Babri Masjid DY Chandrachud History: पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक इंटरव्यू में बाबरी मस्जिद को लेकर कई बातें कहीं। लेकिन अयोध्या पर उनके फैसले और इन बातों में विरोधाभास है। इतिहासकार डॉ रुचिका शर्मा ने तथ्यों के हवाले से चंद्रचूड़ की बातों को खारिज किया है।
पूर्व सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़
भारत के पूर्व चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का कहना है कि मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि बाबरी मस्जिद को गिराना एक अपराध था। ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं कि बाबरी मस्जिद को मंदिर की जगह बनाया गया था सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच ने यह फैसला सुनाया था, उस बेंच में डीवाई चंद्रचूड़ भी थे, जबकि उस समय चीफ जस्टिस रंजन गोगोई थे, जो अब बीजेपी की मदद से सांसद बन चुके हैं।
अयोध्या में राम मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवादों पर अपने विचार साझा करते हुए चंद्रचूड़ ने कहा कि इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले साक्ष्यों पर आधारित थे, न कि केवल विश्वास पर। न्यूजलॉन्ड्री के श्रीनिवासन जैन को दिए विशेष इंटरव्यू में उन्होंने इन ऐतिहासिक फैसलों के पीछे की प्रक्रिया और अपने व्यक्तिगत विश्वासों का जिक्र किया। जिसमें उन्होंने "भगवान से मार्गदर्शन" की बात भी कही। उनके बयानों ने न्यायिक निष्पक्षता और धार्मिक कहानियों के बीच एक जटिल बहस को जन्म दे दिया है।
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराई गई थी
अयोध्या फैसले पर चंद्रचूड़ की राय
चंद्रचूड़ ने अयोध्या मामले में 2019 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरी तरह साक्ष्य-आधारित बताया। उन्होंने कहा कि बाबरी मस्जिद के निर्माण को "मूल अपवित्रता का कार्य" माना गया, जो हिंदू पक्ष के दावों के अनुरूप है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया था कि पुरातात्विक साक्ष्य मस्जिद के नीचे किसी मंदिर को तोड़े जाने की पुष्टि नहीं करते। फिर भी, चंद्रचूड़ ने 1949 की घटना का बचाव किया, जब बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखी गई थीं, और इसे हिंदू पक्ष के खिलाफ नहीं माना। उनके इस बयान ने सवाल उठाए हैं कि क्या यह नज़रिया साक्ष्यों से अधिक विश्वास पर आधारित था।
चंद्रचूड़ का भगवान से मार्गदर्शन मिलने का दावा
इंट में चंद्रचूड़ ने अपने व्यक्तिगत विश्वासों का जिक्र करते हुए कहा कि उन्हें भगवान से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। हालांकि, उन्होंने इस पर विस्तार से नहीं बताया। इस टिप्पणी ने उनके फैसलों की निष्पक्षता पर बहस छेड़ दी है, क्योंकि धार्मिक विश्वासों का उल्लेख संवेदनशील मामलों में पक्षपात के आरोपों को बढ़ावा दे सकता है।
ज्ञानवापी मस्जिद और पूजा स्थल अधिनियम
ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर चंद्रचूड़ ने मस्जिद के सर्वे की अनुमति को उचित ठहराया। उन्होंने दावा किया कि मस्जिद के तहखाने में हिंदुओं द्वारा सदियों से पूजा की जाती रही है, और इस पर विवाद नहीं था। हालांकि, मुस्लिम पक्ष ने इस दावे का लगातार विरोध किया है। 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के बावजूद, जो धार्मिक स्थलों की स्थिति को यथावत रखने की बात कहता है, चंद्रचूड़ ने कहा कि ज्ञानवापी की धार्मिक प्रकृति का सवाल "बंद" नहीं है यानी उसके मंदिर होने का सवाल खुला हुआ है। चंद्रचूड़ के इस बयान ने पूजा अधिनियम के उल्लंघन और न्यायिक तटस्थता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जजों से उम्मीद की जाती है कि धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक मुद्दे पर उनकी राय तटस्थ होगी और वे तथ्यों के हिसाब से फैसला लेंगे। लेकिन चंद्रचूड़ ने बाबरी मस्जिद और ज्ञानवापी मस्जिद पर अपने विचार सार्वजनिक कर दिए हैं।
