2015 के दादरी लिंचिंग कांड में मुहम्मद अखलाक के परिजन गहरे सदमे में हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत में आवेदन दायर कर 18 आरोपियों के खिलाफ सभी आपराधिक आरोपों को वापस लेने की मांग की है। यूपी सरकार ने इसकी वजह के लिए 'सामाजिक सद्भाव' को बढ़ावा देने की आड़ ली है। परिवार ने इसे 'न्याय का अपमान' बताते हुए कहा है कि अगर मुकदमा वापस लिया गया तो वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। ट्रायल कोर्ट में इस आवेदन पर 12 दिसंबर को सुनवाई होगी।
यह घटना 28 सितंबर 2015 की है, जब दिल्ली से सिर्फ 49 किलोमीटर दूर बिसाड़ा गांव (दादरी) में गाय की हत्या और गोमांस रखने की अफवाह पर एक उन्मादी उग्र भीड़ ने अखलाक (52 वर्ष) को उनके घर से घसीटकर लाठियों, रॉड और ईंटों से पीट-पीटकर हत्या कर दी। उनके छोटे बेटे दानिश को गंभीर चोटें आईं, जिन्हें दो ब्रेन सर्जरी करानी पड़ीं और आज भी सेहत की समस्याओं से जूझ रहे हैं। तीन महीने बाद चार्जशीट दाखिल हुई, लेकिन आरोप 2021 में फ्रेम हुए। मूल रूप से 19 आरोपी थे (जिनमें एक नाबालिग और स्थानीय नेता का बेटा शामिल)। एक की 2016 में मौत हो चुकी है, बाकी 18 जमानत पर बाहर हैं। 25 गवाहों में से 2022 से अब तक पांच ने बयान दिए हैं, जिनमें अखलाक की बेटी शाइस्ता शामिल हैं; दानिश का बयान अगला होना है।

सरकार के कोर्ट में किए गए आवेदन में दावा किया है कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास हैं। अखलाक की पत्नी इकरामन ने 10 नाम बताए, शाइस्ता ने 16, जबकि दानिश ने 19। साथ ही, जब्त हथियारों में तलवार या पिस्तौल नहीं, सिर्फ लाठियां, रॉड और ईंटें मिलीं। आवेदन में गोमांस की बरामदगी और परिवार के खिलाफ लंबित गौ-हत्या का केस भी जिक्र है । सरकारी पक्ष के वकील ने इसे 'सामाजिक सद्भाव' के लिए जरूरी बताया है। 

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परिवार गहरे सदमे में, इंसाफ कहां हैः अखलाक की पत्नी

इस घटना से अखलाक का परिवार सदमे में है। अखलाक के परिवार ने यूपी सरकार के इस कदम की कड़ी निंदा की है। अखलाक की पत्नी इकरामन बेगम, जो घटना के बाद से बिसाड़ा गांव नहीं लौटीं और आगरा में बड़े बेटे के साथ छोटे फ्लैट में रह रही हैं, ने कहा, "मैंने सब कुछ खो दिया, मेरा पति, मेरा घर, मेरे लोग। दुनिया ने उन्हें मरते देखा, हत्यारों को देखा। तो इंसाफ कहां है? दुख को कोई आराम नहीं मिलता।" उन्होंने बताया, "हम अदालत की भाषा नहीं जानते, न ही जानते थे कि क्या उम्मीद करें। लेकिन हर सुनवाई पर इंसाफ का इंतजार करते रहे। यही हमारा एकमात्र कर्तव्य लगता है। सब कुछ वहीं खत्म हो गया। वापस जाने का सवाल ही नहीं।"

अखलाक के परिवार का कहना है कि  "हम लगातार धमकियों के बीच जी रहे हैं। बिना सुरक्षा के बाहर नहीं निकल सकते। हमें पुलिस सुरक्षा दी जानी थी, लेकिन कई बार बयान दर्ज ही नहीं करा सके। कुछ लोग जानबूझकर हमारे बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश करते थे।" उन्होंने कहा, "लाठी-डंडों से लैस भीड़ ने घेर लिया था, ऐसे में कितने लोग पीट रहे थे, यह जानना असंभव था। दानिश ने गवाहों से बात करके नाम जोड़े, यह स्वाभाविक था।" अखलाक की बुजुर्ग मां असगरी बेगम और बेटी शाइस्ता ने कहा कि सुरक्षा की कमी के कारण वे अदालत में कई बार गवाही ही नहीं दे सके। मामले को कमजोर करने के लिए जानबूझकर बाधाएं पैदा की गईं। एक दशक बाद भी न्याय की आस बाकी थी, लेकिन अब परिवार को डर है कि यह अंतिम झटका साबित होगा।



परिवार के वकील यूसुफ सैफी ने इसे 'कानूनी रूप से गलत' करार दिया। उन्होंने कहा, "यह भीड़ हिंसा का मामला है। गवाह बयान दे चुके हैं। यहां सामान्य टेम्पलेट लागू नहीं हो सकते। अगर केस वापसी की इजाजत मिली तो 10 साल की अदालती लड़ाई एक आदेश से मिट जाएगी।" सैफी ने चेतावनी दी कि अगर ट्रायल कोर्ट ने मंजूरी दी तो वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करेंगे। परिवार को अभी सर्टिफाइड कॉपी नहीं मिली, लेकिन वकील के जरिए खबर लगी है।

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दादरी लिंचिंग मामला गौ-रक्षा के नाम पर हिंसा का प्रतीक बन चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी हस्तक्षेप न्याय प्रक्रिया पर सवाल खड़े करता है। दादरी की ट्रायल कोर्ट में 12 दिसंबर को होने वाली सुनवाई मामले की दिशा तय करेगी। दशक भर की जद्दोजहद के बाद परिवार को इंसाफ की आस बाकी है, लेकिन अब हाईकोर्ट की राह नज़र आ रही है।