'मैलवेयर की पर्याप्त तैनाती' दिखाते हैं जो सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध पेगासस के डिजिटल फिंगरप्रिंट के समान हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि विशेषज्ञों में से एक नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक, डीपस्ट्रैट के रणनीतिक सलाहकार आनंद वेंकटनारायणन हैं। वेंकटनारायणन के अनुसार, पेगासस के उपयोग के और सबूत के तौर पर दो पत्रकारों के फोन का फोरेंसिक विश्लेषण है जिसमें स्पाईवेयर से जुड़े डिजिटल फिंगरप्रिंट का पता चला।

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एक दूसरे सुरक्षा शोधकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट पैनल को बताया कि पेगासस के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि इसे यहां तैनात करने के लिए एक स्थानीय "सिस्टम इंटीग्रेटर" आवश्यक था। यानी निगरानी करने के लिए भारत में एक प्रणाली स्थापित की गई होगी।

बता दें कि पेगासस पर फिर से हंगामा मचा है। यह हंगामा तब मचा जब अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में खुलासा किया कि भारत सरकार ने 2017 में इजरायल के साथ हुई डिफेंस डील के तहत इस जासूसी सॉफ्टवेयर को खरीदा था। यह डिफेंस डील दो अरब डॉलर की थी। एक साल तक लंबी पड़ताल करने के बाद अखबार ने इस खबर को प्रकाशित किया है।

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जुलाई 2017 में जब इजरायल पहुंचे तब यह डिफेंस डील हुई थी और पेगासस स्पाइवेयर और मिसाइल सिस्टम इसके अहम बिंदु थे।

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क़मर वहीद नक़वी
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