1896 में जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका के डरबन में थे, तो उन्हें पता भी नहीं था कि उनका नाम मतदाता सूची में दर्ज है या नहीं। उन्हें चुनाव लड़ने वाले एक व्यक्ति से ये जानकारी मिली। मतदान करने में उनकी कोई खास रुचि नहीं थी, लेकिन उन्हें यह जानने की जिज्ञासा ज़रूर हुई कि उनका नाम मतदाता सूची में कैसे आया। उन्हें शक हुआ कि जिसने उन्हें यह सूचना दी और उनसे वोट मांगा, उसी ने उनका नाम सूची में डलवाया होगा। इस अनुभव से उन्होंने महसूस किया कि मतदाता सूचियाँ अक्सर किसी ख़ास उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के हिसाब से तैयार होती हैं।
17 सितंबर 1931 को लंदन में हुए गोलमेज़ सम्मेलन की फेडरल स्ट्रक्चर कमेटी  में बोलते हुए गांधी ने इस अनुभव को याद किया और सभी के लिए, चाहे उनका लिंग, धर्म, जाति या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, वयस्क मताधिकार के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें मतदान प्रक्रिया और रजिस्ट्रेशन अफसर द्वारा नाम दर्ज करने की पद्धति की पूरी जानकारी है। साथ ही उन्होंने डरबन में अपने नाम को बिना जानकारी के सूची में डाले जाने और वोट मांगने की घटना का ज़िक्र करते हुए कहा- “…तब से मुझे पता है कि मतदाता सूचियाँ कैसे तैयार होती हैं।”

वोट चोरी पर राहुल गांधी का खुलासा 

2025 में गांधी के 1931 वाले शब्द, “मुझे पता है मतदाता सूचियाँ कैसे तैयार होती हैं”, विशेष रूप से प्रासंगिक हो जाते हैं। इसलिए कि राहुल गांधी ने बेंगलुरु सेंट्रल लोकसभा क्षेत्र के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में कथित धांधली का बड़ा खुलासा किया है। उनका आरोप है कि चुनाव आयोग (ECI) ने बीजेपी को “वोट चोरी” में मदद की, ताकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन सकें।
यह खुलासा उस विधानसभा क्षेत्र की 2024 की मतदाता सूची पर आधारित था, जो लाखों पन्नों में फैली थी और जो कांग्रेस को स्वयं ECI ने दी थी। कांग्रेस की टीम ने छह महीने की मेहनत से एक लाख से ज़्यादा मतदाताओं को संदिग्ध आधारों पर जोड़े जाने के सबूत जुटाए। राहुल का आरोप था कि यह जोड़-तोड़ बीजेपी द्वारा अन्य सीटों पर भी अपनाए गए एक पैटर्न का हिस्सा है।
कांग्रेस टीम ने मशीन से पढ़े जाने योग्य डिजिटल डेटा न दिए जाने के बावजूद, हर पन्ने को हाथ से स्कैन कर पाँच तरीक़ों से “वोट चोरी” के सबूत पेश किए:
  • डुप्लीकेट वोटर – 12,000
  • फर्ज़ी या ग़लत पते – 40,000
  • एक ही पते पर असामान्य रूप से अधिक वोटर – 10,400
  • अमान्य फोटो – 4,000
  • फॉर्म 6 का दुरुपयोग – 33,600
इस तरह कुल 1,00,250 फर्ज़ी वोट सिर्फ़ एक विधानसभा क्षेत्र की सूची में शामिल थे। राहुल का दावा था कि इसी मॉडल को कम से कम 25 लोकसभा सीटों पर अपनाया गया और 2024 में मोदी की जीत इसी हेराफेरी का नतीजा है।

2024 में चुराए गए जनादेश का दावा

जुलाई 2024 में वोट फॉर डेमोक्रेसी (महाराष्ट्र) नामक संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की थी — “लोकसभा चुनाव 2024 का संचालन: वोट में हेराफेरी और मतदान/गिनती के दौरान कदाचार का विश्लेषण” — जिसमें दावा किया गया था कि क़रीब 5 करोड़ वोटों की “बढ़ोतरी” ने बीजेपी/एनडीए को कम से कम 76 सीटों पर फ़ायदा पहुँचाया।
इसी तरह 8 अगस्त 2024 को प्रभाकर परकला ने चेन्नई में “2024: क्या जनादेश चुराया गया?” विषय पर भाषण दिया और पूरी प्रक्रिया समझाई, हालांकि उन्होंने चुनाव आयोग का बचाव किया।

चुनाव आयोग की निष्क्रियता

राहुल का खुलासा चुनाव आयोग के अपने दस्तावेज़ों पर आधारित था, लेकिन जाँच का वादा करने की बजाय ECI ने इसे “भ्रामक” कहकर ख़ारिज कर दिया, बिना सबूत दिए। आयोग का यह कहना कि राहुल को रजिस्ट्रेशन ऑफ़ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 की धारा 20(3)(b) के तहत हलफ़नामा जमा करना चाहिए, नियमों की ग़लत व्याख्या है, क्योंकि यह धारा सिर्फ़ प्रारूप मतदाता सूची पर आपत्ति के लिए लागू होती है, न कि अंतिम सूची पर आधारित किसी खुलासे के लिए।

संविधान और मताधिकार पर ख़तरा

राहुल का खुलासा और ECI की निष्क्रियता ने देश भर में चिंता पैदा कर दी है। यह सिर्फ़ ECI की साख पर सवाल नहीं उठाता, बल्कि स्वतंत्र भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की नींव को भी हिला देता है।
इसीलिए राहुल ने बेंगलुरु में “वोट अधिकार” रैली में कहा कि यह संविधान और “वन मैन, वन वोट” की बुनियाद बचाने की लड़ाई है। उन्होंने ECI से मतदाता सूचियाँ इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध कराने की माँग भी की।

गांधी और आम्बेडकर का विज़न

महात्मा गांधी ने यंग इंडिया (18 जून 1931) में लिखा था कि वयस्क मताधिकार स्वराज का अहम पहलू है, जिसे उन्होंने सत्ता के विरुद्ध जनता की सीधी कार्रवाई का रूप माना। मतदाता सूचियों में हेराफेरी करके वोट चोरी करना, जनता की इस ताक़त को कमज़ोर करता है।
डॉ. भीमराव आम्बेडकर ने 15 जून 1949 को संविधान सभा में अनुच्छेद 289 (अब अनुच्छेद 324) पेश करते हुए चेतावनी दी थी कि चुनाव आयोग को मतदाता सूची तैयार करते समय कोई अन्याय नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करना “लोकतांत्रिक शासन की जड़ काटने” के बराबर होगा।
इसलिए चुनाव आयोग को राहुल गांधी के खुलासे पर कार्रवाई कर, मतदाता सूचियों में हुई कथित ग़लतियों को सुधारना चाहिए, ताकि गांधी और आम्बेडकर के विज़न की रक्षा हो सके।
(लेखक पूर्व राष्ट्रपति के. आर. नारायणन के सलाहकार रह चुके हैं।)