Bihar SIR Controversy: चुनाव आयोग ने राज्यसभा को गुरुवार को बताया कि 'संदिग्ध मतदाता' नाम की कोई श्रेणी नहीं है। जबकि दूसरी तरफ चुनाव आयोग बिहार एसआईआर के तहत संदिग्ध मतदाताओं का पता लगा रहा है। जानिए पूरा मामलाः
चुनाव आयोग (ECI) के हवाले से सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा में स्पष्ट किया कि जन प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के तहत 'संदिग्ध मतदाता' (suspicious voters) जैसी कोई श्रेणी मौजूद नहीं है। यह जानकारी तब सामने आई जब समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन ने पूछा कि क्या पिछले लोकसभा चुनावों में संदिग्ध मतदाताओं ने वोट डाला था। यह जवाब बिहार में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (Bihar SIR) के बीच आया है, जहां अवैध आप्रवासियों और विदेशी लोगों के नाम शामिल होने के आरोपों पर कार्रवाई की जा रही है। इस बीच विपक्षी दलों ने कहा है कि बिहार एसआईआर को अब से वोट चोरी कहा जाएगा।
ईसीआई का जवाब
कानून और न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने लिखित जवाब में कहा, "चुनाव आयोग ने सूचित किया है कि जन प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 के तहत संदिग्ध मतदाताओं की कोई श्रेणी नहीं है।" यह बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार में मतदाता सूची में कथित तौर पर विदेशी अवैध आप्रवासियों के नाम शामिल होने की शिकायतों के बाद संशोधन का काम चल रहा है। आयोग ने 24 जून को जारी बयान में कहा था कि इस अभ्यास का एक कारण इन अवैध आप्रवासियों के नामों को हटाना है।
बिहार में मतदाता सूची संशोधन
बिहार में एसआईआर का मकसद मतदाता सूची को साफ करना है, जिसमें मृत व्यक्तियों, एक से अधिक जगह रजिस्टर्ड वोटरों, स्थायी रूप से ट्रांसफर लोगों और पता न लगने वाले मतदाताओं के नाम हटाना है। इस प्रक्रिया ने विपक्षी दलों के बीच चिंता पैदा कर दी है, जो इसे राजनीतिक दखलन्दाजी की कोशिश मान रहे हैं। लेकिन यह सब करते हुए चुनाव आयोग के अधिकारियों ने इन्हें संदिग्ध मतदाता कहा। दूसरी तरफ कानूनी रूप से संदिग्ध वोटरों की कोई श्रेणी नहीं है।
विपक्ष का सवाल
इस बयान के बाद विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाए हैं। कई नेताओं का मानना है कि बिना राजनीतिक दलों से परामर्श के इस तरह का कदम उठाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। हालांकि, आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शी और कानूनी रूप से वैध है।
संसद में माहौल गरम
लोकसभा और राज्यसभा में SIR प्रक्रिया पर विपक्ष लगातार सवाल उठा रहा है। गुरुवार को भी इस पर जबरदस्त हंगामा हुआ। राज्यसभा दो बार स्थगित हुई। विपक्ष ने आरोप लगाया कि मतदाता सूची में हेरफेर कर चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। दूसरी ओर, सत्तारूढ़ दल ने इसे चुनावी प्रक्रिया को मजबूत करने का प्रयास बताया है।
चुनाव आयोग के इस जवाब से यह स्पष्ट है कि 'संदिग्ध मतदाता' की सोच कानूनी रूप से मान्य नहीं है, लेकिन बिहार में चल रहे संशोधन को संदिग्ध मतदाताओं के लिए ही इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां तक कि आधार, वोटरकार्ड और राशन कार्ड वालों के नाम भी सूची से कटेंगे। क्योंकि चुनाव आयोग ने इन्हें 11 दस्तावेजों की सूची में शामिल करने से मना कर दिया है। यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है। वहां इस पर 12-13 अगस्त को सुनवाई है।
SIR अब 'वोट चोरी'
बिहार SIR प्रक्रिया को विपक्षी नेताओं ने "वोट चोरी" करार देते हुए इसका कड़ा विरोध किया और इसे अब से 'वोट चोरी' के नाम से पुकारने का फैसला किया है। इंडिया गठबंधन के सांसदों, जिसमें कांग्रेस, राजद, भाकपा (माले), और समाजवादी पार्टी जैसे दलों के नेता शामिल हैं, ने गुरुवार को संसद परिसर में SIR के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। नेताओं ने SIR लिखे पोस्टरों को फाड़कर इस प्रक्रिया को अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे "चुनाव चोरी" की साजिश करार देते हुए चुनाव आयोग पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए काम करने का आरोप लगाया। उन्होंने एक वीडियो साझा कर दावा किया कि बिहार में बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) मतदाताओं की जानकारी के बिना फॉर्म भर रहे हैं और हस्ताक्षर कर रहे हैं।
विपक्षी दलों का कहना है कि SIR के नाम पर बिहार में लाखों वैध मतदाताओं, खासकर दलित, अल्पसंख्यक, और प्रवासी मजदूरों के नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं। कांग्रेस सांसद अभिषेक मनु सिंघवी और राजद सांसद मनोज झा ने कहा कि इस प्रक्रिया में जन्म प्रमाण पत्र जैसे जटिल दस्तावेज मांगना गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए अनुचित है। उन्होंने दावा किया कि बिहार के करीब 8.1 करोड़ मतदाताओं में से कम से कम दो करोड़ लोग इस प्रक्रिया से प्रभावित हो सकते हैं। भाकपा (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने इसे "वोटबंदी" की संज्ञा दी, जो नोटबंदी की तर्ज पर मतदाताओं के अधिकारों पर हमला है।
बिहार में नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले यह विवाद और गहरा सकता है। विपक्ष की "वोट चोरी" की रणनीति और चुनाव आयोग के जवाब ने बिहार की सियासत को गरमा दिया है।