कितने निष्पक्ष थे चंद्रचूड़
चंद्रचूड़ के कार्यकाल (2022-2024) में अयोध्या फैसला और ज्ञानवापी सर्वे जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। उनके बयान, जैसे बाबरी मस्जिद को अपवित्रता का कार्य कहना और ज्ञानवापी में हिंदू पूजा के दावे, धार्मिक कहानियों की ओर इशारा करते हैं। आलोचकों का कहना है कि ये बयान साक्ष्यों से अधिक विश्वास पर आधारित प्रतीत होते हैं, जो न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं। यहां यह भी बताना ज़रूरी है कि जब चंद्रचूड़ की बेंच ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का आदेश दिया तो उसके बाद पूरे देश में तमाम अदालतें धड़ाधड़ धार्मिक स्थलों के सर्वे का आदेश पारित करने लगीं। जिसमें इसी वजह से संभल में दंगा हुआ, जिसमें चार मुस्लिमों की हत्या कर दी गई। मुस्लिमों के खिलाफ केस दर्ज किए गए। सर्वे करने गई कोर्ट की टीम के साथ धार्मिक नारे लगाते हुए भीड़ थी जो संभल की शाही जामा मस्जिद में घुस गई। उसने नमाज़ियों को मारा-पीटा। उसके बाद वहां साम्प्रदायिक दंगा शुरू हो गया।
चंद्रचूड़ की साम्प्रदायिक मानसिकता का पर्दाफाशः प्रशांत भूषण
सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने कहा- जस्टिस चंद्रचूड़ ने हाल ही में कई इंटरव्यू दिए हैं। @SreenivasanJain के साथ इस इंटरव्यू में
उन्होंने अपनी सांप्रदायिक मानसिकता का पर्दाफ़ाश किया है। उनका कहना है कि 500 साल पहले मंदिर का विध्वंस (जिसका कोई सबूत नहीं था) अब मस्जिद तोड़ने वालों को ज़मीन देने का एक अच्छा कारण है!
कोई आश्चर्य नहीं कि उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वेक्षण जारी रहने दिया, जबकि अयोध्या मामले में उनके फ़ैसले में कहा गया था कि उपासना स्थल अधिनियम भविष्य में ऐसे विवादों को ख़त्म कर देगा! निंदनीय!इतिहासकार का दावा
डॉ रुचिका शर्मा ने बाबरी मस्जिद स्थल खुदाई से जुड़े दो इतिहासकारों जया मेनन और प्रोफेसर सुप्रिया वर्मा के हवाले से कहा कि चंद्रचूड़ का दावा यह गलत है! अदालत ने बाबरी खुदाई के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए थे। प्रोफ़ेसर वर्मा और मेनन ने अदालत में 14 शिकायतें दर्ज कराईं, जिनमें कहा गया कि एएसआई ने खुदाई करते समय जानबूझकर ऐसे खंभे बनाए ताकि ऐसा लगे कि नीचे कोई मंदिर था, जबकि असल में नीचे एक 13वीं सदी की मस्जिद मिली। बाबरी का निर्माण एक पुरानी मस्जिद पर हुआ था, मंदिर पर नहीं! डॉ रुचिका शर्मा ने मेनन और वर्मा का एक रिसर्च लेख का लिंक भी एक्स पर दिया है। जया मेनन और प्रोफेसर सुप्रिया वर्मा का वो रिसर्च लेख इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली में प्रकाशित हुआ था।
बाबरी मस्जिद खुदाई की गवाह थीं दोनों लेखिकाएं
उन्होंने ईपीडब्ल्यू में उस लेख की जो प्रस्तावना लिखी था, उसमें कहा था- 2003 में अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किए गए उत्खनन के एक बड़े हिस्से के गवाह के रूप में, लेखकों (जया मेनन और प्रो वर्मा) ने उनके द्वारा देखी गई कई अनियमितताओं और पुरानी विधियों का विवरण दिया है। वे एएसआई द्वारा अपनाई गई कुछ प्रक्रियाओं के बारे में दर्ज की गई आपत्तियों के साथ-साथ उत्खनन पर इसकी अंतिम रिपोर्ट पर आपत्तियों का भी उल्लेख करती हैं। कई मायनों में, यह स्पष्ट था कि एएसआई ध्वस्त मस्जिद के नीचे एक मंदिर के अवशेषों की खोज करने की पूर्वकल्पित धारणा के साथ काम कर रहा था, यहां तक कि अपनी परिकल्पना के अनुरूप सबूतों को चुनिंदा रूप से बदल रहा था। लेखकों ने इस बात पर जोर दिया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एएसआई द्वारा प्रचलित पुरातत्व का प्रकार, जहां पुरातत्वविद् खुद को मुख्य रूप से नौकरशाहों के रूप में देखते हैं, शैक्षणिक जुड़ाव और प्रशिक्षण के गंभीर अभाव से ग्रस्त हैं।